भिंडी की फसल को बचाने के लिए आवश्यक उपाय: पीली पत्ती शिरा मोजैक और पर्ण कुन्चन रोगों से कैसे करें बचाव

भिंडी की फसल को बचाने के लिए आवश्यक उपाय: पीली पत्ती शिरा मोजैक और पर्ण कुन्चन रोगों से कैसे करें बचाव
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Kisaan Helpline

Crops Jul 12, 2024

भारत और दुनिया भर में भिंडी एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है, जिसे अमेरिका में "लेडीज फिंगर" और अंग्रेजी में "ओकरा" के नाम से जाना जाता है। पौष्टिक गुणों से भरपूर भिंडी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, विटामिन-ए, रिबोफ्लेविन, थायमिन, आयोडीन, और आयरन जैसे तत्व पाए जाते हैं।

खेती और उत्पादन
भारत में भिंडी की खेती 0.519 मिलियन हेक्टर क्षेत्र में की जाती है। वायरसजनित पीली पत्ती शिरा मोजैक और भिंडी पर्ण कुन्चन रोगों के प्रकोप से उत्पादन पर असर पड़ता है। इन रोगों का प्रबंधन समय पर न होने पर किसानों को भारी नुकसान होता है।

पीली पत्ती शिरा मोजैक के लक्षण
यह रोग भिंडी की फसल के लिए गंभीर है। इसमें पत्तियों की शिराएं पीली और मोटी हो जाती हैं जबकि बीच का हिस्सा हरा रहता है। पत्ती का क्लोरोफिल नष्ट होने पर पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। रोगग्रस्त पौधों के फल पीले, टेढ़े और छोटे हो जाते हैं, जो बेचने योग्य नहीं रहते।

भिंडी पर्ण कुन्चन के लक्षण
1980 में कर्नाटक में यह रोग पहली बार देखा गया। पत्तियों की निचली सतह पर खुरदरे और उभरे हुए हिस्से दिखते हैं। पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ने लगती हैं, और तने व शाखाओं में भी घुमाव आ जाता है। संक्रमित पत्तियां मोटी और चमड़े जैसी हो जाती हैं। गंभीर संक्रमण से पौधों में फल कम लगते हैं।

विषाणुजनित रोगों से नुकसान
यदि पौधे अंकुरण के 20 दिनों के भीतर संक्रमित हो जाते हैं, तो उनकी वृद्धि धीमी हो जाती है और 94-100% तक नुकसान होता है। अंकुरण के 50-65 दिनों के बाद संक्रमण होने पर 49-84% हानि होती है।

रोगों के प्रमुख कारण
इन रोगों के प्रमुख कारक बेगमोवायरस हैं, जो सफेद मक्खी द्वारा फैलते हैं। यह वायरस पौधे की वृद्धि के सभी चरणों में संक्रमण कर सकता है, विशेषकर 35-50 दिनों के बीच का समय अति संवेदनशील होता है।

बचाव
  • रोगग्रस्त पौधों को नष्ट करें: वायरस ग्रसित पौधों को उखाड़कर जलाना या गड्डे में दबाना चाहिए।
  • सफेद मक्खी नियंत्रण: फेरोमोन ट्रैप का उपयोग सफेद मक्खी को आकर्षित कर नष्ट करने के लिए किया जा सकता है।
  • प्रतिरोधी किस्में: प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, जैसे काशी चमन, पूसा भिंडी-5, और अर्का निकिता।
  1. काशी चमन: भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित इस प्रजाति के पौधे की लंबाई 120-125 सेमी होती है तथा इसे खरीफ और रबी दोनों मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है। इस प्रजाति की उपज क्षमता 150 से 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 
  2. पूसा भिंडी-5: इस प्रजाति को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। खरीफ (वर्षा ऋतु) में इसकी उपज लगभग 18 टन प्रति हेक्टेयर है। इसके फल आकर्षक गहरे हरे रंग के और मध्यम लंबाई के होते हैं। यह प्रजाति जायद और खरीफ दोनों मौसमों में सफल खेती के लिए उपयुक्त है। 
  3. अर्का निकिता: इस किस्म को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक द्वारा नर बाँझपन रेखा के माध्यम से विकसित किया गया है। इस प्रजाति के फल गहरे हरे, मध्यम, चिकने और मुलायम होते हैं और उपज लगभग 21 से 24 टन प्रति हेक्टेयर है।
जैविक नियंत्रण
  • नीम के बीज की गुठली, अदरक, लहसुन और मिर्च के अर्क का छिड़काव।
  • नागफनी या दूध की झाड़ी के टुकड़े को पानी में किण्वित करके छिड़काव करना।
रासायनिक नियंत्रण
वायरस का रासायनिक नियंत्रण संभव नहीं है। प्रारंभिक कीटनाशक का उपयोग सफेद मक्खियों को नियंत्रित करने में मदद करता है। एसिटामिप्रीड 20 एस.पी. का 40 ग्राम प्रति हेक्टर छिड़काव प्रभावी होता है। खेत को खरपतवार मुक्त रखना, फूल आने से पहले और बाद में मैलाथियान 50 ई सी. का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए।
रोग नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन या डेल्टामेथ्रिन का उपयोग न करें, क्योंकि ये रोग को बढ़ा सकते हैं।
डायमेथोएट 2 मिलीलीटर/लीटर या नीम ऑयल 5 मिलीलीटर/लीटर अथवा एसिटामिप्रीड 2 ग्राम/लीटर दवा की मात्रा को पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर 10 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 बार छिड़काव करना चाहिए।

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