ईसबगोल प्रमुख नगदी फसल है। जिसके बीज और हस्क का उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। किन्तु विभिन्न रोग-कीट के कारण इसकी उपज और गुणवता दोनों प्रभावित होती है। आपको बता दें कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में इसबगोल का उत्पादन किसान करते है। आर्थिक दृष्टि से यह फसल किसानों के लिए ज्यादा लाभकारी है।
रोग प्रबंधन
अंगमारी (झुलसा, ब्लाइट): निदान के लिए 60 ग्राम मैन्कोजेब को 300 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव करें।
उखटा (विल्ट): खड़ी फसल में रोग उपचार के लिए 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो सड़ी गोबर में मिलाकर प्रति हैक्टयर की दर से भुरकाव करें।
कीट प्रबंधन
मोयला: नियंत्रण के लिए वानस्पतिक कीटनाशी जैसे नीम तेल 1-2 प्रतिशत, करंज तेल 1-2 प्रतिशत, नीम बीज अर्क 2-5 प्रतिशत का उपयोग प्रारंभिक अवस्था में करना चाहिए। नत्रजन उर्वरक की केवल निर्धारित मात्रा ही उपयोग में लेंवे ज्यादा उपयोग से कीटों का प्रकोप बढ़ता है। रसायनिक नियंत्रण में डाईमिथोएट 1 मिली अथवा इमिडाक्लोरोप्रिड 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद छिड़काव दोहरावें।
दीमक, उदई : खड़ी फसल दोमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 4 लीटर को सिंचाई जल के साथ एक हैक्टयर फसल में देवे। साथ ही, फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एससी, 18 किलो दानदार को एक हैक्टेयर खड़ी फसल में डालना चाहिए।