चना एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसकी खेती देश के कई राज्यों में मुख्य रूप से रबी मौसम में की जाती है। ऐसे में यह फसल किसानों की आय में अहम भूमिका निभाती है। यह दुनिया भर के किसानों के लिए पोषण और आय का एक मूल्यवान स्रोत है। भारत में इसकी खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में रबी फसल के रूप में की जाती है। आमतौर पर चने की खेती को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उकठा (Fusarium wilt) रोग का खतरा भी शामिल है। मौसम में बदलाव और एक ही फसल को बार-बार खेत में बोने से चने की फसल में रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में किसान उचित प्रबंधन अपनाकर इससे छुटकारा पा सकते हैं।
चने का उकठा रोग
चने की फसल का यह रोग प्रमुख रूप से हानि पहुंचाता है। इस रोग का प्रकोप इतना भयावह है कि पूरा खेत इसकी चपेट में आ जाता है। इस रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूंद है। यह मृदा तथा बीजजनित रोग है। यह रोग पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकता है। उकठा रोग के लक्षण शुरुआत में खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाते हैं। इस रोग में पौधे की पत्तियां सूख जाती हैं, उसके बाद पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है। ग्रसित पौधे की जड़ के पास चीरा लगाने पर उसमें काली काली संरचना दिखाई पड़ती है।
चने की फसल में उकठा रोग की रोकथाम
उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुआई अक्टूबर के अन्त या नवंबर के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिए। कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या कार्वेक्सिन या 2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें। उन्नत देसी प्रजातियां जैसे-पूसा-372, जेजी 11, जेजी 12, जेजी 16. जेजी 63, जेजी 74, जेजी 130, जेजी 32, आरएसजी 888, आरएसजी 896, डीसीपी-92-3, हरियाणा चना-1, जीएनजी 663 व उन्नत काबुली प्रजातियां जैस-पूसा चमत्कार, जवाहर काबुली चना-1, विजय, फूले जी-95311, जेजीके 1. जेजीके 2. जेजीके 3 आदि उकठा रोगरोधी का चयन करें।