सोयाबीन-[वैज्ञानिक नाम="ग्लाईसीन मैक्स"] सोयाबीन फसल है। सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। सोयाबीन का उत्पादन 1985 से लगातार बढ़ता जा रहा है और सोयाबीन के तेल की खपत मूँगफली एवं सरसों के तेल के पश्चात सबसे अधिक होने लगा है। सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइडेंट और वसा होते है।
आज हम आपको सोयाबीन की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीटो के बारें में बताने वाले हैं, जिनकी उचित समय पर रोकथाम कर किसान भाई अपनी फसल को खराब होने से बचा सकता है, और अपनी फसल से अच्छी कमाई कर सकता है।
हानिकारक कीट और नियंत्रण के उपाय
ग्रीन सेमी लूपर
सोयाबीन के पौधों में ग्रीन सेमी लूपर रोग कीट की वजह से फैलता है। अगेती किस्म के पौधों पर इस रोग का प्रभाव फूल बनने के दौरान अधिक दिखाई देता है। इस रोग के कीट की सुंडी फूलों के खिलने से पहले उसकी कलियों को खा जाती है।जिससे पौधों पर फिर से फूल और फली बनने में समय लगता है। और फलियों में दाने बहुत कम बनते है।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के पौधों को उगाना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्यूनालफास 25 ई.सी. की डेढ़ लीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर छिडकना चाहिए।
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
फली छेदक
सोयाबीन के पौधों में फली छेदक रोग का प्रभाव फलियों के बनने के दौरान देखने को मिलता है। पौधों पर इस रोग के लगने से उनकी पैदावार पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ता है। इस रोग के कीट की सुंडी इसकी फलियों में छेद कर अंदर से दानो को खाकर उन्हें खराब कर देती है. रोग बढ़ने पर ज्यादातर फसल खराब हो जाती है।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित और रोगरोधी किस्म के पौधों को खेतों में उगाना चाहिए।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्लोरपायरीफास या क्यूनालफास की डेढ़ लीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर छिडकना चाहिए।
सफेद मक्खी
सोयाबीन के पौधों पर सफेद मक्खी रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर देखने को मिलता है, जो पौधों पर कीट की वजह से फैलता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं। जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है, और रोग के बढ़ने से पत्तियां पौधे से अलग होकर गिर जाती हैं, जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए।
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
बालदार सुंडी
सोयाबीन के पौधों में लगने वाले इस कीट रोग को बालदार सुंडी और कातरा के नाम से भी जाना जाता हैं। इस रोग की सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। इसकी सुंडियां पीली और काले रंग की पाई जाती है। जिनके शरीर पर काफी मात्रा में बाल पाए जाते हैं। पौधों पर इनका प्रभाव बढ़ने से पौधे पत्तियों रहित दिखाई देने लगते हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता है।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए ट्राईजोफ़ॉस या लेम्डा साईहलोथिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव पांच से सात दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए।
गर्डिल बीटल
सोयाबीन के पौधों में ये रोग कीट की वजह से फैलता है, इस रोग के कीट की सुंडी पौधे की शाखा या तने को खाकर उन्हें खोखला बना देती हैं। जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की जुताई के वक्त खेत में फोरेट, ट्राइजोफास या इथियान की उचित मात्रा को छिडककर मिट्टी में मिला दें, और खेत को खुला छोड़ दें।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल या इंडोक्साकारब की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
सूत्रकृमि (नेमाटोड)
सोयाबीन के पौधों में सूत्रकृमि रोग का प्रभाव उनके विकास के दौरान दिखाई देता है। इस रोग के कीट पौधे की जड़ों में पाए जाते हैं, जो खेत में अधिक समय तक नमी के बने रहने पर लगते हैं। इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है। रोग बढ़ने पर पौधों में फलियों की संख्या काफी कम बनती है, और पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के वक्त खेत में फोरेट का छिडकाव कर खेत की गहरी जुताई कर दें और खेत को खुला छोड़ा दें।
- बारिश के मौसम में खेत में जलभराव ना होने दें।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों की जड़ों में कार्बोफ्यूरान का छिडकाव करना चाहिए।
तम्बाकू की इल्ली
सोयाबीन के पौधों पर इस रोग का प्रभाव किट के माध्यम से फैलता है। इस रोग की सुंडी कत्थई रंग की दिखाई देती है, जो पौधे की पत्तियों की तेजी से खाती है. जिससे पौधे की पत्तियों के उतक छिल जाते हैं। रोग बढ़ने पर पौधे पत्तियों रहित दिखाई देते हैं, और उनका विकास रुक जाता है।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्यूनालफास या प्रोफेनोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने पर करना चाहिए।
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव दो से तीन बार करना चाहिए।
माहू
सोयाबीन के पौधों में माहू रोग का प्रभाव मौसम में तापमान के बढ़ने की वजह से दिखाई देता है, जो पौधों पर कीट की वजह से फैलता है। इस रोग के कीट काले, पीले और हरे रंग के दिखाई देते हैं। जिनका आकार काफी छोटा होता है। पौधे पर इस रोग के कीट एक समूह में पाए जाते हैं, जो पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं। जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई समय पर करनी चाहिए।
- पौधों पर रोग दिखाई देने पर फास्फामिडॉन और मिथाईल डीमेटान दवा की उचित मात्रा का छिडकाव तुरंत कर देना चाहिए।
- जैविक तरीके से रोग नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल, नीम के बीजों के आर्क या सर्फ़ के घोल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
अर्धकुण्डलक इल्ली
सोयाबीन के पौधों पर यह रोग कीट की वजह से फैलता है, इस रोग की सुंडी का रंग हरा दिखाई देता है। जो पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। इसकी सुंडी अर्द्ध गोला के रूप में पौधों पर दिखाई देती हैं।
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव करना चाहिए।
तो ये सोयाबीन की फसल में लगने वाले ये कुछ प्रमुख हानिकारक कीट हैं। जिनकी रोकथाम उचित समय पर कर किसान भाई अपनी फसल की उपज को बढ़ा सकता है।जिससे उसे उसकी फसल से अधिक लाभ मिलता है।