देश के किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से सरकारी स्तर पर कई प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। इस क्रम में अरहर के साथ हल्दी, अरहर के साथ अदरक, सहजन के साथ हल्दी, पपीते के साथ अदरक और हल्दी की अंतत खेती करके किसान अपनी आय को बढ़ाने के साथ हो खेती में होने वाले जोखिम को भी कम कर सकते हैं।
भारत की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रति इकाई भूमि पर दबाव बढ़ता जा रहा है। दिनोंदिन बढ़ती वर्षा की अनिश्चितता और जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों से उत्पादन लेना एक बड़ी चुनौती हो गया है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में अरहर की खेती किसानों द्वारा धान की मेड़ों पर की जाती थी। इससे उत्पादन कम होता था। हल्दी (कुरकुमा लोंगा) जिंजीबरेसी कुल की महत्वपूर्ण औषधि एवं मसाले वाली फसल है। इसका उपयोग मसाले एवं रंग के लिए प्रमुख रूप से किया जाता है। हल्दी की गुणवत्ता का आधार इसमें पाये जाने वाले रंगीन पदार्थ कुरक्यूमिन व वाष्पशील तेल की मात्रा है। यह एंटीऑक्सीडेंट का कार्य करती है। शरीर के अंदर रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियन्त्रित करने और नसों में रक्त के जमाव को हटाने में भी यह सहायक होती है। हल्दी की खेती छायादार स्थानों में आसानी से की जा सकती है। अतः किसान हल्दी की खेती अरहर के साथ अंतर्वर्ती फसल के रूप में कर सकते हैं। इस प्रकार हल्दी से होने वाले आर्थिक लाभ के साथ-साथ अरहर की खेती कर अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है। मध्य प्रदेश में दलहनी फसलों में अरहर की खेती बहुतायत से की जा रही है। वर्तमान में देश में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन जरूरत के मुकाबले 15-20 ग्राम अतिरिक्त दाल की आवश्यकता महसूस की जा रही है। बड़ी संख्या में लोग दोनों समय के भोजन में दाल को शामिल नहीं कर पा रहे हैं। अरहर की खेती को फसलचक्र में सम्मिलित करने से भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है। इसके साथ ही दलहनी फसलों के पौधों की जड़ों पर उपस्थित ग्रंथियां वायुमंडल से सीधे नाइट्रोजन ग्रहण कर पौधों को देती हैं। इससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है। अरहर की औसत उत्पादकता मध्य प्रदेश में 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टर है। हल्दी के साथ अरहर की खेती करके किसान 16-20 क्विंटल प्रति हैक्टर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, सिवनी द्वारा मसाला फसल हल्दी के उत्पादन एवं विपणन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्राम ढेंका, छुई में आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत किसानों को अरहर के साथ हल्दी की अंतर्वर्ती खेती पर प्रशिक्षण दिया गया और इस तकनीक का संपूर्ण प्रदर्शन ग्राम ढेंका के किसान श्री प्रहलाद ठाकुर के खेत पर किया गया।
अरहर की पौध तैयार करना
6 X 4 इंच के पॉलीथीन पैकेट में नीचे 3-4 छेद करके 1 भाग मिट्टी, 1 भाग रेत और 1 भाग गोबर की सड़ी खाद मिलाकर पैकेट में मिश्रण भरने के पश्चात प्रत्येक पैकेट में एक बीज की बुआई करते हैं। 30 दिनों में तैयार पौध की खेत में रोपाई करते हैं।
खाद एवं उर्वरक
अरहर के साथ हल्दी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुआई के समय उर्वरकों का प्रयोग एवं अनुशंसित मात्रा सारणी-2 में दर्शाई गयी है।
बुआई / रोपाई का समय
एक मीटर की उभरी हुई क्यारी पर ड्रिप की दो पंक्तियों में हल्दी की बुआई करते हैं। हल्दी फसल की कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखते हैं। अरहर की 30 दिनों की तैयार पौध की रोपाई कतार से कतार और पौधे से पौधे में 2 मीटर की दूरी पर करते हैं।
अरहर की शीर्ष कलिकाओं को तोड़ना
पौध रोपण के 20-25 दिनों बाद शीर्ष कलिकाओं को तोड़ दिया जाता है। शीर्ष कलिकाओं को तोड़ने के 20-25 दिनों बाद शाखाओं की कलिकाओं को तोड़ देते हैं।