सर्दी का मौसम आते ही बाज़ार में कंद-मूलों की बहार आ जाती है। गाजर, मूली, शक्करकंद, चुकन्दर, रतालू और गराडू, एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट और पौष्टिक पूरे मालवा क्षेत्र में शाम होते ही गराडू बेचने वालों की विशेष दुकानें सजती है। इन पर विशेष रूप से लिखा होता है: सर्दी का दुश्मन गराडू । आजकल शादी के मौके पर भी गराडू के विशेष स्टाल लगते हैं जहां बच्चों व बूढ़ों सभी की अच्छी खासी भीड़ जुटी होती है। नींबू युक्त मसालेदार गरमागरम गराडू खाने का मज़ा ही कुछ और है।
गराडू एक जड़ फसल है जो अपने कंदों के लिए पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। कार्बोहायड्रेट का यह एक उम्दा स्रोत है। जो डायोस्कोरेसी परिवार से आती है। आम किसान इसकी खेती आसानी से कर सकते हैं, अगर किसान समय-समय पर इसकी देखभाल करते रहें तो उन्हें इस खेती से अच्छा मुनाफा मिल सकता है। आप को बता दे की गराडू की खेती में पहले साल में एक एकड़ में लगभग चालीस हजार रुपए का खर्च आता है। गराडू की खेती के लिए उपयोगी सामग्री जैसे- जीआई तार, बांस, ड्रिप और अन्य सामान एक बार खरीदने के बाद 5-6 साल तक चलते हैं। जहा पानी की कम होने पर ड्रिप सिंचाई की सहायता से गराडू की खेती की जा सकती है।
गराडू के उपयोग
गराडू एक जमीकंद है। यह विटामिन, खनिज और फाइबर का बहुत अच्छा स्रोत है। गराडू में कुछ ऐसे तत्व भी पाए जाते हैं जो दिमाग की कार्यप्रणाली को सुचारू और विकसित करने में सहायक होते हैं। इसके सेवन से रजोनिवृत्ति में भी लाभ मिलता है। इस दौरान खून में एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है इसलिए इसे बढ़ाने में मदद मिलती है। गराडू में एंटी-केसर गुण भी होते हैं। इसके अलावा यह ब्लड लेवल को भी नियंत्रित रखता है। इसमें मौजूद फाइबर भी कब्ज की समस्या को दूर करने में मददगार होता है। यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करता है। इसे भूनकर, उबालकर, पकाकर और चूर्ण बनाकर किसी भी रूप में सेवन किया जा सकता है।
गराडू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
गराडू मूल रूप से कन्द वाली फसल है और इसे सभी प्रकार की मिट्टी मे ऊगा सकता है। गराडू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी, पर्याप्त जलनिकास वाली काली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।
गराडू की खेती के लिए खेत की तैयारी
गराडू की खेती के लिए खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले फरवरी में माह में खेत को पलाऊ करें, पलाऊ करने के बाद खेत को कल्टीवेटर से अच्छी तरह खेत की जुताई करें, जुताई के पश्च्यात रोटरवेटर की सहायता से खेत का समतलीकरण करें। और फिर खेत में पांच ट्राली प्रति एकड़ की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें और उसको अच्छी तरह फैला कर मिट्टी में मिला दें। इसके बाद बेडमेकर की सहायता से खेत में क्यारियाँ बनाये, गराडू के अच्छे उत्पादन के लिए गराडू की बुवाई क्यारियाँ बनाकर और ड्रिप डालकर की जाती है।
गराडू की ड्रिप पद्धति (टपक सिंचाई तकनीक) से खेती में
गराडू की खेती के लिए पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फीट रखें और बेड 1.5 फुट ऊंचा 2 फुट चौड़ा रखें और एक बेड से दूसरे बेड की दुरी 3 फीट रखें।
गराडू की बुवाई का उचित समय
गराडू की बुवाई के लिए 1 मई से 30 जून तक का समय उचित समय है।
गराडू की बुवाई के लिए बीज की मात्रा
गराडू की बुवाई के लिए गराडू के टुकड़े 100 से 200 ग्राम रखें, बीज की उचित मात्रा 1000 से 1200 किलोग्राम प्रति एकड़ है।
खाद की मात्रा
गराडू की खेती में अच्छा उत्पादन लेने के लिए बुवाई से पहले सुपर फास्फेट 200 किलो, यूरिया 30 किलो और पोटाश 100 किलो प्रति एकड़ में डालें। फिर गराडू की बुआई करें। बोने के कुछ समय बाद गराडू अंकुरित होकर जमीन से बाहर आ जाता है, गराडू को मई के महीने में बोने के बाद सर्दियों में (नवंबर-दिसंबर के महीने में) इसकी खुदाई की जाती है।
पैदावार
गराडू की पैदावार अच्छी तकनीक और मौसम की अनुकूलता के आधार पर प्रति एकड़ 70 से 80 क्विंटल होता है। बाजार में गराडू 30 से 40 रुपये किलो बिक जाता है।