आम को फलों का राजा कहते हैं। भारत में आम की खेती 2258 हजार हेक्टेयर में होती है, जिससे कुल 21822 हजार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। भारत में आम की उत्पादकता 9.7 टन/ हेक्टेयर है। बिहार में आम की खेती 149 हजार हेक्टेयर होती तथा कुल उत्पादन 2443 हजार टन है। बिहार में आम की उत्पादकता 16.37 टन/हेक्टेयर है, जो राष्ट्रीय उत्पादकता से बहुत ज्यादा है। आम के बाग में मंजर आने से पूर्व दिसम्बर माह में बाग का प्रबंधन कैसे करें? यह एक महत्त्व पूर्ण प्रश्नं है। क्योकि अभी किया हुवा बाग का प्रबंधन ही निर्धारित करेगा की पेड़ पर कितने फल लगेंगे तथा उनकी गुणवक्ता कैसी होगी।
आम की खेती की लाभप्रदता मुख्य रूप से समय पर बाग में किये जाने वाले विभिन्न कृषि कार्यो पर निर्भर करती है। एक भी कृषि कार्य या गतिविधि में देरी से बागवान को भारी नुकसान होता है और लाभहीन उद्यम हो कर रह जाता है। इसलिए आम उत्पादकों के लाभ को दृष्टिगत इस आलेख को लिखा गया है।
इन सिफारिशों को अपनाने से निश्चित रूप से फल उत्पादकों को अपनी उत्पादों की उत्पादकता, गुणवत्ता के साथ-साथ शुद्ध रिटर्न में वृद्धि करने में मदद मिलेगी। जहाँ कही भी डाई-बैक रोग के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं। इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की जहाँ तक टहनी सुख गई है। उसके आगे 5-10 सेमी हरे हिस्से तक टहनी की कटाई-छंटाई करके उसी दिन कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें तथा 10-15 दिन के अंतराल पर एक छिड़काव पुनः करें। आम के पेड़ में गमोसिस भी एक बड़ी समस्या है इसके नियंत्रण के लिए सतह को साफ करें और प्रभावित हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएं या प्रति पेड़ 200-400 ग्राम कॉपर सल्फेट मुख्य ताने पर लगाएं । गुम्मा व्याधि का संक्रमण होने पर एन ए ए (200 पीपी एम) (2 ग्राम प्रति 10 लीटर) या (90 मि.ली. प्रति 200 लीटर) का छिड़काव करें।
इस वर्ष आम के बागों में पर्याप्त नमी है, इसलिए सिचाई की आवश्यकता नही है, अन्यथा हलकी सिचाई करना पड़ता। दिसम्बर माह में बाग की हलकी जुताई करें और बाग से खरपतवार निकाल दें, जिससे मिज कीट, फल मक्खी, गुजिया कीट एव जाले वाले कीट की अवस्थाए नष्ट हो जाएँ। कुछ तो गुड़ाई करते समय ही मर जाती हैं, कुछ परजीवी एव परभक्षी कीड़ों या दूसरे जीवों का शिकार हो जाती हैं और कुछ जमीन से ऊपर आने पर अधिक सर्दी या ताप की वजह से मर जाती है।
पहले आम में मिली बग को कम महत्त्व का कीट समझा जाता था, लेकिन विगत कुछ वर्षो से यह कीट आम का एक महत्त्व कीट हो गया है। यदि इसका ससमय उचित प्रबंधन नही किया गया तो आम उत्पादक किसान को भारी नुकसान उठाना पड सकता है। इस महीने के अंत तक मिली बग के नियंत्रण के लिए आम के पेड़ की बैंडिंग की व्यवस्था करें, 25-30 सेमी की चौड़ाई वाली एक अल्केथेन शीट (400 गेज) को 30-40 सेमी की ऊंचाई पर पेड़ के तने के चारों ओर लपेटा जाना चाहिए। इस शीट को दोनों छोर पर बांधा जाना चाहिए और पेड़ पर चढ़ने के लिए मीली बग कीट को रोकने के लिए निचले सिरे पर ग्रीस लगाया जाना चाहिए। मिली बग कीट के नियंत्रण के लिए पेड़ के नीचे मिटटी में कार्बोसल्फान @ 1 मिली प्रति 100 लीटर पानी) या क्लोरपायरीफॉस ग्रेन्यूल्स (250 ग्राम प्रति पेड़) का छिड़काव या बुरकाव करना चाहिए । फसल अवशेषों को हटा दिया जाना चाहिए और जला दिया जाना चाहिए। खेत को खरपतवार और मलबे से मुक्त होना चाहिए। फसल सुरक्षा के विभिन्न उत्पाद मीलीबग के खिलाफ सीमित प्रभावशीलता के होते हैं क्योंकि इसकी दरारें, और उसके शरीर को मोम द्वारा कवर करने की वजह मुख्य कारण है। इसलिए प्रणालीगत कीटनाशकों का उपयोग भारी संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। प्रोफोफोस 50 ईसी @ 2 मिलीलीटर प्रति लीटर (या) डिक्लोरवोस 76 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर (या) एसीफेट 75 एसपी 2 ग्राम प्रति लीटर या क्लोरपीरिफोस 20 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से कीट की उग्रता में कमी आती है। दिसम्बर माह में छाल खाने वाले और मुख्य तने में छेद ( ट्रंक बोरिंग) कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पहले छेदों को पहचानें और उस क्षेत्र को साफ करें और इन छेदों में डाइक्लोरवोस या मोनोक्रोटोफॉस (1 मिली लीटर दवा प्रति 2 लीटर पानी) लगाएं। कीटनाशक डालने के बाद इन छिद्रों को वैक्स या गीली मिट्टी से बंद (प्लग) कर देना चाहिए।यदि गमोसिस के लक्षण दिखाई देते हैं, तो सतह को साफ करें और प्रभावित हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएं। जनवरी माह में कभी कभी बौर जल्दी निकल आते है, यथासम्भव तोड़ देना चाहिए। इससे गुम्मा रोग का प्रकोप कम हो जाता है। बौर निकलने के समय पुष्प मिज कीट का प्रकोप दिखते ही क्विनालफास (1 मि.ली. प्रति लीटर) या डामेथोएट (1.5 मि.ली. प्रति लीटर) पानी में घोल कर छिड़काव किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसन्धान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा 848125, समस्तीपुर,बिहार