इस मौसम में करें खीरे की खेती, इन बातों का रखा ध्यान तो होगी बंपर पैदावार

इस मौसम में करें खीरे की खेती, इन बातों का रखा ध्यान तो होगी बंपर पैदावार
News Banner Image

Kisaan Helpline

Crops Apr 15, 2024

गर्मी के मौसम में चिलचिलाती धूप और चिलचिलाती गर्मी के बीच शरीर को पानी की बहुत जरूरत होती है। ऐसे में गर्मी के मौसम में रसदार फलों और सब्जियों की मांग काफी बढ़ जाती है। खीरा भी इसी क्रम में आता है, इसमें 80 प्रतिशत तक पानी पाया जाता है। खीरे की मांग साल भर रहती है। मांग को देखते हुए खीरे की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। आइए जानते हैं खीरे की खेती कैसे की जाती है।

खीरा, जिसका वैज्ञानिक नाम Cucumis sativus है, इसका उत्पत्ति स्थान भारत माना जाता है। खीरे का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। छोटे फलों का उपयोग अचार में तथा बड़े फलों का उपयोग सलाद बनाने तथा सब्जी के रूप में किया जाता है। खीरा न सिर्फ कब्ज से राहत दिलाता है बल्कि पेट से जुड़ी हर समस्या में भी फायदेमंद साबित होता है। इसके अलावा एसिडिटी और सीने की जलन में भी नियमित रूप से खीरा खाने से फायदा होता है। खीरे के नियमित सेवन से पेट की समस्याओं से राहत मिलती है। जिन लोगों को समस्या है उन्हें दही में खीरे को कद्दूकस करके उसमें पुदीना, काला नमक, काली मिर्च, जीरा और हींग डालकर रायते की तरह खाना चाहिए। इससे उन्हें काफी राहत मिलेगी। इसके बीज के तेल का उपयोग मस्तिष्क और शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके फलों में पानी 963 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 2.7 प्रतिशत, प्रोटीन 0.4 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत, खनिज 0.4 प्रतिशत और विटामिन बी और सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

खीरे के फलों की प्रकृति ठंडी होती है इसलिए गर्मियों में इसके फलों को नमक और मिर्च के साथ खाया जाता है। इसलिए गर्मियों में खीरे की भारी मांग रहती है और इसके उत्पादन से किसानों को अच्छी आमदनी होती है।

बुआई का समय

मैदानी क्षेत्रों में खीरे की बुआई दो बार की जा सकती है। ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई फरवरी-मार्च में तथा वर्षा ऋतु की फसलों की बुआई जून-जुलाई में की जाती है। वर्षा ऋतु की फसलों के लिए इन्हें बांस या लकड़ी के सहारे लगाने की जरूरत पड़ती है।

बीज दर

बीज 3-4 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से बोना चाहिए।

बुआई विधि

0.75 मी. x 0.75 मी. x 0.75 मी. (गहरा, लम्बा, चौड़ा) गड्ढा तैयार कर उसमें गोबर की खाद, फास्फोरस तथा 1/3 मात्रा में पोटाश व नाइट्रोजन डालकर भरना चाहिए तथा प्रत्येक गड्ढे में 3-4 बीज रोपित करना चाहिए तथा अंकुरण के बाद दो पौधे छोड़कर अन्य लगाना चाहिए। उखड़ गया है. दूसरी विधि में उचित दूरी पर नालियाँ बनाकर उसके दोनों ओर बीज रोपे जाते हैं। इस विधि में नालियों की दूरी दोगुनी कर देनी चाहिए।

दूरी

ग्रीष्मकालीन फसल के लिये 1.0-1.5 मी. पंक्ति से पंक्ति/नाली से नाली व 50-60 से.मी. पौधे से पौधे तथा वर्षाकालीन फसल के लिये 1.5 मी. पंक्ति से पंक्ति व 1.5 मी. पौधे से पौधे दूरी रखना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक

250 टन गोबर या कम्पोस्ट/हेक्टेयर, 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन/हेक्टेयर 40 किग्रा. फास्फोरस/हेक्टेयर 40 कि.ग्रा. पोटाश/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।

खाद एवं उर्वरक देने का समय

गोबर की खाद, फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन तीन भागों में - 1/3 भाग बुआई के समय, 1/3 भाग 4-5 पत्तियाँ आने पर तथा अंतिम भाग में। 1/3 भाग फूल आने के बाद देना चाहिए।

सिंचाई

बरसात के मौसम में इसके पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। शुष्क मौसम में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। खेत में जल निकासी की भी विशेष व्यवस्था करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

बड़ा मुनाफा

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक एक एकड़ जमीन में करीब 400 क्विंटल खीरा पैदा किया जा सकता है। खीरे की खेती करके आप प्रति सीजन 20 से 25 हजार रुपये की लागत पर लगभग 80 हजार से 1 लाख रुपये तक का मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline