बाजरा की खेती: बाजरा की पैदावार बढ़ाने के उपाय

बाजरा की खेती: बाजरा की पैदावार बढ़ाने के उपाय
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Kisaan Helpline

Crops Apr 02, 2022

Bajra Ki Kheti: बाजरे की खेती भारत में लगभग 9.5 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल में की जाती है। यह खरीफ की एक मुख्य फसल है। इसका कुल उत्पादन 9.8 मिलिटन टन तक होता है। देश में इसका क्षेत्रफल विश्व के बाजरा उगाने वाले देशों में लगभग 42 प्रतिशत है। राजस्थान में इसका क्षेत्रफल 5.51 मिलियन हैक्टर है। इसकी पैदावार 6.11 मिलियन टन है और औसत उपज 1843 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर है। देश में बाजरे की औसत पैदावार 1030 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर है।


बाजरा मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, बाम महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं कर्नाटक आदि राज्यों में उगाया जाता है। राजस्थान में इसके देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 46-49 प्रतिशत तक उगाया जाता है। बाजरे की उत्पादकता में हरियाणा का प्रथम स्थान है। प्रदर्शनी प्लाटों में बाजरे की पैदावार 40 क्विंटल प्रति हैक्टर सिंचित अवस्था में तथा 35 क्विंटल प्रति हैक्टर बारानी अवस्था में पाई गई है। हमारे किसान नीचे बताई गई बातों पर ध्यान दें, तो इस फसल की उत्पादकता दो गुना तक बढ़ायी जा सकती है। बाजरे की जगह कुछ क्षेत्रों में दूसरी तिलहनी व दलहनी फसलें ली जा रही हैं।

बाजरा की कम पैदावार के प्रमुख कारण 
  • बाजरा, भारत में उन क्षेत्रों में उगाया जाता है, जहां जमीन मुख्यत: रेतीली तथा बलुई रेतीली है। इस प्रकार की भूमि में सामान्यत: ऑर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस निम्न स्तर में होता है। इससे पानी भी बहुत कम समय तक संरक्षित रहता है।
  • बाजरा की खेती मुख्यत: मानसून पर आधारित है और यह कभी जून के प्रथम सप्ताह में अथवा कभी यह अगस्त के प्रथम सप्ताह तक होती है। इसकी कुल मात्रा मृदा वाष्पीकरण की क्षमता से कम होती है, जिससे बाजरे का उत्पादन बहुत प्रभावित होता है। 
  • जिस वर्ष वर्षा जल्दी होती है, उस वर्ष जल्दी में किसानों को प्राय: उच्च कोटि का बीज नहीं मिल पाता। किसानों के पास जो भी बीज घर में होता है, उसी की बिजाई कर देते है जिससे पैदावार पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • ज्यादातर बीज (90 प्रतिशत से भी ज्यादा) निजी कम्पनियों द्वारा बेचा जाता है। इस प्रकार के बीज आमतौर पर सिंचित क्षेत्रों एवं अच्छी जमीन के लिए उपयुक्त होते हैं, लेकिन वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए ठीक नहीं होते हैं।
  • सही तरीका एवं उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना भी बाजरे की कम पैदावार के कारण हैं। आमतौर पर किसान यह सोचते हैं कि बाजरे को केवल नाइट्रोजन की ही आवश्यकता पड़ती है, लेकिन यह एक गलत धारणा है।
  • खरपतवार प्रबंधन पर भी बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
  • पुराने किस्म के यंत्र, औजार एवं बिजाई के तरीके प्रयोग करना भी कम उत्पादन का कारण है। आज भी बहुत सी जगह बाजरे की बुआई छिड़काव विधि द्वारा की जाती है।
  • इस फसल की ज्यादा पैदावार हो जाने पर कम भाव मिलना भी एक प्रमुख कारण है।

उपज बढ़ाने के उन्नत तरीके
  • ग्रीष्मकाल के दौरान 1-2 जुताई एवं 3-4 वर्ष में एक बार गहरी जुताई आवश्यक रूप से करनी चाहिये। ये रोगों को रोकने एवं नमी के संरक्षण में बहुत लाभदायक हैं।
  • वर्षा आधारित/बारानी क्षेत्रों में 70-75 दिनों में पकने वाली किस्मों को ही बोना चाहिए, जैसे कि एचएचबी-67. एचएचबी-60, आरएचबी-30 आरएच बी-154 एवं राज.-171 आदि। जहां पर 2-3 सिंचाइयां करने का पानी उपलब्ध हो. वहां पर 80 दिनों से ज्यादा तक पकने वाली सरकारी निजी क्षेत्र द्वारा विकसित किस्मों को भी बोया जा सकता है।
  • सही मात्रा में सिफारिश के अनुसार 3-5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज दर का प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि बारानी अवस्था में 60-65 हजार पौधे प्रति एकड़ एवं 75-80 हजार पौधे सिंचित क्षेत्रों में प्राप्त हो सकें।
  • जुलाई का पहला पखवाड़ा इसकी बिजाई का सही समय होता है। 10 जून के बाद 50-60 मि.मी. वर्षा होने पर भी बाजरा बोया जा सकता है। 15 जुलाई से देरी होने के बाद इसकी उपज में कमी होती है। ऐसी परिस्थितियों में नर्सरी विधि द्वारा भी बिजाई की जा सकती है, जिससे देरी से की गई। बिजाई की अपेक्षा काफी अच्छी उपज प्राप्त होती है।
  • निराई-गुड़ाई के लिए बिजाई के 15-30 दिनों बाद तक का समय उपयुक्त होता है। इससे खरपतवार नियंत्रण तो होता ही है, भूमि में नमी संरक्षण के लिए भी यह बहुत अच्छा उपाय है। इसके अलावा इससे भूमि में पौधों की जड़ों तक हवा का आवागमन भी हो जाता है।
  • खरपतवारनाशी के रूप में बाजरे में एट्राजिन (50 डब्ल्यूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बिजाई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए।
  • रोगों एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीजों का बुआई से पहले उपचार करना चाहिए। इसके अलावा बीजों का जीवाणु खाद (एजोस्पिरिलम व फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया) द्वारा भी बीजोपचार करना चाहिए।
  • बिजाई के 20 दिनों बाद, जहां कम पौधे हैं, वहां खाली जगह भरनी चाहिए एवं जहां सघन पौध हैं, वहां विरलन करके प्रति एकड़ की दर से वांछित पौधों की संख्या प्राप्त करनी चाहिए।
  • बिजाई के समय पर ही आधी मात्रा नाइट्रोजन एवं पूरी मात्रा फॉस्फोरस (40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन + 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस बारानी क्षेत्रों तथा 125 कि.ग्रा. नाइट्रोजन + 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस सिंचित क्षेत्रों के लिए) की मिट्टी में डाल दें तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा दो भागों में बिजाई के 20 दिनों बाद एवं 40 दिनों बाद प्रयोग करें।
  • जहां सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है, वहां पर फुटाव व फूल बनते समय एवं बीज की दूधिया अवस्था में सिंचाई बहुत आवश्यक है। जो क्षेत्र वर्षा आधारित हैं, वहां नमी को संरक्षित करने के विभिन्न उपायों को अपनाना चाहिए।
  • बारानी क्षेत्रों में बाजरे के साथ ग्वार, मूंग, उड़द एवं लोबिया को अंतरवर्तीय फसल के रूप में 2:1 अथवा 6:3 के अनुपात में उगाया जा सकता है, जिसमें किसानों को 2500-3000 रुपये प्रति एकड़ अलग से लाभ मिल सकता है।
  • इस प्रकार यदि हमारे किसान बाजरे की खेती को मजबूरी की खेती न मानकर मन की खेती मानें एवं ऊपर बताये गये सुझावों पर ध्यान दें, तो इसकी उपज को दो गुना तक बढ़ाया जा सकता है।

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