जायद सीजन में मक्का की उन्नत खेती, जानिए खेती करने के तौर-तरीके

जायद सीजन में मक्का की उन्नत खेती, जानिए खेती करने के तौर-तरीके
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Kisaan Helpline

Crops Feb 10, 2023

आधुनिक खान-पान के कारण अधिकांश भारतीय और विदेशी व्यंजनों में मक्का का प्रयोग आम हो गया है। हालांकि पहले मक्के का इस्तेमाल सिर्फ ब्रेड और कॉर्न सिरप बनाने के लिए ही किया जाता था। लेकिन आज मक्के से लेकर कॉर्न फ्लेक्स, पॉपकॉर्न और यहां तक कि पास्ता, पिज्जा और सैंडविच तक में मक्के का इस्तेमाल होने लगा है। दुनिया भर में मक्का की बढ़ती खपत के कारण अब तीनों फसल चक्रों में मक्का की खेती की जा रही है।

रबी की फसल कटाई के बाद जब खेत खाली हो जाएं तब किसान जायद की मक्का की बुआई कर सकते है। इससे किसानों को कम समय में अधिक लाभ मिलता है। जहां सिंचाई के साधन होते हैं, वहीं जायद की फसल के रूप में मक्का की खेती की जा सकती है। किसानों को रबी की फसलों की कटाई के बाद जल्द से जल्द मक्का की बुवाई करनी चाहिए, क्योंकि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है। बुवाई में परेशानी होती है।

उन्नत किस्में
जायद ऋतु में मक्का की उन प्रजातियों को लगाते हैं जो शीघ्र पक जाती हैं जैसे-पी. एम.एच.-7. पी.एम.एच.-8, पी.एम.एच.-10, कंचन, गौरव, सूर्या, तरुण, नवीन, अमर, आजाद, उत्तम, किसान, विजय व श्वेता और हरे भुट्टे लेने के लिए पी.ई.एम.एच.-2. पी. ई.एम.एच.-3 तथा बेबी कॉर्न के लिए संस्तुत प्रजातियां पूसा संकर-1, पूसा संकर-2, पूसा संकर-3, एच.एम-4, वी.एल.-42, वी.एल. -78 व प्रकाश आदि प्रमुख हैं। मक्का की खेती के लिए बुआई के समय 18-30% सेल्सियस तापमान होना आवश्यक है।

उपयुक्त भूमि और बुवाई का तरीका
मक्का की अच्छी उपज हेतु बलुई दोमट या दोमट भूमि उपयुक्त होती है। जायद में फरवरी के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए, जिससे कि हमारी पैदावार पर कोई कुप्रभाव न पड़ सके। बुआई से पूर्व 1 कि.ग्रा. मक्के के बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से शोधित करना अति आवश्यक है। सामान्य मक्का के लिए 18-20 कि.ग्रा./हैक्टर तथा संकर मक्का की बीज दर 12-15 कि.ग्रा./हैक्टर प्रयोग करनी चाहिए। मक्का की बुआई हल के पीछे 3 से 4 सें.मी. की गहराई पर करें तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
मक्का की अच्छी उपज लेने के लिए संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है। मक्का की फसल के लिए खाद का प्रयोग खेत की तैयारी के समय किया जाता है, उर्वरक में 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 60 कि.ग्रा. पोटाश/हैक्टर प्रयोग करते हैं। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय प्रयोग करनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बार में खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें। आधी मात्रा बुआई के 25-30 दिनों बाद फूल आने के समय नाइट्रोजन की शेष मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
सिंचित क्षेत्र के लिए 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर एवं बारानी क्षेत्रों के लिए 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा लगभग 3-4 सें.मी. की गहराई पर डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा अंकुरण से 4-5 सप्ताह बाद खेत में बिखेरकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
मक्का की फसल में कम से कम दो निराई-गुड़ाई करें। पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 15-20 दिनों बाद तथा दूसरी बुआई के 30-35 दिनों बाद करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 2-3 दिनों के अंदर एट्राजीन 2.5 कि.ग्रा. या पेन्डीमेथिलिन 3.33 लीटर में से किसी एक खरपतवारनाशी का प्रयोग 1600 लीटर पानी में घोलकर / हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
अच्छी पैदावार के लिए, समय से खरपतवार नियंत्रण अति आवश्यक हैं अन्यथा उपज में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। बुआई से 30 दिनों तक खेत को खरपतवारमुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई खुरपी द्वारा बुआई के 15 दिनों बाद करनी चाहिए। इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहिए। यदि फसल की बुआई मेड़ पर की गयी है तो खरपतवार नियंत्रण ट्रैक्टर एवं रिज मेकर द्वारा भी किया जा सकता है। खरपतवारनाशक एट्राजीन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से बुआई के तुरन्त बाद अथवा 1-2 दिनों बाद प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। एट्राजीन 10.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व को 800 लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है।

सिंचाई प्रबंधन
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। पौधों में फुटाव होते समय, बालियां निकलते समय तथा दाना बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। बालियां निकलते समय नमी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ग्रीष्मकालीन बाजरे में 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार 19-10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ सकती है।

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