गेहूँ की यह किस्म देगी कम सिंचाई में अधिक उत्पादन, जानिए इससे संबंधित खास बातें

गेहूँ की यह किस्म देगी कम सिंचाई में अधिक उत्पादन, जानिए इससे संबंधित खास बातें
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Kisaan Helpline

Crops Oct 22, 2021

हाल ही में, केंद्र सरकार ने कुपोषण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए फसलों की 35 किस्मों को शामिल किया है। कृषि विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में विकसित गेहूं की मालवीय 838 किस्म को शामिल किया है।

गेहूं की इस किस्म की सरहाना करते हुए इसकी खासियत बताई जिसमें 11 प्रतिशत प्रोटीन, 40 से 45 पीपीएम आयरन तथा 50 पीपीएम की मात्रा दर्ज की है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता 
बांग्लादेश में हाल ही में गेंहू की फसलों में व्हीट ब्लास्ट नाम की बीमारी लगने की बात सामने आई है। फंगस की वजह से फसलों में लगने वाले इस बीमारी की वजह से गेंहूं के पौधों में अनाज की बालियां आनी बंद हो जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हवा के माध्यम से फैलने की क्षमता रखने वाली ये बीमारी जल्द ही भारत में भी अपना प्रभाव दिखा सकती है। ऐसे में अगर बांग्लादेश से सटे भारत के राज्यों में मालवीय 838 जैसी रोग प्रतिरोधक प्रजातियों को लगाया जाए तो किसान भाई समय रहते भारी नुकसान से बच सकते हैं।

प्रोफेसर वीके मिश्रा के नेतृत्व में बीएचयू के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि मालवीय 838, जिसे हिंदू विश्वविद्यालय गेहूं (एचयूडब्ल्यू) 838 भी कहा जाता है, ‘गेहूं विस्फोट रोग’ के खिलाफ पूरी तरह से प्रतिरोधी है, जो एशियाई देशों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बनकर उभरा है। 2016 में ब्राजील से बांग्लादेश और भारतीय क्षेत्रों में विस्तार का खतरा पैदा करना शुरू कर दिया।

प्रोफेसर वीके मिश्रा बताते हैं कि भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल में देशभर से गेंहू के 6 प्रजातियों का परीक्षण किया गया था। जिसमें हमारे द्वारा विकसित मालवीय 838 की प्रजाति भी शामिल थी। लगभग 3 साल अलग-अलग परीक्षण करने के बाद संस्थान ने इसे उम्मीदों पर खड़ा पाया, जिसके बाद  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश को समर्पित किया।

जिंक और आयरन की प्रचूर मात्रा
BHU के अनुवांशिकी और पादप प्रजनन विभाग से प्रोफेसर वीके मिश्रा ने बताया कि इस प्रजाति को विकसित करने पर उनकी टीम ने तकरीबन 6 साल साथ काम किया। प्रशिक्षणों में पाया गया कि मालवीय 838 में जिंक और आयरन प्रचूर मात्रा में होती है, जो स्वास्थ्य के काफी लाभदायक है। वे बताते हैं कि इस प्रजाति के गेंहू की खेती करने से एक तो किसानों की उत्पादकता बढ़ जाएगी। साथ ही अन्य प्रजातियों के तुलना में सिंचाई की भी जरूरत कम पड़ेगी।

उत्पादन क्षमता
इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता एक हेक्टेयर में 50 क्विंटल है जबकि सामान्य बीज की क्षमता 40 से 45 क्विंटल है। इसमें अधिक उपज के साथ-साथ जिंक और आयरन की मात्रा भी अधिक है तथा कम पानी में अधिक उत्पादन देती है।

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