भारत में सोयाबीन खरीफ की फसल के अंतर्गत आती है। सोयाबीन की बुवाई का समय आने वाला है। भारत में इसकी बुआई 15 जून से शुरू हो जाती है। इसे देखते हुए किसानों को सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली किस्मों के बारे में जानना आवश्यक है ताकि वे अपने क्षेत्र के अनुकूल किस्म का चयन कर समय पर सोयाबीन की बुवाई कर सकें। भारत में सोयाबीन बड़ी मात्रा में बोया जाता है। भारत में सर्वाधिक सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में की जाती है। आज हम आपको सोयाबीन की उन्नत किस्मों की जानकारी दे रहे हैं:
1. जे.एस. 95-60
अवधि (दिन) - 82 से 88
औसत उपज किं./हे. - 18 से 20
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- कम वर्षा एवं उथली भूमि हेतु उपयुक्त
- वर्षा आधारित क्षेत्र में द्वि फसली प्रणाली हेतु
- मालवा, निमाड़ बुन्देलखण्ड कृषि जलवायु क्षेत्र हेतु
जे.एस. 95-60
2. जे.एस. 93-05
अवधि (दिन) - 90 से 95
औसत उपज किं./हे. - 20 से 25
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- हल्की से मध्यम मृदा
- कम से मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त
- अंतरवर्ती फसल हेतु
- समस्त कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु उपयुक्त
जे.एस. 93-05
3. जे.एस. 20-29
अवधि (दिन) - 93 से 96
औसत उपज किं./हे. - 25 से 30
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- हल्की से मध्यम मृदा
- जैविक तनाव हेतु प्रतिरोधी
- द्विफसल प्रणाली एवं अंतवर्ती फसल हेतु
- कम से मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त
- समस्त कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु उपयुक्त
जे.एस. 20-29
4. जे.एस. 20-34
अवधि (दिन) - 86 से 88
औसत उपज किं./हे. - 20 से 22
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- हल्की से मध्यम मृदा
- अंतरवर्ती फसल और द्विफसल हेतु उपयुक्त
- जैविक तनाव हेतु प्रतिरोधी
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त
जे.एस. 20-34
5. आर.वी.एस. 2001-4
अवधि (दिन) - 90 से 93
औसत उपज किं./हे. - 25 से 28
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- मध्यम से भारी मृदा
- मध्यम वर्षा क्षेत्र हेतु
- समस्त कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु उपयुक्त
आर.वी.एस. 2001-4
6. एन. आर. सी. 37
अवधि (दिन) - 95 से 100
औसत उपज किं./हे. - 25 से 30
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- मध्यम से भारी मृदा
- मध्यम वर्षा क्षेत्रों हेतु
- मालवा क्षेत्र हेतु उपयुक्त
7. जे.एस. 97-52
अवधि (दिन) - 98 से 102
औसत उपज किं./हे. - 25 से 30
कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु अनुशंसित
- उच्च वर्षा क्षेत्रों हेतु
- भारी मृदा क्षेत्रों हेतु
- उत्तम प्रबंधन हेतु अति उपयुक्त
- पीला मोजेक विषाणु बीमारी वाले क्षेत्रों हेतु उपयुक्त
जे.एस. 97-52
बुवाई के पहले बीज का अंकुरण परीक्षण
- 100 बीजों को 101 वर्ग मीटर क्षेत्र में बोते हैं।
- अकुरण क्षमता 70 प्रतिशत से अधिक होना चाहिये (100 बीजो में से 70 पौधों को ऊगना चाहिये)
- यदि यह 70 प्रतिशत अंकुरण से कम है तो नये बीजों का प्रयोग या बीज दर को अनुपात में बढ़ाना चाहिये।
- शुद्ध बीज का ही प्रयोग बुवाई के लिये करें।
बुवाई का समय
- देरी से एवं मध्यम अवधि की प्रजातियों हेतु 20 से 30 जून (एन. आर. सी. 37, जे. एस. 97-52)
- कम अवधि की प्रजातियों को जुलाई के प्रथम सप्ताह में बोना चाहिये (जे.एस. 93-05, जे. एस. 95-60, जे. एस. 20-29. जे. एस. 20-34, आर.वी.एस. 2001-4)
- यदि किन्ही कारणों से बुवाई जुलाई के पहले सप्ताह के बाद करनी पड़े तो बीज दर 10 प्रतिशत बढ़ा दें
- सोयाबीन की बुवाई 15 जुलाई के बाद करने की अनुशंसा नहीं है।
बीज दर
- छोटे दाने वाली किस्मों की बीज दर 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (जे.एस. 97-52)
- मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों की बीज दर 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (जे.एस. 93-05, एन. आर. सी. 37, जे.एस. 20-29, जे.एस. 20-34)
- बड़े आकार के दाने वाली किस्मों की बीज दर 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (जे.एस. 95-60) पौध संख्या 4 से 5 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर रखते है।