किसान भाई रबी फसलों की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की बुवाई कर सकते है। मूंग और उड़द जैसी दलहनी फसलों की बुवाई से यह फायदा होता है कि यह खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती हैं, जिससे दूसरी फसलों से भी बढ़िया उत्पादन मिलता है। भारत के मैदानी भागों में मुंग और उड़द की खेती मुख्यत: खरीफ सीजन में होती है। परंतु विगत दो दशकों से मुंग और उड़द की खेती ग्रीष्म ऋतु में भी लोकप्रिय हो रही है। देश में मुंग और उड़द की खेती महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू तथा बिहार में मुख्य रूप से की जाती है।
भूमि की तैयारी
उत्तर भारत की बलुई दोमट मिट्टी से लेकर मध्य भारत की लाल और काली मिट्टी में मूंग और उड़द की अच्छी खेती की जा सकती है। बिजाई से पहले खेत में उचित नमी होना जरूरी है। मूंग और उड़द की खेती के लिए बारीक पिसी और भुरभुरी खेत अच्छा माना जाता है। खेत की 2-3 जुताई, हेरोईंग पर्याप्त होती है। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं, ताकि मिट्टी की नमी बनी रहे।
बुवाई का उपयुक्त समय
ग्रीष्म/वसंत मूंग की बुआई का उपयुक्त समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है। उड़द की बुआई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है। यदि किसी कारणवश खेत समय से तैयार नहीं हो पाता है तो 60-65 दिनों में पकने वाली मूंग और उड़द की किस्मों की बुआई 15 अप्रैल के बाद की जा सकती है।
उन्नत किस्में
मूंग और उड़द की अच्छी उपज और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए अच्छी किस्म का चुनाव बहुत जरूरी है। इसलिए जल संसाधन की स्थिति, फसल चक्र और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त प्रजाति का चुनाव करें।
मूंग की उन्नत किस्में जैसे- पूसा विशाल, पूसा 9531, पूसा रत्ना, पूसा 672, सम्राट, मेहा, आर.एम.जी. 268, आर.एम.जी.-492, पंत मूंग 4, पंत मूंग 5, पंत मूंग 6, एस.एम.एल. 668, एस. एम. एल. 832, एच.यू.एम. 1, एच.यू.एम. 2, एच.यू.एम. 6, एच.यू. एम. 12, एच.यू.एम. 16. गंगा 8. एम.एल. 818, टी.एम.बी. 37, बसंती, आई.पी.एम. 02-14, आई.पी.एम. 02-14
उड़द की उन्नत किस्में जैसे- पंत उड़द 31. पंत उड़द 40. आई.पी. यू. 02-43, डब्लू.बी.यू. 108, शेखर 1, उत्तरा, आजाद उड़द 1, शेखर 2. शेखर 3, माश 1008, माश 479, माश 391 व सुजाता प्रमुख हैं।
बीज की मात्रा
बीज दर मुख्य रूप से बीज के आकार, नमी की स्थिति, बुवाई का समय, पौधे की उपज और उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है। ग्रीष्म मूंग व उड़द की बुवाई के लिए 20-25 किग्रा. बीज प्रति हे0 पर्याप्त है। इसकी फसल में कतारों से कतारों की दूरी 30 सेमी. बीजों की बुवाई मेड़ या सीड ड्रिल से कतारों में करनी चाहिए और बीजों के बीच की दूरी 4-5 सें.मी. इसे गहराई से बोना चाहिए।
बीज उपचार
बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या के लिए बीजों को प्रति कि.ग्रा. बीज को 2 से 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उचारित करने के बाद राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए।
उर्वरक की मात्रा
मृदा परीक्षण संस्तुतियों के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। मूंग की फसल के लिए 10-15 किग्रा. नाइट्रोजन, 45-50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 50 किग्रा. पोटाश व 20-25 किग्रा. बुवाई के समय गन्धक/हेक्टेयर की दर से कड़ों में देना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में जिंक या जिंक की कमी 120 किग्रा/हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
उड़द की फसल के लिए नत्रजन, फास्फोरस एवं गंधक (सल्फर) क्रमशः 15, 45 एवं 20 किग्रा. इसे बुआई के समय कुंडों में प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नवीनतम प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि यदि फली बनने की अवस्था में 2 प्रतिशत यूरिया घोल का पर्ण छिड़काव किया जाए तो निश्चित रूप से उपज में वृद्धि होती है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की समस्या बुवाई के 4-5 सप्ताह के शुरूआती दिनों में अधिक होती है। पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ भूमि का वातायन भी नष्ट हो जाता है, जिससे जड़ों की गांठों में सक्रिय जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन के संचयन में मदद मिलती है। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए 2.5-3.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर बिजाई के 2 से 3 दिन के भीतर छिड़काव करने पर 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं। चौड़ी पत्ती वाले एवं घास वाले खरपतवारों को बुवाई के तुरंत बाद या अंकुरण से पहले रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए 800 लीटर पानी में 4 लीटर अलाक्लोर या 2.22 लीटर फ्लूक्लोरेलिन (45 ईसी) नामक रसायन का छिड़काव करें। आवश्यकता है इसलिए बोआई के 15-20 दिन के अन्दर निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए।