Oats Farming: पशुओं को आहार के तौर पर देने के लिए जई कोमल तथा सुपाच्य है। इसमें क्रूड प्रोटीन 10-12 प्रतिशत होता है। जई, भूसा या सूखे चारे के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है। इसके लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त है। 15°-25° सेल्सियस तापमान उसकी खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। गर्म एवं शुष्क जलवायु का इसकी उपज पर विपरीत असर पड़ता है।
पोषकता
जई हरे चारे की रासायनिक पोषकता कटाई की अवस्था के अनुसार बदलती है। जई में 10-11 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, 55-56 प्रतिशत न्यूट्रल डिटरजेंट रेशा, 30-32 प्रतिशत अम्लीय डिटरजेंट रेशा, 22-23.5 प्रतिशत सेल्यूलोज एवं 17-20 प्रतिशत हेमीसेल्यूलोज पाया जाता है। मृदा एवं उसकी तैयारी
दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छे जल निकास के साथ जई फसल के लिए उपयुक्त होती है। खेत की जुताई देसी हल या हैरो या कल्टीवेटर से करके मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए। ऐसा करने से खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं।
बुआई का समय
बुआई का सर्वोत्तम समय 20 अक्टूबर से 10 नवम्बर है। निरंतर चारे के लिए कुछ भागों में दिसंबर से मार्च में भी इसकी बुआई की जाती है।
प्रजातियां
एक कटान: एचएफओ 11 केंट, बुंदेल जई-99-1, 99-2, 2001-3, बुंदेल जई - 2004, ओएस-6, 7, बुंदेल जई-2009-1, जेओ-3-93 एवं ओएस-3771
दो या तीन कटाई: जेएचओ-851, जेएचओ - 822, हरियाणा जई-8, यूपीओ-212, यूपीओ-921
बीज दर एवं बुआई की विधि
इसकी बीज दर 75-80 कि.ग्रा./हैक्टर है। बड़े व मोटे दाने की किस्म जैसी जई के लिए 100-125 कि.ग्रा./हैक्टर बीजदर अनुशंसित है। हल के पीछे या सीडड्रिल से लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सें.मी. होनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
खेत में 10-15 टन/ हैक्टर अच्छी सड़ी गोबर की खाद 10-15 दिन बुआई से पहले डालें। बुआई के समय 80:40:40 कि.ग्रा. एनपीके प्रति हैक्टर डालें। प्रत्येक कटाई के बाद 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन/हैक्टर का छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई
सामान्य स्थिति में बुआई के पूर्व सिंचाई के अलावा 4-5 सिंचाइयां देनी चाहिए। मिट्टी सूखी है तो बीज शैय्या से पहले प्रथम सिंचाई अच्छी रहती है। समयानुसार सिंचाई से कल्ले अच्छी तरह निकलते हैं। एकल कटाई किस्मों में 3-4, दो कटाई किस्मों या कई बार कटाई वाली किस्मों में 7-8 सिंचाई देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
मेटासल्फ्यूरान (8 ग्राम/हैक्टर) के साथ एक बार खुरपी से गुड़ाई द्वारा भी खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।
व्याधि-कीट
जड़ सड़न एवं लीफ ब्लॉच रोग की रोकथाम के लिए थीरम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। डाईमिथोएट 30 ई.सी. 0.05 प्रतिशत के छिड़काव से एफिड के प्रकोप से बचा जा सकता है।
कटाई
एक से ज्यादा कटाई वाली जई किस्मों की प्रथम कटाई 55 दिनों पर, दूसरी कटाई पहली कटाई के 45 दिनों बाद तथा तीसरी कटाई 50 प्रतिशत फूलों की अवस्था पर करनी चाहिए। बीज पैदावार के लिए फसल को पहली कटाई (50-55 दिन बुआई के बाद) के बाद छोड़ देना चाहिए।
पैदावार
एकल, दो बार या बहुकटाई किस्मों वाली हरे चारे की पैदावार 30-45, 40-55 एवं 45-60 टन/ हैक्टर क्रमशः होती है। बीज पैदावार की दशा में 25 टन/हैक्टर हरा चारा, 2-2.5 टन/ हैक्टर बीज एवं 2.5-3.0 टन/ हैक्टर भूसा मिलता है।