बैंगन की अच्छी पैदावार के लिए गर्म जलवायु व जल निकासयुक्त दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में बैंगन का महत्वपूर्ण स्थान है। सफेद बैंगन मधुमेह रोगी के लिए अच्छा होता है। कृषकों की आमदनी बढ़ाने में बैंगन की उन्नत खेती महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
बैंगन की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग प्रभावित करते हैं। सही समय पर रोगों का नियन्त्रण न किया जाए तो बाजार मूल्य में गिरावट होती है। इसीलिए बैंगन के प्रमुख रोगों को देखकर उनका सही समय पर नियन्त्रण करें।
छोटी पत्ती रोग
यह रोग बैंगन में माइकोप्लाज्मा द्वारा होता है। इसमें बैंगन का रोगी पौधा बौना रह जाता है तथा पत्तियां आकार में छोटी रह जाती हैं। इससे रोगी पौधों पर फूल नही बनते हैं और पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। अगर पौधों पर फूल भी लग जाते हैं तो वे कठोर होते हैं। ऐसे रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए।
उपचार-(1) रोगरोधी किस्मों को उगाएं जैसे-कराइन सैलटायन, सैल 2.52-2 पूसा, पर्पिल क्लस्टर आदि।
(2) पौधों को रोपित करने से पहले टेट्रासाइक्लिन के 100 पी.पी एम. घोल में डुबोकर रोपाई करनी चाहिए।
आर्द्रगलन रोग
यह रोग बैंगन में पीथियम अफेनिडर्मेटम नामक कवक द्वारा होता है। पौधों में यह रोग दो अवस्थाओं में लगता है। पहली अवस्था में पौधों के भूमि से निकलने से पूर्व या तुरन्त पश्चात् और दूसरी अवस्था में पौध उग जाने पर प्रारम्भिक अवस्था में पौधे निकलते ही मर जाते हैं। दूसरी अवस्था में पौधे के भूमि के सम्पर्क में आने वाले तने के हिस्से पीले हरे रंग के विक्षत बनते हैं। पौधों का मुरझाना व सूख जाना पौधशाला में रोग का प्रमुख लक्षण है।
उपचार-(1) पौधशाला से रोगी पौधों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
(2) खड़ी फसल में बोर्डोमिश्रण 0.8 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़कना चाहिए।
(3) बीज को थाइरम या कैप्टॉन नामक कवकनाशी से 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बुआई से पहले उपचारित करें।
सूत्रकृमि
बैंगन में सूत्रकृमि द्वारा भी रोग होता है। यह पेलाडोगाइन की अनेक प्रजातियों द्वारा होता है। इसमें रोगी पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं तथा पौधा बौना रह जाता है। पत्तियां पीली होकर लटक जाती हैं। इस रोग के कारण पौधे नष्ट नहीं होते परन्तु गांठों के सड़ने पर सूख जाते हैं।
उपचार-(1) रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए। भूमिशोधन के लिए नेभागान से 12 लीटर प्रति हैक्टर की दर से भूमि को फसल बोने से पहले 3 सप्ताह पहले उपचारित करें।
(2) खली व लकड़ी का बुरादा 25 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से नमी होने पर भूमि में मिला दें।
स्कलेरोटीनिया अंगमारी रोग
बैंगन में यह रोग स्कलेरोटीनिया नामक कवक द्वारा होता है। इस रोग के मुख्य लक्षण में संक्रमित जगह पर धब्बे बनते हैं। ये धीरे-धीरे तने या शाखा को घेर लेते हैं तथा पूरे पौधे में फैल कर संक्रमित भाग को नष्ट कर देते हैं। तने के आधार पर संक्रमण होने पर पौधा मुरझाया दिखाई देता है। तने के पिथ में भूरे रंग से काले रंग का स्केलोरेशिया बनाता है।
उपचार-(1) खेत में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर दें।
(2) ट्राइकोड्रामा हारजीयेनम से बीज को उपचारित कर बोना चाहिए।
(3) रोगी पौधों को तथा फसल अवशेषों को जला देना चाहिए।