जिन क्षेत्रों में किसानों ने अभी तक गेहूँ की बुवाई नहीं की है, उन्हें अगेती किस्मों का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इसके अलावा हर हाल में पछेती किस्मों की बुआई 15 दिसंबर तक कर लें। नहीं तो पैदावार अच्छी नहीं होगी। ध्यान रहे कि अब गेहूँ की बिजाई के लिए पछेती किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए।
तापमान को ध्यान में रखते हुए किसानों को गेहूं की देर से बुवाई जल्दी करने की सलाह दी जाती है। बीज दर:- 125 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर। अनुशंसित किस्में:- डी.-3059, एच.डी.-3237, एच.डी.-3271, एच.डी.-3117, डब्ल्यूआर-544, पी.बी.डब्ल्यू.373। बीज को बाविस्टिन @ 1 ग्राम या थीरम @ 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए। दीमक के प्रकोप की बारहमासी समस्या वाले खेतों में, बुवाई से पहले सिंचाई पूर्व पानी या क्लोरपाइरीफॉस (20EC) @ 5 लीटर प्रति हेक्टेयर के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। N:P:K के लिए उर्वरक की अनुशंसित खुराक 80, 40 और 40 किग्रा/हेक्टेयर है।
उर्वरक प्रबन्धन : जहां तक संभव हो उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करना चाहिए। अगर मिट्टी की जांच संभव न हो तो समय से बुवाई करने पर यूरिया की मात्रा 110 किलोग्राम, डी.ए.पी. 50 किलोग्राम या एन.पी.के. (12:32:16) 75 किलोग्राम, म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलोग्राम तथा जिंक सल्फेट (21%) 10 किलोग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करें। जिंक सल्फेट वर्ष में एक ही बार प्रयोग करें। पछेती किस्मों की बुवाई के लिये यूरिया की मात्रा 80 किलोग्राम प्रति एकड़ तथा अन्य सभी उर्वरक समय से बुवाई वाली किस्मों में उर्वरकों की मात्रा की तरह ही प्रयोग करें। जब डी.ए.पी. व एन.पी.के. उपलब्ध न हो तब सिंगल सुपरफास्फेट 150 किलोग्राम तथा यूरिया की मात्रा 130 किलोग्राम प्रति एकड प्रयोग करें। डी.ए.पी. व म्यूरेट ऑफ पोटाश बुवाई के समय तथा जिंक सल्फेट बुवाई से पहले आखिरी जुताई से पहले खेत में बिखेर कर मिला दें। धान की फसल में जिंक सल्फेट का उपयोग किया हो तब गेहूँ में उपयोग नहीं करना चाहिए। यूरिया को बीज के साथ ड्रिल न करें। यूरिया की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद व शेष आधी मात्रा दुसरी सिंचाई के बाद बत्तर आने पर डालें। यदि गेहूं की बुवाई खेत की जुताई करने के बाद करें तब यूरिया की एक तिहाई मात्रा बुवाई से पहले खेत में मिला दें तथा शेष एक तिहाई मात्रा पहली व दूसरी सिंचाई के बाद प्रयोग करें। यदि गेहूं की बुवाई दालों वाली फसलों के बाद करें तब यूरिया की 25 प्रतिशत मात्रा कम प्रयोग करें तथा ज्वार व बाजरा की फसल के बाद बुवाई करने पर 25 प्रतिशत अधिक यूरिया की मात्रा का प्रयोग करें। क्षारीय मृदाओं में 25 प्रतिशत अधिक यूरिया की माला का प्रयोग करे।
सिंचाई प्रबन्धन
गेहूँ की फसल के लिये मुख्यतः 3 से 5 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। पानी की उपलब्धता एवं पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। गेहूँ की फसल में निम्न क्रांतिक अवस्थाएं हैं जिनमें पानी की कमी फसल में नहीं होनी चाहिए।
- प्रथम सिंचाई : मुख्य शिखर जड़ें बनने के समय (बुवाई के 21 दिन बाद)
- दूसरी सिंचाई : किल्ले फूटने की अवस्था (बुवाई के 40-45 दिन बाद)
- तृतीय सिंचाई : तने में गांठ बनने की अवस्था (बुवाई के 60-75 दिन बाद)
- चतुर्थ सिंचाई : फूल आने की अवस्था (बुवाई के 90-95 दिन बाद)
- पांचवी सिचाई : दाने में दुध बनने की अवस्था पर (बुवाई के 110-115 दिन बाद)
मुख्य जड़े निकलते समय बुवाई के 21 दिन बाद व बालियों में दाने बनने के समय फसल में पानी की कमी न होने दें। इन अवस्थाओं पर भूमि में नमी की कमी होने पर उत्पादन पर अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है अतः इन अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें।
खरपतवार प्रबन्धन
गेहूँ की फसल में खरपतवारों का नियन्त्रण करने के लिये निम्नलिखित खरपतवारनाशी में से किसी एक का बुवाई के 30-35 दिन बाद 150-200 लीटर पानी में मिलाकर फ्लैटफेन नोजल से प्रति एकड़ छिड़काव करें।
संकरी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण
महसी, जंगली जई आदि खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिये निम्न में से किसी एक खरपतवारनाशी का बुवाई के 30-35 दिन बाद 150-200 लीटर पानी में मिलाकरप्रति एकड़ छिड़काव करें।
1. पिनोक्साडेन (एक्सिल) 400 मि.ली. प्रति एकड़
2. फिनोक्साप्रोप (प्यूमापावर) 400 मि.ली. प्रति एकड़
3. क्लोडिनाफोप (टोपिक) 160 ग्राम प्रति एकड़
4. सल्फोसल्फ्यूरान (लीडर) 13 ग्राम प्रति एकड़
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, सैंजी, हिरणखुरी, जंगलीपालक आदि के नियन्त्रण के लिये निम्र में से किसी एक खरपतवारनाशी का छिड़काव संकर पत्ती वाले खरपतवारनाशी के छिड़काव से 6-7 दिन बाद करें।
1. मैटसल्फयूरान (एलपि) 8 ग्राम प्रति एकड़
2. कारफेन्ट्राजोन (एफिनिटी) 20 ग्राम प्रति एकड़
3. 2, 4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 250 ग्राम प्रति एकड़
दोनों तरह के खरपतवारों चौड़ी व सकरी पत्ती वालों का एक साथ नियन्त्रण करने के लिये निम्न में से किसी एक खरपतवारनाशी का प्रयोग करें।
1. सल्फोसल्फ्यूरान + मैटसल्फयूरान (टोटल ) 16 ग्राम प्रति एकड़
2. मीजोसल्फ्यूरान + आइडोसल्फयूरान (एटलांटिस ) 160 ग्राम प्रति एकड़ इसका दोहरा छिड़काव न करें जिससे गेहूँ की फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
3. फिनोक्साप्रोप + मेट्रीव्यूजिन ( एकार्डप्लस) 500 मि.ली. प्रति एकड़
खरपतवारनाशियों का प्रयोग प्रत्येक वर्ष बदलकर करें। जिन क्षेत्रों में गेहूँ के बाद मूँग व चारे वाली फसल मक्का व ज्वार की बुवाई करनी हो उन क्षेत्रों में सल्फोसल्फ्यूरान व एटलांटिस (मीजोसल्फ्युरान + आइडोसल्फ्युरान) का प्रयोग न करें।
फसल सुरक्षा प्रबन्धन
- पीला रतुआ, भूरा रतुआ, काला रतुआ एवं चूर्णिल आसिता (पाउड मिल्डयू) रोगों के नियन्त्रण के लिये 200 मि.ली. प्रोपीकोनाजोल (टिल्ट) 25 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- चैंपा/तेला (एफिड) के नियंत्रण के लिये 20 ग्रा. थ्यामेथोक्साम 25 डब्ल्यू. जी. या 40 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड 200 एस. एल. या 150 मि.ली. रोगोर (डाईमेथोएट 30 ई.सी. या 150 मि.ली. मैटासिस्टॉक्स (आक्सीडेमेटॉन) 25 ई.सी. का 80-100 लीटर पानी में मिलाकर 3-5 मीटर की पट्टी में खेत के चारों तरफ प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- गेहूँ की खड़ी फसल में दीमक के नियन्त्रण के लिये एक लीटर क्लोरपाईरीफोस 20 ई. सी. को 2 लीटर पानी में मिलाकर तैयार घोल को 20 किलोग्राम रेत या बालू में मिलाकर एक एकड़ गेहूं की फसल में बुरकाव करके तुरन्त सिचाई कर दें।