उकठा रोग: इसे फफूंदजनित रोग कहा जाता है। फसल में ये उकठा रोग फ्यूजेरियम अर्थोसोरैस नाम के कवक के जरिये होता है। पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। तना काला पड जाता है। यह रोग चने के उत्पादन को लेकर बुरा असर डालता है, जिस पौधे या पत्ती में ये रोग लग जाता है, फिर ये पौधे की बढ़ोतरी पर रोकथाम लगा देता है।
बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए। चने की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में ही करें। चने की खेती हेतु उकठा प्रतिरोधी किस्में जैसे अवरोधी, बी०जी०244, बी०जी० 266, ICCC 32, CG 588, GNG 146, इत्यादि का चयन करना चाहिए।
चने की रस्ट अथवा गेरुई: यह रोग Uromyces Cicerisarietira नामक कवक द्वारा होता है। रोग के भयंकर प्रकोप होने पर रोगी पत्ते मुड़कर सूखने लगते हैं। चने की फसल में इस रोग का ज्यादातर प्रकोप उत्तर प्रदेश,पंजाब,राज्यों में होता है।
बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित करे, इसके अलावा आप चाहे तो डायथेन एम् 45 की 0.2 प्रतिशत मात्रा को बुवाई के 10 दिन बाद छिडकाव कर सकते है।
चने का ग्रे मोल्ड रोग: इस फफूंदजनित रोग की उत्पत्ति Botrytis Cinerea नाम के कवक के कारण होती है। यह चने के खेत में उत्तरजीवी के रूप में रहता है। उपज व दानों की गुणवत्ता दोनों पर बुरा प्रभाव डालता है।
बचाव व रोकथाम: बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए।
चने का अंगमारी रोग: इस रोग में पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं, इसका प्रकोप उत्तर- पश्चिमी भारत में बोये गये चने की खेती पर पड़ता है। इस रोग से प्रभावित पौधे की तने,पत्तियों व फलों पर छोटे-छोटे कत्थई धब्बे पड़ जाते हैं।
बचाव व रोकथाम: चने की अंगमारी प्रतिरोधी किस्म C 235 उगाना चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले थायरम अथवा केप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए।