हानिकारक कीट और उनके रोकथाम के उपाय
फल छेदक: इसकी सूंडियां कोमल पंत्तियों पर पलती हैं और बाद में छेद करके फल के अन्दर पलने लगती हैं।
रोकथामः ऐसीफेट 0.05 प्रतिशत ( 65 ग्राम ऐसीटाफ 75 एसपी या एण्डोसल्फान 0.05 प्रतिशत या फैनक्लरेट 0.01 (50 मिली. सुमिसिडिन / फैनवाल / एग्रोफान 20 ई.सी.) या साइपरमेथिरिन 0.0075 प्रतिशत (30 मिली. साईमबुश 25 ईसी/ 75 मिली0 रिपकार्ड 10 ईसी) या डेल्टामिथरिन 0.0028 प्रतिशत (10 मिली. डैसिस 2.8 ईसी) को 100 लीटर पानी में घोलकर फूल आने पर छिड़काव करें और 15 दिन के अंतराल पर दोबारा इसका छिड़काव करना चाहिए।
फल मक्खी: यह फल के अन्दर अण्डे देती है और फिर इसका असर फल के अंदर पड़ता है और फल खाने योग्य नहीं रहते।
रोकथाम: मई-जून के महीने में जब कीट फसल पर दिखाई देने लगें तब उनको आकर्षित करने के लिए 50 ग्रा. खांड/ गुड और 10 मिली. मैलाथियान (साइथियान/मैलाथियान 50 ईसी) 5 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए। फैनाथियान 0.05% या फैनीट्रोथियान 0.05 प्रतिशत (750 मिली0) सुमीथियान 50 ईसी) को 750 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
कटुआ कीट: मिट्टी में भूरे रंग की सूण्डियां होती हैं। पौध रोपण के समय ये सूण्डियां-पौधे के तने को धरातल के बराबर वाली जगह से काट देती है जिसके कारण फसल को नुकसान पहुंचता है।
रोकथामः खेत तैयार करते समय क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी 2 लीटर को 20-25 किग्रा रेत में मिलाकर प्रति हैक्टयेर भूमि पर बुरकाव कर देना चाहिए।
जड़-गांठ सूत्रकृमि: ये सूत्रकृमि मिट्टी के अन्दर रहकर पौधे की जडों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनके कारण जड़े. गांठ वाली हो जाती हैं इसके कारण पौधे का ऊपरी भाग पीला पड जाता है। अंततः पौधा मुरझा जाता है।
रोकथामः रोगग्रस्त क्षेत्रों में 2-3 वर्ष लिए सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्में जैसे कि एस 120 लगायें। इसके अलावा ग्रसित खेतों को फोरेट के दाने 55 किग्रा. प्रति हैक्टेयर (2.25 कि.ग्रा. प्रति कनाल) के हिसाब से डालें।
हानिकारक रोग और उनके रोकथाम के उपाय
पौध कमर तोड़: पौधा बीज से निकलते ही मर जाता है या मुरझा जाता है।
रोकथाम: क्यारियों को फार्मलीन (5 लीटर फार्मलीन प्रति 100 लीटर पानी) से रोपाई के 15-20 दिन पहले शोधित करें। बीज तभी बोएं जब मिट्टी से इस दवाई का धुंआ उठना बन्द हो जाए। क्यारियों को मैनकोजैब या डाइथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर, पानी और कार्बेण्डाजिम (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल से रोग के लक्षण देखते ही सींचे।
बकाई रॉट: प्रभावित हरे फलों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे चक्कर के रूप में दिखाई देने लगते हैं।
रोकथाम: फसल पर रिडोमिल एम जैड (25 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी) का छिडकाव करने के 10-15 दिनों बाद मैनकोजैब या डाइथेन एम-45 या मास-एम-45 (25 ग्राम नीला थोथा, 800 ग्राम अनबूझा चूना तथा 100 लीटर पानी) का छिडकाव करें।
आल्टरनेरिया झुलसा रोगः पत्तों पर गहरे भूरे धब्बे चक्कर बनाते हुए उभर आतें है जो पत्तों पर पीलापन लाते हैं।
रोकथाम: पौधों पर 8 से 10 दिन के अन्तराल पर हैक्साकैप (20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या कॉपर आक्सीक्लोराईड या ब्लाईटाक्स 50 (30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या मैनकोजब या डाइथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।