जानिए आलू की फसल में लगने वाली झुलसा रोग के लक्षण और रोकथाम के उपाय के बारे में

जानिए आलू की फसल में लगने वाली झुलसा रोग के लक्षण और रोकथाम के उपाय के बारे में
News Banner Image

Kisaan Helpline

Crops Dec 10, 2022

Potato Farming: आलू एक बहुत ही ज्यादा महतवपूर्ण सब्जी फसल है। आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है क्योंकि इसमें बहुत सारे पोषक तत्थ और विटामिन पाए जाते हैं। आलू भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है जैसे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और पंजाब आलू की फसल में बहुत से रोग लगते हैं जैसे झुलसा भूरा विगलन, काला मस्सा और स्कंब इसमें से झुलसा रोग, जो कि फफूंद से होता है. बहुत ही ज्यादा भयंकर रोग है। इससे फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। इस रोग के कारण आलू उगाने वाले किसान बहुत परेशान रहते हैं।

झुलसा रोग मुख्यतया दो प्रकार का होता है पहला अगेती झुलसा और दूसरा पछेती झुलसा। ये दोनों प्रकार के रोग अलग-अलग कवक से होते हैं तथा इनका प्रकोप का समय भी अलग-अलग होता है। 

आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग (Early blight disease in potato crop)
यह रोग खेत में मुख्यतया दिसम्बर के महीने में दिखाई देता है। यह रोग ड्यूटेरेमाइसिटीज वर्ग के कवक आल्टर्नेरिया सोलेनाई से होता है। इस रोग के कारण आलू की 40 से 70 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है।


लक्षण
  • इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पौधे की निचली पत्तियों पर पीले अथवा हल्के भूरे रंग के छोटे- छोटे धब्बे दिखाई देते हैं।
  • ये धब्बे गोल अंडाकार या छल्लेयुक्त दिखाई पड़ते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे आकार में बढ़ने लगते हैं और इस प्रकार पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।
  • अनुकूल मौसम में धब्बे पूरी पत्तियों में फैलने लगते हैं जिससे पत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
  • इस प्रकार के धब्बे आलू के कंद में भी दिखाई पड़ते हैं।
  • जब यह रोग उग्र संक्रमण की दशा में होता है तो इसके लक्षण पर्णवृन्त और तने में भी दिखाई देते हैं।
उपचार
  • कटाई के तुरन्त बाद मृत वृत्तों को जला देना चाहिए। 
  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए जैसे कुफरी जीवन और कुफरी सिंदूरी आदि।
  • बीज के उपचार के लिए, एगेलाल के 0.1 प्रतिशत घोल में बीज कंद को 30 मिनट के लिए डुबो कर बुआई करें।
  • फसल में रोग के हल्के लक्षण दिखाई देने पर जैविक ट्राइकोडर्मा विरिडी को 500 ग्राम मात्रा या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दें।
  • रासायनिक विधि से उपचार करने के लिए एजोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% SC की 300 मिली. मात्रा या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोजेब 64% WP की 600 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ खेत में 12 से 15 दिन के अंतराल पर 3 बार छिड़काव करें।

आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग (Late blight disease in potato crop)
इस रोग एवं रोगजनक का पता सबसे पहले जर्मनी के वैज्ञानिक एण्टोन डीबेरी ने लगाया था। आलू में इस रोग का जन्म मैक्सिको में हुआ, जो जंगली आलू पर पाया जाता है। लगभग 1830 से 1840 के बीच में यह रोग महामारी के रूप में यूरोप पहुंचा और 1845 में यूरोप की सारी आलू की फसल खत्म हो गई। आयरलैण्ड द्वीप में आलू की गया तथा आलू खाने से मनुष्य बीमारी के शिकार होने लगे। भारत में यह रोग यूरोप से लाये गए आलू के बीज द्वारा सन् 1870 में आया। यह रोग अगेती झुलसा से अधिक फसल नष्ट हो जाने के कारण अकाल पड़ नुकसानदायक होता है। यह फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद से होता है।


रोग के लक्षण
  • पछेती झुलसा में पत्तियां किनारों से या शिखर से झुलसना प्रारंभ कर देती हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती ही प्रभावित हो जाती है।
  • पतियों के निचले हिस्से में सफेद रंग की फफूंदी दिखाई देने लगती है और इस तरह रोग फैलने से पूरा पौधा काला पड़कर झुलस जाता है।
  • कंद नहीं बनते, अगर बनते भी हैं तो बहुत छोटे बनते हैं। इसके साथ ही साथ उनकी भंडारण क्षमता भी घट जाती है।
  • रोग के बढ़ने में वातावरण का विशेष प्रभाव होता है। यदि आसमान में 3 से 5 दिनों तक बादल छाए रहें और धूप ना निकले या हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो जाए तो निश्चित तौर पर जान लेना चाहिए कि यह बीमारी महामारी का रूप लेने वाली है।
रोग का उपचार
  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियां जैसे कुफरी अलंकार और कुफरी ज्योति आदि का उपयोग करना चाहिए।
  • इसके उपचार के लिए खेत में जैविक स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस को 250 ग्राम मात्रा को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दें। रासायनिक विधि से उपचार करने के लिए, मेटालैक्सिल 4% मैकोजेब 64% WP को 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें।
  • बीज के उपचार के लिए मेटालेक्सिल 85. मैकोजेब 64% 3 ग्राम प्रति लीटर पानी वाले घोल तैयार करें। बीज कद पर स्प्रे कर सकते हैं या बीज कद को 30 मिनट के लिए इस घोल में डूबा कर बुआई की जा सकती है। यह तैयार घोल को हैं और साथ ही सामान्यता आलू की भेद को 9 इंच ऊंचा बनाना चाहिए। इसके दो लाभ होते हैं; एक तो आलू अच्छे बढ़ते साथ रोग के फैलने की आशंका भी कम हो जाती है।
स्त्रोत : "खेती" ICAR 

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline