गेंदा की खेती: भारत में फूल व्यवसाय में गेंदे का महत्वपूर्ण स्थान है। धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। गेंदा फूल का पूजा-अर्चना के अलावा, विवाह, जन्मदिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित होने वाले विभिन्न समारोहों के अवसर पर इसका उपयोग पंडालों, मंडपद्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला पुष्पमालाएं, गुलदस्ते, फूलदान आदि सजाने में भी किया जाता है।
गेंदे के फूलों का उपयोग मुर्गियों के चारे के रूप में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसके प्रयोग से मुर्गी के अंडे की जर्दी का रंग पीला हो जाता है। इससे न सिर्फ अंडों की गुणवत्ता बढ़ती है, बल्कि आकर्षण भी बढ़ता है।
गेंदा की खेती के लिए मिट्टी
गेंदा की खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट और बलुआर दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो।
गेंदा की खेती के लिए मिट्टी की तैयारी
मिट्टी को समतल करने के बाद एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके तथा हल चलाकर मिट्टी को भूरा कर लें तथा कंकड़-पत्थर आदि हटा दें। सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां बनाएं।
गेंदा की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी से पहले 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर खाद मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 120-160 किग्रा. नाइट्रोजन, 60-80 किग्रा. फास्फोरस एवं 60-80 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला दें। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा का प्रयोग रोपण के 30-40 दिन के अन्दर करें।
गेंदे की व्यावसायिक किस्में
गेंदे के फूलों की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए पारंपरिक किस्मों के स्थान पर उन्नत किस्मों को बोना चाहिए। गेंदे की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:
अफ़्रीकी गेंदा
इसके पौधे लगभग 1 मीटर ऊंचे और कई शाखाओं वाले होते हैं। फूल गोलाकार, कई पंखुड़ियों वाले और पीले और नारंगी रंग के होते हैं। 7-8 सेमी व्यास वाले बड़े फूल। ऐसा होता है। इसकी कुछ बौनी किस्में भी हैं, जिनकी ऊँचाई सामान्यतः 20 सेमी होती है। तक होती है। अफ्रीकन गेंदा के अंतर्गत व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली किस्में पूसा ऑरेंज, पूसा स्प्रिंग, अफ्रीकन येलो आदि हैं।
फ्रेंच गेंदा
इस प्रजाति की ऊंचाई लगभग 25-30 सेमी होती है। तक होती है। इसमें शाखाएं तो ज्यादा नहीं होती, लेकिन इसमें इतने फूल आते हैं कि पूरा पौधा फूलों से ढक जाता है। इस प्रजाति की कुछ उन्नत किस्में रेड ब्रॉकेट, क्यूपिड येलो, बोलेरो, बटन स्कॉच आदि हैं।
प्रसारण
गेंदे का प्रवर्धन बीज और कटाई दोनों तरीकों से किया जाता है। इसके लिए प्रति हेक्टेयर 300-400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसे 500 वर्ग मीटर की बीज क्यारी में तैयार किया जाता है. बीज शय्या में बीज की गहराई. से अधिक नहीं होनी चाहिए जब गेंदे का प्रवर्धन कलमों द्वारा किया जाता है तो यह ध्यान रखना चाहिए कि कलम हमेशा नये स्वस्थ पौधे से ही लें। इसमें केवल 1-2 फूल खिलने चाहिए और कटिंग का आकार 4 इंच (10 सेमी.) लंबा होना चाहिए. इस कलम पर रूटेक्स लगा कर रेत से भरी ट्रे में लगा देना चाहिए. इसे 20-22 दिन बाद खेत में रोपना चाहिए।
गेंदे के फूल की रोपाई बाजार की मांग के अनुसार खरीफ, रबी, जायद तीनों मौसमों में की जाती है। इसे लगाने का उचित समय सितंबर-अक्टूबर है। गेंदे को अलग-अलग मौसम में अलग-अलग दूरी पर लगाया जाता है, जो इस प्रकार हैं:
ख़रीफ़ (जून से जुलाई): 60 X 45 सेमी
रबी (सितंबर-अक्टूबर): 45 x 45 सेमी
जायद (फरवरी-मार्च): 45 x 30 सेमी सिंचाई
खेत की नमी को ध्यान में रखते हुए गेंदे की सिंचाई 5-10 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. यदि वर्षा हो तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
पिंचिंग
पौधे की मुख्य वानस्पतिक कलियाँ रोपाई के 30-40 दिन के अन्दर तोड़ देनी चाहिए। हालाँकि इस क्रिया से फूल थोड़ी देर से आएंगे, लेकिन इससे प्रति पौधे फूलों की संख्या और पैदावार बढ़ जाती है। लगभग 15-20 दिन बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे मिट्टी में वायु का संचार ठीक प्रकार से होता है और वांछित खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। रोपाई के 60 से 70 दिन बाद गेंदे के फूल आते हैं, जो 90 से 100 दिन तक आते रहते हैं। इसलिए फूल आमतौर पर शाम के समय तोड़े जाते हैं। फूल को छोटे डंठल से तोड़ना बेहतर होता है। फूलों के कार्टन को चारों तरफ और नीचे अखबार बिछाकर रखना चाहिए और फिर ऊपर से अखबार से ढककर कार्टन को बंद कर देना चाहिए।
कीट एवं रोग प्रबंधन
लीफ हॉपर, रेड स्पाइडर आदि इसे बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें। मोजेक चूर्णी फफूंद और फुट रॉट मुख्य रूप से गेंदे में पाए जाते हैं। मोज़ेक के पौधे को उखाड़कर मिट्टी में दबा दें और पौधों पर कीटनाशकों का छिड़काव करें, ताकि मोज़ेक वायरस फैलाने वाले कीट पर नियंत्रण हो सके और यह अन्य पौधों में न फैले। चूर्णी फफूंद के नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत सल्फर का छिड़काव करें। फुट रॉट को नियंत्रित करने के लिए इंडोफिल एम-45 0.25% का 2-3 बार छिड़काव करें।
उपज
80-100 क्विंटल फूल/हैक्टर।