Karela Ki Kheti : गर्मी मौसम में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण एवं प्रमुख कद्दूवर्गीय सब्जियाँ (खीरा, तरबूज, खरबूज, लौकी, करेला, तोरई एवं कद्दू) आदि शामिल है। इन सब्जियों में कई पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। कद्दू में पाये जाने वाला विटामिन-ए रतौंधी रोग से बचाता है जबकी करेले में पाये जाने वाला चेरेटीन नामक रासायनिक पदार्थ शुगर के रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होता । है। खीरे का भी प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है जो गर्मियों में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। तरबूज में पाये जाने वाला लाइकोपीन, आघात और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने के साथ-साथ रक्तचाप को सामान्य बनाए रखने और रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी सहायक होता है। गर्मी के मौसम में करेला में अधिक फसल उत्पादन के लिए इसको विभिन्न प्रकार के जैविक तनावों मुख्यतः इसमें लगने वाले हानिकारक कीटो वं बीमारियों के प्रकोप से बचाना अति आवश्यक होता है।
खेत की तैयारी
करेले की फसल को विभिन्न प्रकार की भूमि उगाया जा सकता है। इनकी खेती के लिए भूमि उच्च कार्बनिक युक्त अच्छी तरह से सूखी हुई एवं उपजाऊ होनी चाहिए। उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त खेत उत्पादन के साथ-साथ उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक रहता है। खेत में बुआई से पूर्व मिट्टी पलटने वाले हल से 3-4 बार गहरी जुताई करनी चाहिए तथा पाटा चलाकर भूमि को भूरभूरी व समतल कर लेना चाहिए। खेत की तैयारी से लगभग एक महीने पहले खेत में अच्छी प्रकार से सड़ी हुई 22-25 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए। करेले की फसल के लिए रेतीली दोमट मृदा जिसका पी. एच. 6.0-7.0 हो उपयुक्त रहती है।
उन्नत पौध तैयार करने का तरीका
प्लग ट्रे विधि से करेले की विषाणु रहित पौध तैयार की जा सकती है। कोकोपीट, वर्मीकुलाइट व परलाइट को 3:1:1 के अनुपात या मिट्टी, बालू व अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 1:1:1 के अनुपात (आयतन के आधार पर) में मिश्रण बनाकर ट्रे के खानों को भर ले व बीजो की बुआई 1 से.मी. गहराई पर करें।
पॉलीथीन विधि से भी करेले की पौध तेयार की जा सकती है। इसके लिए 15 x 10 सें.मी. आकार की पॉलीथीन की थैलियों जिसमे जल निकास की व्यवस्था हेतु सूजे की सहायता से 5-6 स्थानों पर छेद हो उनमें 1:1:1 अनुपात में मिट्टी, बालू व सड़ी हुई गोबर की खाद भर ले। बीज की बुआई लगभग 1 सें.मी. की गहराई पर करके बालू की पतली परत बिछा लेते हैं तथा हजारे की सहायता से पानी लगायें। बीज दर लघभग 4-6 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रखना चाहिए। इस विधि से पौध 15 जनवरी के आसपास पॉलीहाउस में तैयार की जा सकती है जो लगभग 25-30 दिनों में (लगभग 15 फरवरी) खेत मे रोपाई के लिए तैयार हो जाती है इस प्रकार करेले की 1 महीने अगेती फसल ली जा सकती है। सीधी खेत में बुआई के लिए बुआई का समय फरवरी-मार्च उपयुक्त होता है। पंक्ति से पंक्ति की दुरी 1.5 मी. तथा पौधे से पौधे की दुरी 0.5 मी. रखनी चाहिए।
संतुलित मात्रा में खाद व उर्वरक प्रयोग
खाद व उर्वरकों का प्रयोग मृदा की जाँच के अनुसार करना चाहिए। इसके लिए निकटतम कृषि विज्ञानं केंद्र या जिला कृषि विभाग की मृदा प्रयोगशाला से मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए। कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका प्रयोग करने से मृदा में दीमक का प्रकोप हो जाता है।
15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में बुवाई से लगभग 1 महीने पहले मिला देना चाहिए। रासायनिक खादों में 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय मिलानी चाहिए तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागो में बाटकर बुवाई के 30 एवं 45 दिन बाद नालियों में डालकर सिचाई करनी चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
जब भी मिट्टी में नमी की कमी हो तब सिंचाई करनी चाहिए। खेत में अधिक समय तक जल भराव नहीं होना चाहिए। यदि खेत में ऐसा होता है तो तुरंत जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली करेले की फसल में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। करेले की फसल में ड्रिप सिंचाई पद्धति का भी प्रयोग किया जाता है, जिससे न केवल 30-40 प्रतिशत पानी की बचत होती है बल्कि पानी में घुलनशील खाद (एन.पी.के. 19:19:19) भी सिंचाई के साथ अच्छा काम करती है। बढ़ाने और अधिक उपज प्राप्त करने के लिए दिया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण
करेले की फसल में अच्छी वृद्धि और अधिक उपज के लिए प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवारों का नियंत्रण करना अति आवश्यक है। इस अवस्था में खरपतवार पानी, प्रकाश और पोषक तत्वों के लिए करेले से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसके साथ ही ये विभिन्न प्रकार के हानिकारक कीड़ों और रोगों को भी आश्रय देते हैं, जिससे उपज में भारी गिरावट आती है और उपज लगभग 20-80 प्रतिशत तक कम हो सकती है। ये खरपतवार शुरुआती 4-6 हफ्तों में ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। पहली दो सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुड़ाई करके इन्हें हटाया जा सकता है। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन (30 ईसी) 400 मिली 200 प्रति एकड़ पानी में घोलकर बिजाई से पहले छिड़काव करें।
गर्मी के मौसम में करेले की फसल में विशेष क्रियाए
- भूमि की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि हानिकारक कीटों के लार्वा भूमि की सतह पर आ जायें। ऐसे कीड़ों को पक्षी अपने भोजन के रूप में खाते हैं, जिससे गर्मियों में करेले की फसल में भी इनका प्रकोप कम हो जाता है।
- फल मक्खी के रोकथाम के लिए मीठे जहर, जो 50 मिली लीटर मैलाथियान का आधा कि.ग्रा. चीनी या गुड़ के साथ मिला कर 50 लीटर पानी में बनाये गए घोल का प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। फल मक्खी के नरों को आकर्षित करने के लिए "मिथाइल यूजीनोल" गन्ध पाश का प्रयोग भी किया जा सकता है ।
- विशेष रूप से ड्रिप सिंचाई के लिए अत्यधिक खारे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- यदि सिंचाई का पानी अधिक खारा है, तो इसे सहन करने वाली फसलों जैसे कि पालक और विदेशी पालक की खेती करना अधिक फायदेमंद होता है।
- भूमि और जलवायु के अनुकूल ही किस्मों का चयन करना चाहिए ।
- रासायनिक कीटनाशक, उर्वरक और खरपतवारनाशी आदि किसी विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदें।
- गोबर की खाद या कम्पोस्ट, सुपर फॉस्फेट व म्युरेट ऑफ पोटाश खेत तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
- बीजाई से पूर्व बीज उपचार अवश्य करना चाहिए।
- रोगों और कीड़ों से ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
- नाइट्रोजनयुक्त खाद डालने के बाद सिंचाई अवश्य करें।
- खाद पौधे के पत्तों या अन्य भाग पर नहीं पड़नी चाहिए।
- कीटनाशी तथा फफूँदनाशी दवाइयों का घोल आवश्यकता होने पर ही बनायें।
- आपस में अनुकूलता के आधार पर ही दवाइयों को मिलायें ।
- दवाई के घोल को प्लास्टिक या शीषे के बर्तन में ही घोलें ।
- रसायनों के प्रयोग के उपरांत आवश्यक प्रतिक्षा अवधि के बाद ही तुड़ाई करें ताकि कटाई उपरांत उत्पादन में रसायन का अवशेष न रहे।
- रसायनों का कम से कम प्रयोग करें तथा जैविक विकल्पों पर बल दें।
- तुड़ाई सावधानी से एवं उचित समय पर करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि न तो पौधे को और न ही उत्पादन को हानि पहुंचे।