मूंगफली (ऐकिस हायपोजिया) एक प्रमुख तिलहनी फसल है। यह लग्युमिनिएसी कुल से संबंधित है। विश्व में चीन के बाद भारत मूंगफलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश में मुख्यतः गुजरात, राजस्थान, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तेलंगाना तथा महाराष्ट्र राज्यों में मूंगफली की खेती की जाती है। इन 8 राज्यों का मूंगफली के कुल क्षेत्रफल व उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान है।
मूंगफली की फसल कई तरह की फफूंद, जीवाणु और विषाणुजनित रोगों से प्रभावित होती है। ये फसल के अंकुरण से लेकर कटाई तक फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं। मूंगफली में लगने वाला जड़ गलन रोग मुख्य हैं।
जड़ गलन रोग
यह बीज व मृदाजनित फफूंद (एसपर्जिलस नाइजर) से होने वाला मूंगफली का सबसे घातक रोग है। इस रोग का प्रकोप गर्म व शुष्क मौसम तथा रेतीली या दोमट मिट्टी वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक होता है। इस रोग के कारण भूमि की सतह के पास तने व जड़ पर गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे बने जाते हैं। सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है और बाद में रोगग्रस्त तना गलने से पौधा सूख जाता है। रोगग्रस्त पौधों को यदि उखाड़ा. जाये, तो जड़ें आमतौर पर टूटकर भूमि में ही रह जाती हैं। इस रोग का प्रकोप बुआई के 10 दिनों से लेकर 50 दिनों के अंतराल तक अधिक होता है।
जड़ गलन रोग के नियंत्रण के उपाय
खेत में पिछले मौसम के संक्रमित फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ना चाहिए। मूंगफली की कॉलर रॉट रोग प्रतिरोधी किस्मों यथा आरजी- 510 आदि. का चयन करें। बीजों को बुआई से पूर्व 3 ग्राम थीरम 2 ग्राम मैन्कोजेब या 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करने से इस रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है। इसके अलावा बुआई से 15-20 दिनों पूर्व 2.5 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा पाउडर को 500 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर, बुआई के समय भूमि में मिला दें। इस रोग के प्रभावी रोकथाम के लिए कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत एवं थीरम 37.5 प्रतिशत (विटावेक्स पॉवर) का 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त मैन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए अथवा कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर अधिक प्रभावित स्थान पर मिट्टी में डूंच कर सिंचाई करें।