जानिए आलू की फसल में लगने वाला हानिकारक रोग तना ऊतक क्षय रोग की पहचान और रोकथाम के बारे में

जानिए आलू की फसल में लगने वाला हानिकारक रोग तना ऊतक क्षय रोग की पहचान और रोकथाम के बारे में
News Banner Image

Kisaan Helpline

Crops Aug 18, 2022

Potato Farming: सब्जियों में आलू की फसल का महत्वपूर्ण स्थान है। आलू एक लोकप्रिय और पौष्टिक खाद्य उत्पाद है। आलू की खेती देश के बड़े हिस्से में की जाती है। हमारे देश में इसकी खेती मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में की जाती है। आलू को सब्जियों का राजा भी कहा जाता है। वर्तमान में भारत इसके उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में आलू मुख्य रूप से कोटा, धौलपुर, भरतपुर, गंगानगर, सिरोही, अलवर, बूंदी, हनुमानगढ़ और जालोर में उगाया जाता है। आलू की फसल में कई प्रकार के वायरल रोग पाए जाते हैं,  जैसे-मोजेक लोफरोल, लिटललोफ आदि, जिनके लक्षणों में पत्तियों का चितकबरापन, छोटा होना, ऊपरी या निचली तरफ मुड़ना इत्यादि प्रमुख हैं।  ये रोग इतने उम्र नहीं होते कि फसल की उपज को ज्यादा हानि पहुंचायें। आलू में एक नया वायरल रोग पिछले 5-6 वर्षों में मैदानी इलाकों में सामने आया है। इस बीमारी का नाम तना ऊतक क्षय रोग (स्टेम नेक्रोसिस) है। यह रोग 'टोस्पो वायरस' के कारण होता है।
पिछले 7-8 वर्षों से तारजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में तना ऊतक क्षय रोग बहुतायत में पाया जा रहा है। इस रोग के लक्षण बुवाई के 20-25 दिन बाद ही दिखाई देते हैं। रोग के शुरूआती लक्षणों के कारण पौधों की वृद्धि बाधित हो जाती है, जिससे आलू में बनने वाले कंदों की संख्या और आकार कम हो जाता है। इस रोग के कारण उपज 25 से 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

रोगवाहक
यह रोग थ्रिप्स द्वारा फैलता है।


रोग की पहचान
रोग के शुरूआती लक्षण बुवाई के 20-25 दिन बाद तने और डंठल पर भूरे/काले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे लंबाई में फैलते हैं। बाद में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे भी दिखाई देने लगते हैं। तना ऊतक तपेदिक के कारण तने और पत्ते काले पड़ने लगते हैं। रोगग्रस्त क्षेत्र से तना सख्त हो जाता है और तना हल्के दबाव से आसानी से टूट जाता है। टहनियाँ मुरझाने लगती हैं और पौधे सूख जाते हैं।


रोग प्रबंधन
  • इस रोग से बचाव के लिए आलू की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक करनी चाहिए। इस समय बुवाई करने से रोग की गंभीरता कम हो जाती है।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करके भी इस बीमारी को रोका जा सकता है। कुफरी सिंदूरी, कुफरी आनंद और कुफरी लीमा जैसी किस्में स्टेम ऊतक तपेदिक के लिए प्रतिरोधी हैं।
  • शोध में यह भी पाया गया है कि आलू की खड़ी फसल में बुआई के 21 दिनों बाद फिप्रोनिल 5 एससी नामक दवा (10 लीटर पानी में 15 मि.ली. दवा) या डायफेन्थयुरॉन 50 डब्ल्यूपी (10 लीटर पानी में 10 ग्राम दवा) का दस दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करने से तना ऊतक क्षय रोग की उग्रता का प्रबंधन किया जा सकता है।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline