जानिए शिमला मिर्च तथा मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के लक्षण और रोकथाम के बारे में

जानिए शिमला मिर्च तथा मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के लक्षण और रोकथाम के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Jan 14, 2023

मसाला फसलों में मिर्च एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसकी खेती लगभग पूरे देश में की जाती है। लेकिन मिर्च में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप हो जाता है जिससे उपज बहुत कम हो जाती है। यदि किसान भाई इन बीमारियों की समय रहते पहचान कर बचाव करें तो अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

1. सर्कोस्पोरा पत्तों का धब्बा (Cercospora leaf spot)


यह रोग सर्कोस्पोरा कैपसिसी फफूँद द्वारा जनित होता है। पत्तियों पर गोल-गोल धब्बे बन जाते हैं जिनके किनारे भूरे रंग के तथा केन्द्र धुंधले रंग के होते हैं। पत्तियों पर जब काफी धब्बे बन जाते हैं तो ग्रस्त पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा समय से पहले जमीन पर गिर जाती हैं।

2. श्यामवर्ण तथा फल विगलन (Dark color and fruit rot)


यह रोग कोलेटोट्राइकम कैप्सिकी फफूँद द्वारा जनित होता है। यह रोग बीज फसल में ज्यादा संक्रमण करता है। इस रोग की दो अवस्थायें हैं। विकसित पौधें की टहनियां ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं तथा उनका रंग भी भूसे जैसा हो जाता है। रोग ग्रस्त टहनियों पर फफूँद के काले बिन्दू उभर आते हैं। फल जब लाल होने लगते हैं तब उन पर छोटे, काले तथा गोल धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे फल की लम्बाई में बढ़ते हैं। नमी वाले वातावरण में इन फलों पर गुलाबी फफूँद दिखाई पड़ती है। रोगग्रस्त फलों में पनप रहे बीजों का रंग भी बदल जाता है तथा ताँबे जैसा हो जाता है ।

3. पर्ण कुंचन (Foliage Crippling)


संक्रमित पौधों की पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। पत्तियां छोटी, जो बाद में हल्की-पीली हो जाती हैं। पुरानी पत्तियां पपड़ी की तरह तथा भुरभुरी हो जाती हैं। रोग ग्रसित पौधे छोटे होते हैं तथा उन पर फल लगना बन्द हो जाता है और यदि लगता भी है तो वह कुरूप हो जाता है।

शिमला मिर्च तथा मिर्च के रोगों के रोकथाम के उपाय
  • रोगी पौधें के अवशेषों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें।
  • फसल चक्र अपनायें।
  • खेत में पानी निकास का उचित प्रबन्ध करें।
  • स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। बीज का उपचार कैप्टान 0.3 प्रतिशत बीज से करें।
  • पौधें पर कार्बेण्डाजिम 0.1 प्रतिशत / 2 ग्राम प्रति लीटर या थायोफिनेट मिथाईल 0.1 प्रतिशत / 2 ग्राम प्रति लीटर या डाइफेनकोनाजोल 0.05 प्रतिशत का 10-14 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
  • रोग रोधी किस्मों जैसे पेरेनियल, बीजी-1, लोराई, पंजाब लाल, जे.सी.ए.- 196, पंजाब सुर्ख, डी. सी. - 18, पूसा सदाबहार, पन्त सी-2, जवाहर मिर्च - 2, सूर्यामुखी तथा जापानी को लगाएं।
  • अगस्त मास में पौधें पर मैन्कोजेब + कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें तथा 10-14 दिन के अन्तराल पर पुनः करें।
  • निम्बेसीडीन (1 मि.ली. / लीटर पानी) या नीम अलज (1.5 मि.ली. / लीटर पानी) का प्रयोग दूसरे कीटनाशक के विकल्प के रूप में किया जा सकता है। ट्राइजोफॉस, 40 ईसी (1.5 मि.ली. / लीटर पानी), नीमार्क (5 मि. ली./लीटर पानी) आदि का एक के बाद एक का नर्सरी में पौध तथा मुख्य खेत में 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

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