अनार भारत में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फल फसल है। इसका मूल स्थान ईरान है। उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का फलदार वृक्ष होने के कारण यह सूखा सहिष्णु होने के साथ-साथ कम लागत में अधिक आय भी देता है। अनार का फल कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, सल्फर, आयरन और विटामिन और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसका उपयोग भोजन के लिए और प्रसंस्कृत उत्पादों जैसे फलों के रस, सिरप, स्क्वैश, जेली, रस केंद्रित, कार्बोनेटेड शीतल पेय, अनार के बीज की गोलियां, एसिड आदि के उत्पादन के लिए भी किया जाता है।
प्रवर्धन विधि
अनार के पौधे को व्यावसायिक रूप से कलम, गूटी और टिश्यू कल्चर के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है।
कलम विधिः कटिंग या कलम के लिए 9 से 12 इंच लम्बी एक साल पुरानी शाखा, जिसमें 4-5 कलियां हों, का चयन कर लें। कलम लगाने के लिए सबसे उपयुक्त समय फरवरी माह होता है।
गूटी या एयर लेयरिंग विधिः एयर लेयरिंग विधि से पौधे तैयार करने के लिए 2-3 साल पुराने स्वस्थ पौधों का चयन करना चाहिए। इसके बाद पेंसिल आकार की शाखा का चुनाव करें। चुनी गयी शाखा में से 2.5- 3.0 सेंमी. छाल को उतार लें। इसके बाद जड़ फुटान हार्मोन से 1.5-2.5 ग्राम की दर से उपचारित करके नम माँस घास या फिर कोकोपिट से छिले हुई शाखा को लपेट दें। जब गूटी किये गए भाग की जड़ें भूरे रंग की होने लग जाएं, तब गूटी किये भाग को कट लगाकर मातृ पौधे से अलग कर लेना चाहिए।
अनार के पौधों पर लगने वाले हानिकारक कीट
अनार की तितली या फल छेदक- यह अनार का एक प्रमुख कीट है। यह अनार के विकासशील फलों में छेद कर देता है। इसके कारण फल फफूंद एवं जीवाणु संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।
नियंत्रण - फॉस्फोमिडॉन 0.03 प्रतिशत या सेविन 4 ग्राम प्रति लीटर का पानी में घोलकर बनाकर छिड़काव करके इस कीट से छुटकारा पाया जा सकता है।
अनार का फल छेदक
छाल भक्षक- यह कीट मुख्य तने पर छेद बनाता है तथा तने के अंदर सुरंगों का एक जाल बना लेता है। इसके कारण पौधे की शाखाएं तेज हवा चलने पर टूट जाती हैं।
नियंत्रण-इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए, कीट द्वारा बनाये गये छेदों को डीजल अथवा केरोसिन में रूई भिगोकर बंद कर देते हैं।
अनार के पौधों पर लगने वाले हानिकारक रोग
जीवाणु पत्ती धब्बा रोग या तैलीय धब्बा रोग- इस रोग में पादप के तने, पत्तियों एवं फलों पर छोटे गहरे भूरे रंग के पानी से लथपथ धब्बे बनते हैं। जब संक्रमण अधिक हो जाता है तो फल फटने लग जाते हैं।
नियंत्रण-इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन 0.5 ग्राम और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.0 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से मिश्रण करके छिड़काव करें।
फल फटना या फल फूटना- यह अनार का एक गंभीर दैहिक विकार है। जो सामान्यतया अनियमित सिंचाई, बोरॉन की कमी और दिन अथवा रात के तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव के कारण होता है। इस विकार में फल फट जाते हैं।
नियंत्रण- इसके नियंत्रण के लिए बोरॉन का 0.1% की दर से और GA, का 250 पीपीएम की दर से पर्णीय छिड़काव करें। इसके अलावा मृदा में उपयुक्त नमी बनाये रखें।
अनार का फल फटना