जानिए टमाटर की फसल में लगने वाले हानिकारक कीटों की पहचान और उनके रोकथाम के उपाय

जानिए टमाटर की फसल में लगने वाले हानिकारक कीटों की पहचान और उनके रोकथाम के उपाय
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Kisaan Helpline

Crops Aug 10, 2022

Tomato Farming: सब्जी उत्पादन किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है। भारत में जलवायु की विविधता के कारण विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती सफलतापूर्वक की जाती है। सब्जियों पर कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इससे पैदावार में कमी आती है और किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है। अतः सब्जियों में कीटों का नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है। कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए एकीकृत कीट प्रबंधन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।

टमाटर की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीटः 

फल छेदक : यह एक बहुपौधभक्षी कीट है जो कि टमाटर को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की सुंडिया कोमल पत्तियों और फूलों पर आक्रमण करती है तथा फल में छेद करके फल को नुकसान पहुंचाती हैं। फल छेदक की मादा शाम के समय पत्तों के निचले हिस्से पर हल्के पीले व सफेद रंग के अंडे देती हैं। इन अंडों से तीन से चार दिनों बाद हरे एवं भूरे रंग की सुंडियां निकल आती हैं। पूरी तरह से विकसित सूंडी हरे रंग की होती है जिनमें गहरे भूरे रंग की धारियां होती हैं। यह कीट फलों में छेद करके अपने शरीर का आधा भाग अंदर घुसाकर फल का गूदा खाती है जिससे फल सड़ जाता है। इनका जीवनचक्र 4 से 6 सप्ताह में पूरा होता है।

                            छेदक का फल पर प्रकोप

तंबाकू की फल छेदक सुंडी : यह भी एक बहुपौधभक्षी कीट है। इसका अगला पंख स्लेटी लाल भूरे रंग का होता है। पिछले पंख मटमैले सफेद व गहरे भूरे रंग की किनारी वाला होता है। इसकी मादा, पत्तों के नीचे 100 से 300 अंडे समूह में देती है जिसे ऊपर से पीले भूरे रंग के बालों से मादा द्वारा ढक दिया जाता है। इन अंडो से 4 से 5 दिनों में हरे पीले रंग की सुंडियां निकल आती हैं। ये प्रारंभ में समूह में रहकर पत्तियों की ऊपरी सतह खुरचकर खाती हैं। पूर्ण विकसित सूंडी जमीन के अंदर जाकर प्यूपा बनाती है। इस कीट का जीवनचक्र 30 से 40 दिनों में पूरा होता है।

                           तम्बाकू की फल छेदक सुंडी

फल मक्खी : फल मक्खी आकार में छोटी होती है परंतु काफी हानिकारक होती है। यह मक्खी बरसात के मौसम में अधिक नुकसान पहुंचाती है। इनके वयस्कों के गले में पीले रंग की धारियां देखी जा सकती हैं। इस कीट की मादा मक्खी फल प्ररोह के अग्रभाग में अथवा फल के अंदर अंडे देती है। इन अंडों से चार-पांच दिनों में सफेद रंग के शिशु (मैगट) निकल आते हैं। ये फलों के अंदर घुसकर इसके गूदे को खाना प्रारंभ कर देते हैं। ये सुंडियां तीन अवस्थाओं से गुजरती हैं तथा मृदा में पूर्णतः विकसित होने पर प्यूपा बन जाती है। इन प्यूपा से 8 से 10 दिनों में वयस्क मक्खी निकलती है। यह लगभग एक माह तक जीवित रहती है।

                           मक्खी का फल पर प्रकोप 

सफेद मक्खी : सफेद मक्खी का प्रकोप टमाटर की फसल में शुरूआत से अंत तक रहता है। इस कीट की मक्खी सफेद रंग की होती है और बहुत ही छोटी होती है। इसके वयस्क एवं शिशु दोनों ही फलों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद मक्खी की मादा पत्तों के निचली सतह में 150 से 250 अंडे देती है। ये अंडे बहुत छोटे होते हैं जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इन अंडों से 5 से 10 दिनों में शिशु निकल आते हैं। शिशु तीन अवस्थाओं को पार कर चौथी अवस्था में पहुंचकर प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं। प्यूपा से 10 से 15 दिनों के बाद वयस्क निकलते हैं और जीवनचक्र फिर से आरंभ कर देते हैं। इस कीट के शरीर से मीठा पदार्थ निकलता रहता है जो पत्तों पर जम जाता है। जिस पर काली फफूंद का आक्रमण होता है तथा पौधों को नुकसान पहुंचता है।

                        सफ़ेद मक्खी का पत्तियों पर प्रकोप 

पर्ण खनिक कीट : यह एक बहुमक्षी कीट है जो कि संपूर्ण विश्व में सब्जियों एवं फलों की 50 से अधिक किस्मों को नुकसान पहुंचाता है। इसकी मादा पत्तियों के ऊतक एवं निचली सतह के अंदर अंडे देती हैं। अंडे से दो-तीन दिनों बाद निकलकर शिशु पत्ते की दो सतहों के बीच में रहकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। ये शिशु सर्पाकार सुरंगों का निर्माण करते हैं। इन सफेद सुरंगों के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है तथा फसल की पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वयस्क शिशु 8 से 12 दिनों बाद मृदा में गिरकर प्यूपा बनाते हैं। इनसे 8 से 10 दिनों बाद वयस्क निकल आते हैं।

              पर्ण खनिज कीट से ग्रसित पत्ती में सर्पाकार सुरंग 

कटुआ कीट : यह कीट छोटे पौधों को काफी नुकसान पहुंचाता है। कटुआ कीट छोटे पौधों को रात के समय काटते हैं और कभी-कभी कटे हुए छोटे पौधों को जमीन के अंदर भी ले जाते हैं। एक मादा सफेद रंग के 1200-1900 अंडे देती है। इनमें से चार पांच दिनों बाद सूंडी बाहर निकल आते हैं। इसकी सुंडियां गंदी सलेटी भूरे-काले रंग की होती हैं। ये दिन के समय मृदा में छुपी हुई रहती हैं। पौधरोपण के समय से ही ये पौधे को मृदा की धरातल के बराबर तने को काटकर खाती हैं। इसकी सुंडियां लगभग 40 दिनों तक सक्रिय रहती हैं। इसका प्यूपा भी जमीन के अंदर ही बनता है जिससे से लगभग 15 दिनों में वयस्क पतंगा निकल आता है। इस कीट का जीवनचक्र 30 से 60 दिनों में पूरा हो जाता है।

                           कटुआ कीट का प्रकोप

एकीकृत कीट प्रबंधन :
  • क्षतिग्रस्त फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
  • खेत में सफाई पर विशेष ध्यान दें।
  • खेतों में फसलचक्र को बढ़ावा दें।
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
  • अंडों को और समूह में रहने वाली सुंडियों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए ।
  • टमाटर की 16 पंक्तियों के बाद दो पंक्तियां गेंदे की लगाएं और गेंदे पर लगी सुंडियों को मारते रहें।
  • रात्रि के समय रोशनी 'प्रकाश प्रपंच' का इस्तेमाल करें। नर वयस्कों को पकड़ने के लिए 'फेरोमोन प्रपंच' (रासायनिक) का इस्तेमाल भी उपयोगी है। एक एकड़ जमीन में चार से पांच ट्रैप लगायें फूल आने पर बैसिल्स थुरिनजियंसिस वार कुर्सटाकी 0.5 लीटर प्रति हेक्टेयर (70 मि.ली. 100 लीटर पानी में) का छिड़काव करें।
  • ट्राइकोग्रामा प्रेटियोसम के अंडो का 20,000 प्रति एकड़ चार बार प्रति सप्ताह की दर से खेतों में प्रयोग करें।
  • सफेद मक्खी और पर्ण खनिक को पकड़ने के लिए पीले रंग के चिपचिपे (गोंद लगे हुए) ट्रैप का इस्तेमाल करें। प्रति 20 मीटर पर एक ट्रैप लगायें।
  • फल मक्खी के नर वयस्कों को पकड़ने के लिए क्युन्योर नामक आकर्षक या पालम ट्रैप का इस्तेमाल करें। 10 ग्राम गुड़ अथवा चीनी का घोल और 2 मि.ली. मैलाथियान (50 ई.सी.) प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। मिथाइल यूजीनॉल (40 मि.ली.) और मैलाथियान (20 मि.ली.) के 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल को बोतलों में डालकर टमाटर के खेत में लटकाने से इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • अधिक प्रकोप होने पर क्वीनालफॉस 20 प्रतिशत (1.5 मि. ली. प्रति लीटर पानी) या लैम्डा-साईहैलोथ्रिन (5 प्रतिशत ई.सी.) या इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या ट्रायजोफॉस 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें। 
  • खेत तैयार करते समय मृदा में क्लोरपाइरिफॉस 20 ई.सी. के 2 लीटर को 20 से 25 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर खेत में अच्छी तरह मिला दें।

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