लहसुन की खेती: लहसुन भारत में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण कन्द वाली मसाला फसल है। इसमें एलमिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियाँ पाई है जिन्हें अलग करके कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवं औषधीय तथा मसाला प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता का संरक्षण करना चाहिए। है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट संबंधी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलमन ए ऐजोइन इत्यादि के रूप में बहुत आम है "एक सेब एक दिन डॉक्टर को दूर करता है" इसी तरह एक लहसुन की कली एक दिन डॉक्टर को दूर करता है। यह एक नकदी फसल है तथा इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। इसका उपयोग आचार, चटनी, मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगंध तथा स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं मांस के विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। इसका उपयोग हाई ब्लड प्रेशर लिए कैंसर "गठिया की बीमारी, नपुंसकता की बीमारी के लिए होता है। एंटीबैक्टीरिया तथा एण्टी कैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है। यह विदेशी मुदा अर्जित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लहसुन की फसल में अनेक कीटों से नुकसान होता है किन्तु कुछ ही विशेष रूप से हानिकारक है। इनकी रोकथाम अत्यंत आवश्यक है अन्यथा पूरा परिश्रम तथा फसल पर किया गया व्यय निरर्थक हो जाता है तथा किसानों को घोर निराशा व हानि होती है। प्रस्तुत लेख में नाशीकीटों के विषय में जानकारी दी जा रही है जो हमारे किसान भाईयों के लिए उपयोगी साबित होगी।
रसाद कीट अथवा थ्रिप्स (थ्रिप्स टेबेसाई):
ये आकर में अत्यंत ही छोटे 1 से 2 मि.मीटर लंबे कोमल कीट होते हैं। ये कीट सफेद-भूरे या हल्के पीले रंग के होते हैं। इनके मुखांग रस चूसने वाले होते हैं। ये कीट सैकड़ों कि संख्या में पौधों कि पत्तियों के वृक्ष (कोंपलों) के अंदर छिपे रहते है।
इस कीट के शिशु (निम्फ) एवं प्रौढ़ दोनों ही अवस्थायें मुलायम पत्तियों का रस चूस कर उन्हें भारी क्षति पहुंचाती है। इस कीट से प्रभावित पत्तियों में जगह जगह पर सफेद चब्बे दिखाई देते है। इनका अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सिकुड़ जाती है और पौधों की बढ़वार रूक जाता है तथा प्रभावित पौधों के कंद छोटे रह जाते हैं, उपज में भारी कमी आ जाती है।
प्रबंधन :
- इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर नीम आधारित कीटनाशी (जैसे ईकोनीम, अचूक या ग्रोनीम) 3 से 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से आवश्यकतानुसार घोल तैयार कर शाम के समय फसल पर छिड़कना चाहिए तथा जरूरत पड़ने पर इसे 10 से 12 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार दोहराना भी चाहिए।
- कीट के बहुत ही अधिक प्रकोप की स्थिति में फसल पर डाईमेथोएट 30 ई.सी. 650 मिलीलीटर / 600 लीटर पानी के साथ अथवा मेटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. 1 लीटर / 600 लीटर पानी के साथ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 5 मिलीलीटर 15 लीटर पानी के साथ मिला करके छिड़काव करना चाहिए।
- फसल पर पाये जाने वाले परभक्षी कीटों जैसे लेडी बर्ड बीटील, क्रायसोपा आदि का संरक्षण करना चाहिए।
प्याज की मक्खी / प्याज का मैगट (हाईलिमिया ऍटीकुआ):
यह मक्खी प्याज की फसल का प्रमुख हानिकारक कीट है तथा अनेकों दशाओं में ये लहसुन की फसल को भी नुकसान पहुंचाता हुआ पाया गया है। ये कीट है अपने अंडे जमीन के पास वाले भागों पर देता है तथा इसके मैगट (सूंडियां) पौधों के भूमि के पास वाले भाग, आधारीय तने में घुस जाते है। कभी कभी मैगट की संख्या 2 से 3 तक अथवा इससे भी अधिक हो सकती है। इनसे लहसुन का भूमि के पास वाले तने का भाग सड़-गल कर नष्ट हो जाता है तथा कुछ समय पश्चात पूरे का पूरा पौधा ही सूख जाता है। कभी कभी तो इस कीट द्वारा फसल को भारी मात्रा में क्षति होती हैं।
प्रबंधन:
- लहसुन की फसल की रोपाई से पूर्व, खेत की तैयारी करते समय नीम की खली 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जुताई बाद भूमि में मिलानी चाहिए।
- खेत की तैयारी करते समय कीटनाशी जैसे क्लोरोपायरीफॉस 5 प्रतिशत, मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत की दर से जुताई करते समय भूमि में मिलाकर ही फसल की रोपाई करनी चाहिए।
- लहसुन की खड़ी फसल में इस कीट (मैगट) का प्रकोप दिखाई देने पर कीटनाशी दवा जैसे की क्वीनालफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से आवश्यकतानुसार मात्रा में घोल कर शाम के समय पर छिड़काव करें तथा जरूरत के अनुरूप इस दवा को 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार पुनः दोहरायें।
- फसल पकने होने की अवस्था में किसी भी दैहिक कीटनाशियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
लहसुन की फसल में ईरीयोंफीड माईट (ऐसीरीया ट्यूलीपी) का भी प्रकोप देखा जाता है ये माईट खड़ी फसल तथा संघ्रहित लहसुन को नुकसान पहुंचाती है अतः माईट के प्रकोप दिखाई देने पर फसल पर प्रोपरगाईट 57 प्रतिशत दवा (2 मिलीलीटर लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए। भंडारण के दौरान माईट ग्रस्त लहसुन को नष्ट करना चाहिए तथा उनको बीज के रूप में भी काम में नहीं लेना चाहिए।
लहसुन की फसल को निमोटोड से भी हानि पहुंचती है। इसलिए किसान भाई फसल का समय- पर निरीक्षण करते रहें। निमोटोड लहसुन की जड़ों, बल्व तथा तने को हानि पहुंचाता है जिससे इसकी उपज में बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में निमोटोड का प्रकोप वर्ष प्रति वर्ष होता है वहां फसल चक्र अपनायें तथा लहसुन की बोनी के पूर्व डाईक्लोरोप्रोपेन- डाइक्लोरोप्रोपान (डी.डी.) रे ) से भूमि का धूमन (फ्यूमिगेट) जरूर कर लें।