Ashwagandha Farming: भूमि और मौसम के अनुसार शुष्क क्षेत्रों में अश्वगंधा की पैदावार से अच्छी आमदनी ली जा सकती है। इसे सामान्य बोलचाल में असगंध कहते हैं। इसकी जड़ों तथा पत्तों को सूंघने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है। इसमें ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो आयुर्वेद तथा यूनानी औषधियों में उपयोगी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इसका उपयोग गठिया, संधिवात, पक्षाघात, रक्तचाप, सूजन, घाव भरने, प्लेग तथा शक्तिवर्धक औषधियों के रूप में किया जाता है।
इसका पौधा 3 से 5 फुट का होता है और पत्ते हरी आभा वाले होते हैं। इसका पुष्पन अक्टूबर से मार्च तक होता है। फल रसभरी के समान तथा पकने पर लाल हो जाते हैं। अश्वगंधा जुलाई से सितंबर के बीच 10-12 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव विधि से बोई जाती है। मानसून आने से पहले इसे नर्सरी में वो दिया जाता है और 6 सप्ताह बाद ये पौधे खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं। 150 से 170 दिनों के बाद इसकी कटाई की जाती है। इस फसल में प्रति एकड़ 2 से 3 क्विंटल जड़ें तथा 20 से 30 कि.ग्रा. बीज मिल जाते हैं। इसकी जड़ें 6,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकती हैं। इस फसल में किसानों को लागत से तीन गुना फायदा मिलता है। इसकी खेती करने पर प्रति एकड़ 30,000 रुपये तक कमाए जा सकते हैं। वनौषधियों की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी मांग होने के कारण इस पर कई शोध भी चल रहे हैं।