भाकृअनुप- भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ ने बौद्धिक सम्पदा अधिकार ( आईपीआर) के अंतर्गत अपने नवाचारों के लिए पेटेंट दाखिल करना शुरू कर दिया है और अब तक पांच पेटेंट दायर कर दिए हैं। जिसमें प्रमुख है, गन्ना बोने की 'केन- नोड प्रौद्योगिकी। इसके जरिए गन्ने के बीजों पर आने वाला खर्च एक तिहाई रह जाएगा। 'केन नोड' नाम की गन्ना बोने की इस नई तकनीक से न केवल कम बीज के इस्तेमाल से गन्ने का ज्यादा उत्पादन हो सकेगा, बल्कि इससे समय की भी काफी बचत होगी।
क्या है 'केन नोड' तकनीक
खेत के पास एक छोटी-सी नर्सरी बनाकर उसमें बराबर अनुपात में सड़ी हुई गोबर की खाद, मिट्टी और हो सके तो बालू की परत बिछा दी जाती है। इस परत में गन्ने के इन एक आंख वाले छोटे-छोटे टुकड़ों को बिछा दिया जाता है। इन टुकड़ों को एक लीटर पानी में 10 से 15 मि.ली. दवा में भिगोकर बिछाया जाता है, फिर इनके ऊपर खाद डाल दी जाती है। 5-6 दिनों में ही गन्ने के इन टुकड़ों की आंख फूलने लगती है, जिसका मतलब है कि ये अंकुरित होने लगते हैं।
इस नई तकनीक को ईजाद करने वाले भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ में कृषि वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत डा. एस. एन. सिंह बताते हैं, "आमतौर पर गन्ना बोने के लिए बीज के तौर पर तीन आंख वाले गन्ने की पेड़ी का प्रयोग किया जाता है, पर 'केन नोड' तकनीक में तीन आंखों की जगह एक आंख वाला टुकड़ा ही प्रयोग किया जाता है।"
गन्ना बोने को इस नई तकनीक के फायदों के बारे में डा. सिंह आगे बताते हैं, "गन्ने के 3-3 आंख वाले टुकड़े बोने के समय प्रति हैक्टर के लिए कम से कम 70 से 80 क्विंटल बीज की जरूरत होती है, जबकि 'केन नोड' तकनीक से केवल 15 से 18 क्विंटल प्रति हैक्टर बीज से ही काम चल जाता है। इस विधि से दूसरा फायदा यह है कि 27-28 दिनों में ही गन्ना जमीन से बाहर निकल आता है। इस तरह पुरानी विधियों की तुलना में इससे कम से कम 12 से 15 दिनों की बचत होती है। इस तकनीक का एक और फायदा यह है कि नर्सरी में गन्ने का जो बीज पहले से अंकुरित हो जाता है उसी बीज को बोया जाता है, जिससे पौधे के न उगने की संभावना बहुत कम हो जाती है। ऐसे में गन्ने के पौधों के बीच अंतर नहीं रहता और कम जमीन पर ज्यादा फसल उगाई जा सकेगी।"
आमतौर पर गन्ने के बीज की कीमत गन्ने की कीमतों से 15 फीसदी तक ज्यादा होती है। सामान्य दिनों में 300 से 400 रुपये तक बिकने वाले गन्ने के बीज बुआई के दिनों में 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकने लगते हैं। ऐसे में गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई यह तकनीक किसानों को काफी लाभ पहुंचा सकती है।
संस्थान कृषि प्रसार विभाग के वैज्ञानिकों ने बताया, "एक एकड़ में उगाए जाने वाले गन्ने के बीजों पर लगभग 22 हजार रुपये खर्च आता है। इस तकनीक का इस्तेमाल करके अब 6 हजार में काम चल जाएगा। इससे लगभग 12 हजार रुपये की बचत होगी। वहाँ 1 हेक्टर में 5 टन के करीब गन्ना उगाया जा सकेगा।"
संस्थान के वैज्ञानिकों ने अनुसार गन्ने को उगाने में ज्यादा पैसा लगता है और गन्ने की कीमतें नहीं बढ़ रही। यहां ज्यादातर किसान बटाई पर खेत लेते हैं। बड़े किसानों से उधार लेकर भूमिहीन किसान गन्ने की खेती करते हैं। जमीन और सिंचाई के पानी दोनों का अतिरिक्त मार उनकी कमर तोड़ देता है। ऐसे में नई तकनीकों के जरिए गन्ना उगाने में आने वाली लागत को कम करना जरूरी है, ताकि किसानों को मुनाफा हो सके।
स्रोतः भाकृअनुप- भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ