धान का ब्लास्ट रोग फफूंद से फैलता है। पौधों के सभी भाग इस रोग द्वारा प्रभावित होते हैं। असिंचित धान में इस रोग का प्रकोप बहुत अधिक होता है इस रोग का प्रकोप होने पर पत्तियां झुलसकर सूख जाती हैं। गांठों पर भी भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनसे पौधे को नुकसान पहुंचता है तनों की गांठे पूर्णतः या उसका कुछ भाग काला पड़ जाता है। कल्लों की गांठों पर कवक के आक्रमण से भूरे धब्बे बनते हैं, जिनसे गांठ के चारों ओर से घेर लेने से पौधे टूट जाते हैं। बालियों के निचले डंठल पर धूसर बादामी रंग के क्षतस्थल बनते हैं। इस रोग का प्रकोप जुलाई-सितंबर में अधिक होता है।
रोग के नियंत्रण के उपाय
इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई से पूर्व बीज को ट्राइसाइकलेजोल 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। दौजिया निकलने और पुण्यन की अवस्था में जरूरत पड़ने पर कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करें। खड़ी फसल में 250 ग्राम कार्बेन्डाजिम व 1.25 कि.ग्रा. इंडोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर / हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। झोंका अवरोधी प्रजातियां जैसे वी. एल. धान 206 मझेरा-7 (चेतको धान), वी. एल. धान 163 वी. एल. धान-221 (जेठी धान) का प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त वी. एल. धान- 61 ( सिंचित क्षेत्रों के लिए मध्यकालीन बुआई के लिए) आदि की बुआई करें। रोग के लक्षण दिखायी देने पर 10-12 दिनों के अंतराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15-20 ग्राम मात्रा का लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें।