Marigold Farming: भारत में पुष्प व्यवसाय में गेंदा का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। गेंदा फूल का पूजा-अर्चना के अलावा शादी-ब्याह, जन्मदिन. सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर पंडाल, मंडपद्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला, बुके, फूलदान आदि में भी प्रयोग किया जाता है।
गेंदा की खेती : गेंदा के फूल का इस्तेमाल मुर्गी के आहार के रूप में भी आजकल बड़े पैमाने पर हो रहा है। इसके प्रयोग से मुर्गी के अंडे की जर्दी का रंग पीला हो जाता है। इससे अण्डे की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, साथ ही आकर्षण भी बढ़ जाता है।
गेंदा की व्यावसायिक किस्में
गेंदा के फूलों की अधिक उपज लेने के लिए परंपरागत किस्मों की जगह उन्नत किस्में बोनी चाहिए। गेंदा की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में निम्न हैं:
अफ्रीकन गेंदा - इसके पौधे अनेक शाखाओं से युक्त लगभग 1 मीटर तक ऊंचे होते हैं। फूल गोलाकार, बहुगुणी पंखुड़ियों वाले तथा पीले व नारंगी रंग के होते हैं। बड़े आकार के फूलों का व्यास 7-8 सें.मी. होता है। इसमें कुछ बौनी किस्में भी होती हैं, जिनकी ऊंचाई सामान्यतः 20 सें.मी. तक होती है। अफ्रीकन गेंदा के अंतर्गत व्यावसायिक दृष्टिकोण से उगाये जाने वाले प्रभेद - पूसा नारंगी, पूसा वसन्त, अफ्रीकन येलो इत्यादि हैं।
फ्रांसिसी गेंदा - इस प्रजाति की ऊंचाई लगभग 25-30 सें.मी. तक होती है। इसमें अधिक शाखाएं नहीं होती हैं किन्तु इसमें इतने अधिक पुष्प आते हैं कि पूरा का पूरा पौधा ही पुष्पों से ढक जाता है। इस प्रजाति की कुछ उन्नत किस्में रेड ब्रोकेट, कपिड येलो. बोलेरो, बटन स्काच इत्यादि हैं।
खेती के लिए मृदा
गेंदा खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट एवं बलुआर दोमट मृदा सर्वोत्तम होती हैं. जिनमें उचित जल निकास की व्यवस्था हो ।
मृदा तैयारी
मृदा को समतल करने के बाद एक बार मृदा पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देसी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर, मृदा को भुरभुरा बनाने एवं कंकड़-पत्थर आदि को चुनकर बाहर निकाल दें। सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां बना लें।
खाद एवं उर्वरक
गेंदे की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी से पहले 200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हैक्टर की दर से मृदा में मिला दें। इसके बाद 120-160 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60-80 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 60-80 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग प्रति हैक्टर की दर से करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अन्तिम जुताई के समय मृदा में मिला दें। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा पौध रोपण के 30-40 दिनों के अन्दर प्रयोग करें।
प्रसारण
गेंदा का प्रसारण बीज एवं कटिंग दोनों विधियों से होता है। इसके लिए 300-400 ग्राम बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। इसे 500 वर्ग मीटर की बीज शैय्या में तैयार किया जाता है। बीज शैय्या में बीज की गहराई 1 सें.मी. से अधिक नहीं होनी चाहिए। जब कटिंग द्वारा गेंदा का प्रसारण किया जाता है तक उसमें ध्यान रखना चाहिए कि हमेशा कटिंग नये स्वस्थ पौधे से लें। इसमें मात्र 1-2 फूल खिले हों और कटिंग का आकार 4 इंच (10 सें.मी.) लंबा होना चाहिए। इस कटिंग पर रूटेक्स लगाकर बालू से भरी ट्रे में लगाना चाहिए। 20-22 दिनों बाद इसका खेत में रोपण करना चाहिए। गेंदा फूल की रोपाई खरीफ, रबी, जायद तीनों सीजन में बाजार की मांग के अनुसार की जाती है। इसे लगाने का उपयुक्त समय सितम्बर-अक्टूबर है।
विभिन्न मौसमों में अलग-अलग दूरियों पर गेंदा लगाया जाता है, जो निम्न है:
- खरीफ (जून से जुलाई: 60x45 सें.मी.
- रबी (सितम्बर-अक्टूबर) : 45 x 45 सें.मी.
- जायद (फरवरी-मार्च) : 45 x 30 सें.मी.
सिंचाई
खेत की नमी को देखते हुए 5-10 दिनों के अंतराल पर गेंदा में सिंचाई करनी चाहिए। यदि वर्षा हो जाये, तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
पिंचिंग
रोपाई के 30-40 दिनों के अन्दर पौधे की मुख्य शाकीय कली को तोड़ देना चाहिए। इस क्रिया से यद्यपि फूल थोड़ी देर से आयेंगे, परन्तु इससे प्रति पौधा फूल की संख्या एवं उपज में वृद्धि होती है। निराई-गुड़ाई लगभग 15-20 दिनों पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए। इससे मृदा में हवा का संचार ठीक तरह से होता है एवं वांछित खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। रोपाई के 60 से 70 दिनों पर गेंदा में फूल आता है, जो 90 से 100 दिनों तक आते रहते हैं। अतः फूल की तुड़ाई साधारणत: सायंकाल में की जाती है। फूल को थोड़ा डंठल के साथ तोड़ना श्रेयस्कर होता है। फूल के कार्टन इमें चारों तरफ एवं नीचे अखबार फैलाकर रखने चाहिए एवं ऊपर से फिर अखबार से ढक कर कार्टन बन्द करना चाहिए।
कीट और रोग प्रबंधन
- लीफ हॉपर, रेड स्पाइडर आदि इसे काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।
- गेंदा में मोजेक चूर्णी फफूंद एवं फुटरॉट मुख्य रूप से लगता है। मोजेक लगे पौधे को उखाड़कर मृदा में दबा दें एवं पौधों पर कीटनाशक दवा का छिड़काव करें, जिससे मोजेक के विषाणु स्थानान्तरित करने वाले कीट का नियंत्रण हो और इसका विस्तार दूसरे पौधे में न हो।
- चूर्णी फफूंद के नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत गंधक का छिड़काव करें।
- फुटरॉट के नियंत्रण के लिए इंडोफिल एम-45 0.25 प्रतिशत का 2-3 बार छिड़काव करें।
उपज
80-100 क्विंटल फूल/हैक्टर।
गेंदा के औषधीय गुण
औषधीय गुणों के कारण गेंदा का खास महत्व है। गेंदा फूल के औषधीय गुण निम्नलिखित हैं:
- कान दर्द में गेंदा की हरी पत्ती का रस कान में डालने पर दर्द दूर हो जाता है। खुजली, दिनाय तथा फोड़ा में हरी पत्ती का रस लगाने पर यह रोगाणुरोधी का काम करती है। अपरस के रोग में हरी पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है। अन्दरूनी चोट या मोच में गेंदा की हरी पत्ती के रस से मालिश करने पर लाभ होता है।
- साधारण कटने पर पत्तियों को मसलकर लगाने से खून का बहना बन्द हो जाता है।
- फूलों का अर्क निकालकर सेवन करने से खून शुद्ध होता है। | ताजे फूलों का रस खूनी बवासीर के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।