मूंगफली की खेती के लिए दोमट बलुई, बलुई दोमट या हल्की दोमट मृदा अच्छी रहती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती, आलू, मटर, सब्जी मटर तथा राई की कटाई के बाद खाली खेतों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
ग्रीष्मकालीन मूंगफली की उन्नत प्रजातियां जैसे-टोजी-26. टीजी-37, डीएच-86, टीपीजी-1, सजी-99, टाईप-64, टाईप-28, चन्द्रा, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा, कौशल व प्रकाश उगाई जा सकती हैं। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की एसजी 84 व एम 522 किस्में सिंचित दशा में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद बोयी जा सकती हैं। यह अगस्त अन्त तक या सितम्बर अन्त तक तैयार हो जाती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा न डालें अन्यथा यह मूंगफली की पकने की अवधि बढ़ा देगा। नाइट्रोजन, फॉस्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा कुंड़ों में बुआई के समय बीज से लगभग 2-3 सें.मी. गहरे डालनी चाहिए। जिप्सम की शेष आधी मात्रा मूंगफली में फूल निकलने तथा खूंटी बनते समय टॉप ड्रेसिंग करके प्रयोग करनी चाहिए।
बोने से पूर्व बीज को थीरम 2 ग्राम और 10 ग्राम कार्बोन्डाजिम 50 प्रतिशत धूल के मिश्रण को 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा थायोफिनेट मिथाइल 1.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम + 1 ग्राम कार्बाक्सिन प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिये। इस शोधन के 5-6 घन्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 कि.ग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है। कल्चर को बीज में मिलाने के लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोल लें। फिर इस घोल में 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर मिला लें, जिससे बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाये। इस बीज को छाया में 2-3 घन्टे सुखाकर बुआई सुबह के समय या शाम को 4 बजे के बाद करें। तेज धूप में कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है।
मूंगफली की फसल में उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। यदि राई एवं मटर की खेती के बाद ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती की जा रही है, तो बुआई से पूर्व 100 क्विंटल/हैक्टर गोबर की खाद डालनी चाहिए। आलू तथा सब्जी मटर की फसलों में यदि गोबर की खाद प्रयोग की गयी है तो गोबर की खाद डालने की आवश्यकता नहीं है। राई तथा मटर की खेती के बाद उगाई जा रही मूंगफली में 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश तथा 200 कि.ग्रा. जिप्सम/हैक्टर की दर से प्रयोग करनी चाहिए। आलू एवं सब्जी मटर की खेती में 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 30 कि.ग्रा. फॉस्फेट, 45 कि.ग्रा. पोटाश तथा 300 कि.ग्रा. जिप्सम/हैक्टर फसलों में डालना उचित होगा।
सूरजमुखी की खेती
अप्रैल में सूरजमुखी की बुआई भी कर सकते हैं। वैसे तो मार्च के प्रथम पखवाड़े तक इसकी बुआई हो जाती है किन्तु गेहूं के बाद सूरजमुखी लेने पर अप्रैल में ही बुआई कर सकते हैं।
सूरजमुखी के लिए 8-10 कि.ग्रा. बीज को पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सें. मी. एवं बीज की गहराई 4-5 सें.मी. पर बुआई करें।
ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक सूरजमुखी की ई.सी. 68415 प्रजाति की बुआई कर सकते हैं, जो अच्छे जल निकास वाली गहरी दोमट मृदा तथा क्षारीय व अम्लीय स्तर को सहन कर सकती है।
बीज को 12 घंटे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घंटे सुखाकर बोने से जमाव शीघ्र होता है। बोने से पहले बीज को एप्रोन 35 एसडी की 6.0 ग्राम या कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम अथवा थीरम की 2.5 ग्राम मात्रा/कि.ग्रा. बीज से बीजोपचार अवश्य करें।
सूरजमुखी की बुआई के 15-20 दिनों बाद सिंचाई से पूर्व विरलीकरण (थिनिंग) किसान भाई अवश्य कर दें और उसके बाद सिंचाई करें रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमैथेलिन 30 प्रतिशत की मात्रा3.3 लीटर/हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के बाद एवं अंकुरण से पूर्व अर्थात बुआई के 3-4 दिनों पर छिड़काव करना चाहिए।