जैसा की आप जानते है चना, रबी मौसम की मुख्य दलहनी फसल है। चने की उत्पादकता बढ़ाने के लिये उन्नत किस्मों, समय पर बुवाई, राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार, समुचित उर्वरता प्रबंधन, कीट प्रबंधन और आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई से उत्पादकता में दुगुनी तक वृद्धि लायी जा सकती है। दलहन, प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत होने के कारण इसकी उन्नत पैकेज प्रणाली अपनाकर खेती करने से उत्पादन में काफी वृद्धि लायी जा सकती है तथा संतुलित पोषाहार की समस्या का समाधान किया जा सकता है।शीत ऋतु में चना रबी की मुख्य फसलों में से एक है। वैसे तो इसकी खेती सितम्बर से शुरू हो जाती है, पर पछेती किस्मों को दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक लगाया जा सकता है। किसानों अभी भी चने की बुआई कर सकते हैं।
भूमि व किस्में
चने के लिए कवक व क्षार रहित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पीएच मान 6.7-5 के बीच होना चाहिए। बुवाई के लिए विशेष पछेती किस्में पूसा 544, पूसा 572, पूसा 362, पूसा 372, पूसा 547 किस्में के 70-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
बीज उपचार
जैविक पद्धति की दो विधि के माध्यम से ऐसे करें बीजोपचार
पहली विधि : 10 किलो गाय के गोबर और 10 लीटर मूत्र और 20 किलो दीमक की बांबी या ऐसे पेड़ के नीचे की ऊपरी 1 इंच मिट्टी या डोले की मिट्टी, जिसमें कीटनाशक का उपयोग नहीं किया है। इसे अाटे की तरह गूंथ लें। इसमें 60 से 100 किलो बीज मसल लें। बीज पर इस मिश्रण की परत चढ़ जाएगी। यह घोल मोटे बीजों के लिए थोड़ा घना हो और छोटे बीज आसानी से अलग हो जाए। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर रख लें।
दूसरी विधि : पांच किलो गाेबर और पांच लीटर मूत्र, 50 ग्राम चूना, 20 लीटर पानी में 24 घंटे के लिए भिगोकर रख दें। फिर इस घोल में बीज कुछ देर रखकर निकाल लें। छायादार जगह में रख दें। गोबर की परत चढ़े बीज के कई फायदे है। दूसरी ओर बिजाई के तुरंत बाद सूखाना पड़े तो बीज में फुटाव नहीं होता है लेकिन बीज सुरक्षित रहता है। इसलिए उपचारित बीज बोने पर दोबारा बीज बोने की नौबत नहीं आती है।
रासायनिक विधि
इसके लिए 2.5 ग्राम थायरस या कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें। 100 किलो बीज उपचारित करने के लिए 800 मिली लीटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का प्रयोग करें।
बुवाई का समय व तरीका
सिंचित क्षेत्र में पछेती किस्में दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक अवश्य लगा लेनी चाहिए। बुवाई के लिए 75-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लग जाता है, जबकि मोटे दाने वाली किस्म का 64 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है।
इसमें कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें और सिंचित क्षेत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी बुवाई कर सकते हैं।
सिंचाई
चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है। इस फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बोने के 45 दिन बाद, दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था पर करनी चाहिए।
ऊर्वरक का प्रयोग
मिट्टी परीक्षण सिफारिश के अनुसार उर्वरक प्रयोग करें। सिफारिश के अभाव में असिंचित क्षेत्रों में 10 किलो नत्रजन और 25 किलो फॉस्फोरस तथा सिंचित में अथवा जहाँ बहुत अच्छी नमी हो वहाँ बुवाई पूर्व 20 नत्रजन व 40 किलो फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर 12-15 सेन्टीमीटर की गहराई पर आखिरी जुताई के समय कर कर देवें। सिंचित क्षेत्रों में जिन खेतों में गंधक की कमी पाई जाये उन खेतों में 1.25 किलो जिप्सम प्रति हैक्टेयर बुवाई से पूर्व कर कर देवें। जिन सिंचित क्षेत्रों में जस्ते की कमी पाई जाये उन खेतों में 25 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर बुवाई से पूर्व देवे। हजन क्षेत्रों में फॉस्फोरस की कमी पाई गई हो वहाँ 120 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर हाईग्रेड फॉस्फेट रॉक पी.एस.बी. कल्चर का प्रयोग करें। असिंचित क्षेत्रों में चने की फसल में 2 प्रतिशत डी.ए.पी. का घोल बनाकर प्रथम छिडकाव फूल आने से पहले तथा दूसरा छिडकाव उसके 10 दिन बाद करें। काबुली चने में अधिक उपज लेने के लिए 5 टन गोबर की खाद एवं 30 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें। चने की जैविक खेति के लिये बुवाई के समय फॉस्फोसर व सल्फर युक्त जैविक खाद 50 टन प्रति हैक्टेयर की दर से डालें। इसके अलावा बुवाई के 40 दिन पश्चात् तरल जैविक खाद ( 20 प्रतिशत) का 15 दिन के अन्तराल पर तीन छिडकाव करें।
पाले से बचाव
दिसम्बर से फरवरी तक पाला पड़ने की संभावना रहती है। अतः इस समय पाले के प्रभाव से फसल को बचाने के लिए यदि आवश्यक हो तो 0.1 प्रतिशत गंधक के तेजाब का छिडकाव करें ( 1000 लीटर पानी में 1.0 लीटर तेजाब मिलाकर एक हैक्टेयर में) स्प्रेयर द्वारा पौधे पर अच्छी तरह से छिडकाव करना चाहिये। संभावित पाला पडने की अवधि में इसे 10 दिन के अन्तर पर दोहराते रहें।
फसल संरक्षण
कीटों का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिथाइल पैराथियान दो फीसदी मात्रा पाउडर का पौधों पर छिड़काव करें।
झुलसा रोग
झुलसा के लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब 0.2 फीसदी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइट 0.3 फीसदी या घुलनशील गंधक 0.2 फीसदी के घोल का छिड़काव करें।