'वी.एल. सब्जी मटर-15' भारत के उत्तर-पश्चिमी हिमालयी पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित उत्तराखंड राज्य के लिए सब्जी मटर की मध्यम अवधि परिपक्वता की किस्मों की सूची में एक नया विकल्प है। यह किस्म उत्तर पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में सब्जी मटर की उत्पादकता में सुधार तथा इन क्षेत्रों के प्रजातीय विविधता को मजबूत करने में मददगार साबित होगी। बेमौसमी उत्पाद होने के कारण यह किस्म निश्चित रूप से पहाड़ी किसानों (विशेष रूप से ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों को सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
वी. एल. सब्जी मटर-15, सब्जी मटर (पाइसम सेटाइवम वार. हॉटेंस) की एक नई किस्म है। यह भारत के कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्र-I के अंतर्गत उत्तराखंड राज्य के लिए विकसित की गई है। इस किस्म को पी.सी.-531 एवं अर्केल के बीच संकरण उपरांत वंशावली विधि द्वारा विकसित किया गया है। यह मध्यम परिपक्वता वाली किस्म है, जिसकी फलियां आकर्षक, हरी, लम्बी, घुमावदार हैं तथा प्रति फली दानों की संख्या 8-10 होती हैं। यह किस्म उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी भागों में भी मटर की खेती का एक उपयुक्त विकल्प है। इसकी औसत उपज (हरी फली) 11-13 टन प्रति हैक्टर है। यह जैविक और अजैविक दोनों स्थितियों की खेती के लिए उपयुक्त है।
सब्जी मटर एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है। इसकी खेती तराई से लेकर ऊंची पहाड़ियों (उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों) और उत्तर भारतीय मैदानों (उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र) में विभिन्न मौसमों में व्यापक रूप से की जाती है। इसलिए इस फसल के अगेती तथा मध्यम परिपक्वता वाले समूहों में प्रजातीय विविधता का होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 'वी.एल. सब्जी मटर-15' को पी.सी.-531 एवं अर्केल के बीच संकरण उपरांत बंशावली विधि द्वारा विकसित किया गया है। यह मध्यम परिपक्वता, आकर्षक हरे रंग की फलियां, चूर्णिल आसिता, म्लानि, सफेद संड़ाध तथा पर्ण-झुलसा रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्म है। बहु-स्थान परीक्षणों (मल्टी लोकेशन ट्राइल्स) में 'वी.एल. सब्जी मटर-158 का परीक्षण बी.पी.-1208 के नाम से किया गया था। एस.वी.टी. (स्टेट वैरायटल ट्राइल), उत्तराखंड में अपने प्रदर्शन के आधार पर 'वी.एल. सब्जी मटर-15' की पहचान की गई तथा उत्तराखण्ड के लिए जारी करने की सिफारिश भी की गई। इसके बाद फरवरी 2019 में वी.एल. सब्जी मटर-15' को जारी किया गया। फसल मानक अधिसूचना तथा सब्जी फसलों पर केन्द्रीय उप-समिति की बैठक के दौरान इस किस्म को जारी किया गया।
खेती के बारे में
अनुकूल जलवायु
यह सब्जी मटर एक ठंडे मौसम की फसल है। इसके लिए 13-18 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित होता है। इसकी वृद्धि 29-30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रुक जाती है। गर्म शुष्क मौसम से परागण तथा बीज बनना नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। शर्करा के स्टार्च व हेमीसेलुलोज में बदल जाने के परिणामस्वरूप निम्न गुणवत्ता वाली फलियां बनती हैं। इसके बीज 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी अंकुरित हो सकते है। अंकुरण के लिए उचित तापमान 22 डिग्री सेल्सियस होता है।
भूमि का चयन
सब्जी मटर को हल्की रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी तक कहीं पर भी उगाया जा सकता है। बेहतर परिणाम अच्छी तरह से जल-निकासी वाली, भुरभुरी दोमट मृदा पर ही प्राप्त होते हैं। मृदा का पी-एच 6.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। अगर यह 6.0 से कम होती है, तो भूमि में उचित मात्रा में चुना डालना चाहिए।
खेत की तैयारी
'वी.एल. सब्जी मटर 15' की उन्नत खेती के लिए भूमि की तैयारी के समय 10-15 टन गोबर की खाद, 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर खाद मिलानी चाहिए। अन्य फलीदार फसलों की भांति मटर की फसल भी फॉस्फोरस के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया एवं वृद्धि दर्शाती है।
बीज की मात्रा
बीज की दर 75 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर होती है तथा बुआई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए। बुआई हमेशा पंक्ति में करना उपयुक्त होता है। 'वी.एल. सब्जी मटर-15' की पर्वतीय क्षेत्रों में बुआई के लिए उपयुक्त समय 15-20 नवंबर है (बुआई ऐसे समय पर करनी चाहिए, ताकि पुष्पण के समय फसल को पाले का सामना न करना पड़े ) ।
'सब्जी मटर-15'
'वी.एल. सब्जी मटर-15' के पौधे बौने, अच्छी बढ़वार तथा हरी पत्तियों वाले होते हैं। पौधों की ऊंचाई लगभग 60-70 सें.मी., 2 शाखाएं, पहला पुष्प 10-12वीं गांठ पर दिखाई देता है। इसकी अन्य प्रमुख विशेषताओं में सामान्य प्रकार की पर्ण, अधिकतर दो सफेद पुष्प प्रति पुष्प डंठल, गहरे हरे रंग की घुमावदार फली (अधिकतर दो फली प्रति पुष्प डंठल) 10-18 फलियां प्रति पौधा, 180-200 फलियां प्रति कि.ग्रा. फली. की लम्बाई 8.5-10 सें.मी., 8-10 मीठे दाने प्रति फली का उल्लेख किया जा सकता है। बीज तथा फली का अनुपात प्रतिशत (शैलिंग, प्रतिशत) 50-55 प्रतिशत तथा पीले हरे झुर्रीदार सूखे बीज इस किस्म की अन्य विशेषताओं में शामिल हैं। इस किस्म में 50 प्रतिशत पुष्पण बुआई के लगभग 80-90 दिनों बाद आ जाता है। (समुद्र तल से 1250 मीटर की ऊंचाई तक के पर्वतीय क्षेत्रों में) और यह पर्वतीय क्षेत्रों में प्रथम तुड़ाई के लिए 128-132 दिनों (मध्यम अवधि) में तैयार हो जाती है।
आलेख : निर्मल कुमार हेडाऊ, चौधरी गणेश वासुदेव और हनुमान राम