Isabgol Ki Kheti: इसबगोल की खेती कम उर्वराशक्ति वाली भूमि और शुष्क व कम सिंचाई वाले क्षेत्र में भी सफलतापूर्वक की जा रही है। फसल में उत्पादकता की कमी के अनेक कारणों में से रोग व कीटों का भी प्रमुख स्थान है। रोगों के कारण फसल उत्पादन में 30 से 50 प्रतिशत तक कमी आ जाती है।
मृदु आसिता (downy mildew)
मृदु आसिता को सामान्यतया डाउनी मिल्ड्यू के नाम से जाना जाता है। यह परेनोस्पोरा प्लांटेजीनीस नामक कवक से होता है। यह फसल के लिए सर्वाधिक नुकसानदेह होता है। कई बार इससे फसल पूर्णतया भी नष्ट हो जाती है। अधिक सघन फसल, अधिक बीज मात्रा, बार-बार सिंचाई व नमी का रहना तथा अधिक मात्रा में नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का उपयोग इस रोग को बढ़ाने में सहायक है।
इस रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए 3 ग्राम मेटालेक्सील (रिडोमिल एमजेड) प्रति कि.ग्रा. बीज में डालकर बीजोपचार करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 15 दिनों के अंतराल पर 0.025 प्रतिशत घोल के तीन बार छिड़काव करना चाहिए। नाइट्रोजन व पौष्टिक उर्वरक से भी इस रोग में कमी होती है।
उकठा रोग
इसबगोल का उकठा रोग
यह रोग फ्यूजेरियम नामक कवक के कारण होता है। यह कवक पौधों के जड़ तंत्र को नष्ट कर देता है, जिससे पानी व खाद्य पदार्थों का संचार रुकने के कारण पौधे सूख जाते हैं। इस रोग के प्रबंधन के लिए ट्राइकोडर्मा का 2 कि.ग्रा. पाउडर, 10 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हैक्टर डालने की संस्तुति की जाती है। साथ ही रोग ग्रसित खेत में फसल चक्र भी अपनाया जा सकता है।
एफिड (Aphid)
इसबगोल पर एफिड का प्रकोप
एफिड (एपिसगोस्पिपी) इसबगोल का महत्वपूर्णनाशी कीट है। इसका प्रकोप फसल की बुआई के 60-70 दिनों बाद फूलों की अवस्था पर होता है। इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत मेटसिस्टोक्स 25 ई.सी. या थियामेथोक्सम 25% Wg 10 ग्राम/15 लीटर पानी के साथ मिलाकर 12-15 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करते हैं।