जानिए अलसी की फसल में लगने वाले हानिकारक कीट और रोगों से बचाव के उपाय

जानिए अलसी की फसल में लगने वाले हानिकारक कीट और रोगों से बचाव के उपाय
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Kisaan Helpline

Crops Dec 26, 2022

आइये जानते है अलसी के प्रमुख कीट रोग एवं प्रबन्धन के बारे में पूरी जानकारी के बारे में जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर पाए। 
अलसी की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग का प्रबन्धन कैसे करे-
कीट नियंत्रण :- 
  • लेफिग्मा: यह अलसी का बहुत ही हानिकारक कीट है। इस कीट की इल्लियाँ सुबह एवं शाम के समय पत्तियों को खाती हैं तथा दिन (धूप) में छिप जाती हैं। 
  • सेमीलूपरः इस कीट की इल्लियाँ भी पत्तियाँ को ही खाती हैं। उपयुक्त दोनों कीटों फसल को मार्च-अप्रैल में अधिक क्षति होती है। इनके नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण 4 प्रतिशत का 20 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल पर भुरकाव करें। 
  • अलसी की मक्खी: यह सबसे अधिक हानिकारक कीट है। इसकी इल्लियाँ चमकीले नारंगी रंग की होती हैं तथा फूलों एवं कलियों को खाकर फसल को क्षति पहुँचाती हैं। नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी कीटनाशी दवा की 1500 मि.ली. मात्रा / हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कीट-रोधी किस्मों की बोनी करना इस कीट के नियंत्रण करने का लिए सर्वोत्तम उपाय है।
  • ग्रीसी कटवर्म : यह कीट दिन में छिपा रहता है तथा रात में बाहर निकलकर छोटे कोमल पौधों को क्षति पहुँचाता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 4 प्रतिशत चूर्ण 20 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।
रोग नियंत्रण - 
  • गेरुआ रोग :- जनवरी के अन्तिम सप्ताह से रोग का प्रकोप प्रारंभ होकर फरवरी तक इसका फैलाव स्पष्ट दिखाई देता है। आरंभ में रोग में चमकदार नारंगी रंग के स्पॉट पत्तियों के दोनों ओर बनते हैं तथा धीरे-धीरे पौधों के सभी भागों पर फैल जाते हैं। फसल के पकने के समय रोग के स्पॉट गहरे लाल भूरे रंग में बदल जाते हैं, क्योंकि अधिकांश पत्तियाँ गिर जाती हैं। नियंत्रण हेतु फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत का केवल एक छिड़काव करें। गेरूआ रोग रोधी किस्में यथा नीलम, मुक्ता, आर-552 तथा किरण टी-397 का बोनी में उपयोग करें।
  • उकठा या ग्लानि रोग :- इस रोग का संक्रमण फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है। प्रभावित पौधे पर्याप्त नमी के रहते हुए पीले पड़ने लगते हैं और कुछ ही दिनों में मुरझाकर सूख जाते हैं। इस रोग को नियंत्रित करने हेतु केवल रोगरोधी जातियां यथा एन.पी.-12, एन.पी.-21, आर. आर.-5 एवं बी.के.-1 की बोनी करें। फसल चक्र अपनायें । 
  • चूर्णी फफूंद रोग :- इस रोग के लक्षण जनवरी के मध्य से फसल पर देखे जा सकते हैं। यह रोग सबसे पहले पौधों की सबसे नीचे की पुरानी पत्तियों पर सफेद चकतों के रूप में प्रकट होता है। रोग तीव्रता से बढ़ता है और 15-20 दिन में ही पूरी फसल पर फैल जाता है। गेरूआं रोग के नियंत्रण के लिए बनाई गई दवा इस रोग के नियंत्रण के लिए भी कारगर है। घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत का छिड़काव खड़ी फसल में करें अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 1 कि.ग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

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