कपास में सफेद मक्खी, थ्रिप्स एवं हरे तेले का मुख्य रुप में प्रकोप होता है। तीनों में से किसी भी कीट का गंभीर प्रकोप हो सकता है, परन्तु प्रायः तीनों कीटों का एक साथ गंभीर प्रकोप नहीं होता है क्योंकि प्रत्येक कीट के गंभीर प्रकोप के लिये अलग-अलग तापक्रम एवं आद्रता की जरुरत होती है। अतः जिस कीट का सबसे अधिक प्रकोप हो उसके नियंत्रण के उपाय करने चाहिये। इन कीटों को नियंत्रण के लिये स्टीक टैक्नीकल एडवाईजरी जारी कर किसानों को सलाह दी जाती है कि ये इसका उपयोग कर कपास की उत्पादकता बढ़ायें। आर्थिक हानि स्तर (ईटीएल) आने पर कीटनाशकों का छिड़काव करें।
आर्थिक हानि स्तर देखने के लिये सुबह 9.00 बजे से पहले पौधे के ऊपर की तीन पत्तियों (छोटी नई पत्तियों को छोड़कर) के नीचे सफेद मक्खी की संख्या की गिनती करनी चाहिए। यदि इन तीन पत्तियों की निचली सतह पर औसतन 8-12 व्यस्क (बड़ी) सफेद मक्खी अथवा 16-20 सफेद मक्खी के बच्चे (निम्फ) पायें जाते हैं अथवा 20 से 25 प्रतिशत सफेद मक्खी से प्रभावित पौधों पर शहद / गूंद जैसा चिपचिपा पदार्थ या काली फफूंद दिखाई देती है तो छिड़काव करना चाहिए। पत्तों पर सफेद मक्खी की संख्या देखते समय पौधे को झुकाना / हिलाना नहीं चाहिए।
सफेद मक्खी कीट की पहचान
यह छोटा सा पीले शरीर और सफेद पंख व तेजी से उड़ने वाला कीट है। कपास की फसल में यह अण्डाकार शिशु पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चुसकर पौधों को कमजोर बना देती है। सफेद मक्खी पौधों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ती है जिससे फफूँद निकलने लगती है। सफेद मक्खी के प्रकोप से पौधों की पत्तियाँ सिकुड़कर मुड़ने लगती है। इस कीट की प्रौढ़ मादा पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती है। पाँच, छः दिन के बाद ये अण्डे प्यूपा में बदल जाते है। एक सप्ताह में ही प्यूपा प्रौढ़ के रुप में विकसित हो जाते है। इनका प्रौढ़िय जीवन आमतौर पर बीस से इक्कीस दिन का होता है।
प्रबंधन हेतु निम्नशस्य / यात्रिक / जैविक / रासायनिक उपाय अपनाये जाने चाहिये:
- खेतों में खाली जगह व मेड़ों पर उगने वाले खरपतवारों को तुरन्त निकाल देवें, जिससे सफेद मक्खी के निम्फ एवं व्यस्क दोनों अवस्थाओं को छुपने का स्थान ना मिल सकें।
- किसान सामुहिक रूप से खेतों में यलो स्टिक ट्रेप (पीले चिपचिपे ट्रेप) तीस से चालीस ट्रेप प्रति हैक्टर की दर से लगवाये ।
- निराई-गुड़ाई के दौरान ट्रेक्टर के आगे व पीछे पीले रंग के कपड़े को अरण्डी के तेल में भिगोकर लगना चाहिये व सामुहिक रुप से एक ही दिन दवा का छिड़काव करें।
- जैविक नियंत्रण हेतु नीम आधारित जैविक कीटनाशी 5 मि.ली. एवं मि.ली. तरल साबुन प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित करने वाले मित्र कीट जैसे मकड़ी, क्राइसोपरला, - लेडीबर्ड बिटल की पहचान कर संरक्षित करें।
सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये निम्न में से किसी एक कीटनाशी रसायन का उपयोग करें
- स्पाइरोमेसीफन 22.9 प्रतिशत एससी - यह कीटनाशक सफेद मक्खी के बच्चों (निम्फ) को मारने में अधिक प्रभावशाली पाया गया है। इसकी 600 मिलीलीटर मात्रा प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- फ्लोनिकामाइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी - इसकी 150 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- थायोक्लोप्रिड 240 प्रतिशत एस. सी - इसकी 500 मि.ली. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. - इसकी 200 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- डाईफेनथ्यूरोन 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी - इसकी 100 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- थायोमिथोक्जाम 25 डब्ल्यू जी - यह कीटनाशक सफेद मक्खी तथा हरा तेला का नियंत्रण करता है। इसकी 250 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।