जानिए प्याज की फसल में लगने वाले हानिकारक रोग और कीटों से फसल की सुरक्षा के उपाय

जानिए प्याज की फसल में लगने वाले हानिकारक रोग और कीटों से फसल की सुरक्षा के उपाय
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Kisaan Helpline

Crops Jan 10, 2023

प्याज में रोग एवं कीट नियंत्रण अति आवश्यक है, क्योंकि भारत में विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती में प्याज का बहुत महत्व है। जिसे नकदी कंद फसल के नाम से जाना जाता है। प्याज एक बहुमुखी फसल है, जिसका उपयोग सलाद, मसाले, अचार और सब्जियां बनाने में किया जाता है। प्याज की उत्पादकता पर कीट और रोगों का बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसमें फसलों को तरह-तरह से नुकसान पहुंचता है।

आइये जानते है प्याज की फसल में लगाने वाले हानिकारक रोग और कीटों के लक्षण और रोकथाम के बारे में :
प्रमुख रोग
आर्द्र विगलन (डेम्पिंग ऑफ)
यह रोग मुख्यतः नर्सरी में पौधों को नुकसान पहुंचाता है। रोगग्रस्त पौधे जमीन की सतह से गलने लगते हैं और मुरझा कर सूख जाते हैं।
नियंत्रण
  • बीज को थायरम या बाविस्टिन से 3.0 ग्राम /किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर क्यारियों पर मैंकोजेब (2.5 ग्रा / लीटर पानी) या कार्बेन्डाजिम (1 ग्रा/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
बैगनी धब्बा रोग (पर्पल ब्लॉच)
इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर आंख के आकार के जामुनी या बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं जो कि भुरे घेरे से घिरे होते हैं। रोग संक्रमण के स्थान पर तना कमजोर होकर गिर जाता है। इस रोग का प्रकोप फरवरी-मार्च में अधिक होता है।
नियंत्रण
  • बुवाई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक दवा थायरम + कार्बेन्डाजिम अथवा कार्बेन्डाजिम + मैंकोजेब से 3 ग्राम / किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • मँकोजेब या क्लोरोथैलोनील (0.25 प्रतिशत) का 4 छिड़काव या आईप्रोडियोन (0.25 प्रतिशत) का 3 छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर करें।
स्टेमफाइलम लीफ ब्लाईट
इस रोग की शुरुआत में पत्तियों के बीच में छोटे-छोटे पीले से नारंगी रंग की धारियां विकसित हो जाती है। बाद में ये धारियां लम्बी होकर गुलाबी सिरे से घिरी हुई धब्बों में बदल जाती है। ये धब्बे पत्तियों के शीर्ष से निचे की तरफ फैलने लगते है और अंत में आपस में मिलकर पूरी पत्तियों को झुलसा या जला देते है।
नियंत्रण
  • इस रोग के नियंत्रण के लिये मैंकोजेब या क्लोरोथैलोनील (0.25 प्रतिशत) फफूदीनाशक का 10 से 15 दिन के अंतर से 3 से 4 छिड़काव करें।
मृदु रोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)
यह रोग फफूंद के द्वारा फैलता है। पत्तियों पर बैगनी रंग के रोऐ उभर आते है जो बाद में हरा रंग लिये पीले हो जाते है। अंत में प्रभावित पत्तियाँ सूख कर गिर जाती है।
नियंत्रण
  • डायथेन एम-45 ( 0.3 प्रतिशत ) या डायथेन जेड-78 (0.3 प्रतिशत) का 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
जीवाणु मृदु गलन
इस रोग कारण प्याज के कंद भंडारगृह में सड़ जाते है। रोग का संक्रमण खेत से ही शुरू हो जाता है तथा रोग से प्रभावित कंदों को दबाने पर पानी जैसा तरल पदार्थ निकलता है।
नियंत्रण
  • कंदों को हवादार तथा कम नमी वाले भंडार गृहों में कंदों को अच्छी तरह से सुखाकर, उनके उपरी छिलकों की छंटाई कर रखना चाहिये
प्रमुख कीट
थ्रिप्स
यह प्याज के फसल को नुकसान पहुँचाने वाला सबसे अधिक हानिकारक कीट है। यह कीट छोटा सा पीले रंग का होता है जो पत्तियों का रस चूसकर उनमें छोटे छोटे सफेद धब्बे बना देता है। पत्तियों के शीर्ष पीले होकर मुरझाने लगते है और पौधा सूख जाता है। फलस्वरूप कंद छोटे रह जाते हैं तथा उपज में गिरावट आ जाती है। यह कीट फूल आने के समय अधिक नुकसान पहुँचाता है। जब आर्थिक क्षति स्तर 30 थ्रिप्स प्रति पौधे हो जाए तभी कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिये।
नियंत्रण
  • खेत में प्याज का रोपण करने से पूर्व दानेदार फिप्रोनील का 10 कि.ग्रा./ हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाऐं ।
  • फिप्रोनील 5% एस.सी. (0.1%), स्पाईनोसेड 45% एस. सी. (0.1%), प्रोफेनोफॉस 50% ई.सी. (0.2%) या कार्बोसल्फसन (0.2%) का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 3 से 4 छिड़काव करें ।
  • रोपाई के 2, 6 एवं 10 सप्ताह बाद कार्बोफ्यूरान या फोरेट का 20-25 किग्रा / हेक्टयर की दर से छिड़काव करें।
रेड स्पाईडर माइट
इस कीट के प्रौढ़ तथा निम्फ पत्तियों की निचली सतह पर रहकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट से ग्रसित पौधे की पत्तियां पूरी तरह से खुल नही पाती और पूरा का पूरा का पौधा जलेबी की तरह मुड़ जाता है। ग्रसित पत्तियों के किनारे पीले हो जाते है।
नियंत्रण
  • फसल पर घुलन पोटाश सल्फर (0.2% )- डाईमिथोएट (0.03%) का छिड़काव करें।
  • डाईकोफॉल कीटनाशक का 2 मिली/लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
शीर्ष छेदक
इनकी इल्लियाँ पत्तियों के आधार को खाकर कंद के अंदर प्रवेश कर जाती है और सड़न पैदाकर फसल को नुकशान पहुँचाती है।
नियंत्रण
  • प्रोफेनोफॉस दवा 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
  • रोपण से पूर्व दानेदार फिप्रोनील का 10 किग्रा / हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाऐं।

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