जीरो टिलेज तकनीक: देश के कई क्षेत्रों में धान की कटाई देर से की जाती है और खेतों की तैयारी करते समय गेहूं की बुआई दिसंबर के अंत या जनवरी के पहले सप्ताह तक की जाती है। अच्छी लागत के बावजूद बुआई में देरी से उत्पादन में कमी आती है। देर से बुआई करने के कारण कटाई के समय तापमान अधिक होता है, जिससे उत्पादकता कम हो जाती है। खेत की तैयारी और बुआई की पारंपरिक विधि के विपरीत, जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से न केवल बुआई के समय में 15-20 दिन की बचत होती है, बल्कि उच्च उत्पादकता बनाए रखते हुए खेत की तैयारी की लागत भी कम हो जाती है और लागत को पूरी बचायी जा सकती है।
गेहूं की देर से बुआई करने से उत्पादन एवं उत्पादकता में गिरावट आती है। अब किसानों के सामने बड़ी चुनौती यह है कि बिना खेत तैयार किए, जुताई और समतल किए बुआई कैसे करें। जीरो टिलेज से खेत की बुआई और जुताई में समय बर्बाद नहीं करना पड़ता है। गेहूं के बीज की बुआई जीरो टिलेज मशीन से करना लाभदायक है। इस प्रकार अलग से सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
अगर कोई किसान जीरो टिलेज तकनीक (zero tillage technology) से गेहूं की बुआई करता है तो उसे दो फायदे होंगे, पहला फायदा खेत की जुताई होगी (कल्टीवेटर का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा), दूसरा फायदा बीज की कम संख्या होगी, इससे समय की भी बचत होगी और साथ में धन की बचत होगी।
जीरो टिलेज तकनीक (zero tillage technology) क्या है?
जीरो टिलेज धान की कटाई के बाद खेत को बिना जुताई किए मशीनों की सहायता से सीधी कतारों में बोने की एक अनूठी तकनीक है। इस तकनीक से खरीफ सीजन के तुरंत बाद गेहूं की बुआई करने से कम लागत में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
जीरो टिलेज मशीन
जीरो टिल- सीड-ड्रिल आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली सीड ड्रिल की तरह है। अंतर केवल इतना है कि इसमें सामान्य ड्रिल के चौड़े ब्लेड के बजाय पतले कांटे होते हैं जो बिना जुताई वाले खेत में नाली बनाते हैं जिसमें गेहूं के बीज और उर्वरक एक साथ गिरते हैं।
इस मशीन से धान की कटाई के बाद बचे हुए धान के डंठल को कुंड से निकालकर खेतों में बोया जा सकता है। जीरो-टिल-सीड-ड्रिल को 35-45 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है। 9-पंक्ति वाली जीरो-टिल-सीड-ड्रिल मशीन से एक घंटे में एक एकड़ खेत में बुआई की जा सकती है।
पहली सिंचाई 15 से 20 दिन बाद करें
जीरो टिलेज से बोई गई गेहूं की फसल में पहली सिंचाई 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए। यदि खेत में नमी की मात्रा अधिक हो तो पहली सिंचाई सामान्य अनुशंसा के आधार पर ही करें। शेष सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। खेत में जलभराव न होने दें। ऐसी तकनीक अपनाने से कई किसानों को काफी फायदा हो रहा है, जमीन की उर्वरता भी काफी बढ़ रही है।
खेत में नमी रहना जरूरी है
जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुआई करने के लिए खेत में नमी का ध्यान रखें। जीरो टिलेज मशीन से तभी बुआई करनी चाहिए जब खेत में चलते समय पैरों के निशान दिखें और ट्रैक्टर चल सके। नमी कम होने पर धान की फसल में एक सप्ताह पहले सिंचाई करें। धान की कटाई के बाद उचित नमी में गेहूं की बुआई करें। इससे लाभ मिल सकेगा।
जीरो टिलेज के फायदे
- पारंपरिक विधि से धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई के लिए खेत तैयार करने में 5-6 बार जुताई (लगभग 1500-2000 रुपये प्रति हेक्टेयर) का खर्च जीरो टिलेज तकनीक अपनाकर बचाया जा सकता है।
- इस तकनीक के प्रयोग से धान की कटाई के तुरंत बाद मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर गेहूं की बुआई करने से फसल अवधि में 20-25 दिन का अतिरिक्त समय मिल जाता है, जिससे गेहूं की पैदावार बढ़ जाती है।
- इस तकनीक से बोये गये गेहूं के बीज की गहराई 3-5 सेमी होती है तथा बीज पर हल्की मिट्टी की परत पड़ती है। इससे बीज संचयन बेहतर होता है।
- इस तकनीक को अपनाने से मिट्टी में फसल अवशेषों के योगदान से कार्बनिक पदार्थ के साथ-साथ पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी बढ़ जाते हैं।
- खरपतवारों का प्रकोप काफी हद तक कम किया जा सकता है।