Bajra Ki Kheti: बाजरा अत्यधिक चर छोटे बीज वाली घासों का एक समूह है, जो व्यापक रूप से चारा और मानव भोजन के लिए अनाज फसलों या अनाज के रूप में दुनिया भर में उगाया जाता है। बाजरा विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। यह स्वादिष्ट और पौष्टिक चारा प्रदान करता है।
बाजरा की फसल के लिए 4-5 कि.ग्रा. बीज/हैक्टर पर्याप्त होता है। इसकी बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए जो बहुत लाभकारी होता है एवं पंक्तियों में बुआई से फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है। पोषक तत्व भी सही मात्रा में पौधे को उपलब्ध होते हैं। बुआई के दौरान पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 45X10-12 सें.मी. रखनी चाहिए तथा 2-3 सें.मी. गहराई पर बुआई करें।
बाजरा की संकर प्रजातियां जैसे- पूसा 23, पूसा 415, पूसा 605, पूसा 322, केबीएच 108 एचएचबी 50, एचएचबी 67, एचएचडी 68, एचएचबी 117, एचएचबी 226, एचएचबी 234, एचएचबी इम्प्रूव्ड, आरएचडी 30, आरएचडी 21, जीएचबी 15, जीएचबी 30, जीएचबी 318, जीएचबी 905, कावेरी सुपर बास, बायो 48, एमपी 7872, एमपी 7792, नंदी 8, एलएलबीएच 104, सतूरी, एमएलबीएच 285, आईसीएमवी 155, आईसीएमवी 221, आईसीएमएच-451 आएचबी 173, 86एम66 और 86एम89 एवं संकुल प्रजातियां जैस-पूसा कम्पोजिट 701, पूसा कम्पोजिट 1201, पूसा कम्पोजिट 266, पूसा कम्पोजिट 234, पूसा कम्पोजिट 383, पूसा 443, पूसा कम्पोजिट 643, पूसा कम्पोजिट 612, आईसीएमवी-155, डब्लूसीसी-75, एचसी 4, एचसी 10, एचसी 20, आईसीटीपी 8203, राज 171, एमबीसी-2, पीसी-383 पीसी-443, जेबीवी-3, जेबीवी-4. आईसीएमवी- 221, पीसीवी-164 व राज बाजरा चरी 2 आदि प्रमुख हैं।
रासायनिक खाद का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। अनुमान के अनुसार बाजरा की संकर प्रजातियों के लिए 80-90 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 40 कि.ग्रा. पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 25 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 25 कि.ग्रा. पोटाश/हैक्टर बुआई के समय प्रयोग करें। सभी परिस्थितयों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा लगभग 3-4 सें.मी. की गहराई पर डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा अंकुरण से 4-5 सप्ताह बाद खेत में बिखेरकर मृदा में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। बाजरा की फसल में थायोयूरिया, जो एक पादप वृद्धि नियामक है, का 0.1 प्रतिशत का घोल 1 ग्राम थायोयूरिया / लीटर पानी का घोल बनाकर बुआई के 30-35 दिनों बाद एवं सिट्टे बनते समय दूसरा छिड़काव करने से उपज में 10-15 प्रतिशत वृद्धि बढ़ाई जा सकती है। इससे फसल में सूखा सहन करने की क्षमता में वृद्धि होती है।