भिंडी जायद और खरीफ मौसम की प्रमुख सब्जी फसल है, जो भारत के सभी राज्यों में प्रमुखता से उगाई जाती है, उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। दक्षिण भारत में भिंडी की खेती रबी के मौसम में भी की जाती है, मुख्यतः वहां की नम और गर्म जलवायु के कारण। यह हमारे देश के लगभग 498 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 5830 हजार टन भिंडी का उत्पादन होता है। गन्ने के रस को शुद्ध करने के लिए भिंडी के तने और जड़ों का भी उपयोग किया जाता है।
यदि किसान भाई वैज्ञानिक तरीके से नई किस्मों और तकनीकों को अपनाकर भिंडी की खेती करते हैं तो वे अपनी फसल का उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही अपनी लागत को कम करते हुए अधिक से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं।
भूमि (मृदा) और जलवायु
भिंडी की फसल के लिए लंबी अवधि का गर्म और नम वातावरण अच्छा माना जाता है। अच्छी बीज सेटिंग के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। 16 डिग्री सेल्सियस से नीचे बीजों का अंकुरण मुश्किल हो जाता है। भिंडी की फसल जल निकासी के उचित प्रबंधन के साथ दोमट प्रकार की मिट्टी के लिए सबसे उपयुक्त होती है। आमतौर पर मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.8 के बीच होता है। किसान भाइयों को फसल बोने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करानी चाहिए क्योंकि इससे यह पता चलता है कि खेत में किन पोषक तत्वों की कमी है और इसके अलावा मिट्टी की क्षारीयता और अम्लता का भी पता चल जाता है। किसान भाई खाद का प्रयोग मिट्टी की जांच कराकर करें।
बीज का चयन एवं बीज उपचार
उकठा, तना गलन, जड़ गलन, झुलसा, चूर्णिल आसिता रोगों की रोकथाम के लिए बीज को 2.5 ग्राम बैविस्टिन या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुआई करने से अनेक रोगों से बचा जा सकता है। अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी का उपचार 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कर सकते हैं। जीवाणु खाद से बीजों का उपचार करना भी बेहतर होता है, इससे लागत कम आती है और बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है। जीवाणु उर्वरकों में फास्फोरस घुलनशील जीवाणु टीका और एज़ोटोबैक्टर जीवाणु उर्वरक टीका का उपयोग किया जाना चाहिए।
बीज उपचार से फसल में रोगों से बचाव के साथ-साथ फसल की उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। किसान भाई हमेशा स्वस्थ और प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें।
बुवाई
बुवाई से पूर्व खेत की 2-3 बार गहरी जुताई कर लेनी चाहिए, इसके बाद खेत को समतल कर लेना चाहिए, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जल निकासी की समुचित व्यवस्था हो। बुआई के लिए हम तीन विधियों का प्रयोग कर सकते हैं।
1. नाली विधि - खेत की तैयारी के बाद एक मुख्य नाली के साथ-साथ अन्य नालियां बनाई जाती हैं, जिसमें नालियों के बीच की दूरी 2 फीट रखी जाती है। बीज नाली के दोनों किनारों पर दो पंक्तियों में बुआई करें, और बीज से बीज की दूरी 5 से 6 इंच तक रख सकते हैं बीज की गहराई 1 से 1.5 इंच तक रखते हैं।
2. मेड़ विधि - इस विधि में मेड़ बनाई जाती है मेड़ों के बीच की दूरी 2 फीट रखी जाती है और दो मेड़ के बीच में सिंचाई करने के बाद जब पैर थमने लग जाते हैं तब इसमें बीज की बुआई करते हैं बीज की गहराई नाली विधि के समान ही होती है मेड के दोनों किनारों पर हाथ से एक एक बीज की बुआई की जाती है।
3. मल्चिंग विधि - ड्रिप सिंचाई सुविधा लागू कर मल्चिंग विधि से भिंडी की बुआई की जाती है। इस विधि में एक क्यारी बनाई जाती है, जिस पर 25 माइक्रो मीटर की मल्चिंग प्लास्टिक शीट बिछाई जाती है, जिसमें समान दूरी पर छेद होते हैं, जिसमें एक एक बीज की बुआई की जाती है, बीज की गहराई 1 से 1.5 इंच और बीज से बीज की दूरी 5 से 6 इंच तक रखी जा सकती है। मल्चिंग विधि से खेतों में खरपतवार कम होते हैं। इस विधि को अपनाने से 15 से 16 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत होती है तथा कीड़ों का प्रकोप भी कम होता है। यदि अगेती भिंडी की फसल लेनी है तो बीज को 24 घंटे भिगोकर उपचारित कर बोना चाहिए।
बुआई का समय एवं बीज की मात्रा
भिन्डी की फसल को वर्ष में दो बार उगाया जा सकता है। ग्रीष्मकालीन भिन्डी की फसल उगाने के लिए फरवरी माह के प्रथम सप्ताह से मार्च तक आसानी से लगा सकते हैं। इस समय की बुआई हेतु 15 से 18 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। वर्षा ऋतु के बुआई हेतु मई एवं जून माह उपयुक्त रहता है। इस समय की बुआई के लिए 10 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। भिन्डी की संकर किस्मों के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
खाद एवं उर्वरक
भिन्डी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए हरी खाद या प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में 15 से 20 टन गोबर की खाद का प्रयोग बुआई से 20 से 25 दिन पहले करना चाहिए। 50 किलोग्राम (डी.ए.पी) डाई आमोनीयम फोस्फेट एवं 40 किलोग्राम म्यूरेटऑफ पोटाश बुआई से पूर्व मिट्टी में मिलाना चाहिए। 100 किलोग्राम यूरिया की मात्रा को थोड़े-थोड़े हिस्सों में 4 से 5 बार मे बुआई के 25 बाद 20 -20 दिन के अंतराल पर डालना चाहिए इससे भिन्डी के फसल उत्पादन पर प्रभावी असर पड़ेगा और उत्पादन भी अच्छा होगा।
निराई एवं गुड़ाई
किसान भाइयों को वर्षा काल में भिन्डी फसल के प्रारम्भिक अवस्था में 2 से 3 बार निराई एवं गुड़ाई करनी चाहिए समयानुसार खुरपी से खेत में लगी फसल की निराई एवं गुड़ाई करना चाहिए जिससे वायु संचार बना रहे और खर पतवार न पनपने पायें।पहली निराई एवं गुड़ाई 15 से 20 दिन पर करनी चाहिए इसके बाद दूसरी निराई एवं गुड़ाई 30 से 45 दिन बाद में करनी चाहिए। खर पतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 2 दिन बाद एवं जमाव के पहले स्टॉम्प नामक खर पतवार नाशक दवा का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ध्यान यह रहे की खेत में नमी जरूर रहे ।
सिंचाई
ग्रीष्मकालीन भिन्डी की फसल में 10 से 12 - दिन के अन्तराल पर अप्रैल माह में 7 से 8 दिन अन्तराल पर मई और जून माह में 4 से 5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वर्षाकालीन भिन्डी की फसल में नमी के कमी को देखकर सिंचाई करनी चाहिए वर्षा काल में यदि पानी अधिक समय तक खड़ा रह जाता है तो फसल पीला पड़ कर खराब हो जाता है इस लिए समुचित जल निकास की भी व्यवस्था करना जरूरी है।
भिन्डी फसल की तुडाई व सावधानी
भिन्डी फसल की तुडाई हर तीन या चार दिन पर करना चाहिए यदि फली तोड़ने में ज्यादा देरी करतें हैं तो फली का आकार बेढंगा और कड़ा हो जाता है। फली जब कच्चा एवं नरम अवस्था में बिल्कुल हरा दिखाई दे उस समय तुड़ाई का कार्य सर्वोत्तम होता है। सुबह का समय सबसे अच्छा होता है। भिन्डी की फसल के तुड़ाई का कार्य करने के लिए हाथ में दस्ताना पहनना जरूरी है यदि हो सके तो पूरा शरीर ढँक कर ही यह कार्य करना चाहिए जिससे शरीर में खुजली न हो सके।
उपज
भिन्डी फसल की उचित देखभाल एवं अच्छी किस्मों से 120 से 180 क्विंटल एवं संकर किस्मों से पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार लिया जा सकता है।
विपणन (मार्केटिंग)
फलियों को तोड़ कर जालीदार जूट की बोरियों या टोकरियों में भर कर उपर से पानी का छिड़काव करना चाहिए जिससे फली ताजा एवं हरा बाजार में पहुँच सके | यदि उचित वैज्ञानिक तकनीकी को अपनाकर खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 2,00,000 से 2,50,000 रुपये तक शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।