अरहर (तुअर) खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है। इसकी फसल के लिए ऐसी मृदा होनी चाहिए, जिसमें जल निकास की सही व्यवस्था हो खेत में पानी भरने पर फसल को भारी नुकसान हो सकता है। मृदा का पी-एच मान 5.5-8 के बीच होना चाहिए। अरहर की खेती अगेती व पछेती फसल के रूप में करते हैं। सिंचित क्षेत्रों में अगेती अरहर की बुआई मध्य जून में पलेवा करके अवश्य करें। मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है। बुआई के समय पंक्तियों का अंतर 30-45 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सें.मी. सही रहती है। खरीफ की बुआई के लिए 15 से 18 कि.ग्रा./ हैक्टर बीज पर्याप्त रहता है तथा बीजों को 4-5 सें.मी. गहराई में बोना चाहिए।
अरहर की उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा 16, करण अरहर-1, आईपीए 203, आईपीए आईपी-एच 09-5, फुले टी 0012, पूसा 2001, पूसा 2002, पूसा 991, पूसा 992, 206. पूसा 33, पूसा 855, पूसा 9, उपास 120, प्रभात बहार व टाइप-21 शीघ्र पकने वाली तथा राजेंद्र अरहर -1, पन्त अरहर 291 मानक, अमर, नरेन्द्र अरहर 1, नरेन्द्र अरहर 2, आजाद के 91-25. मालवीय विकल्प 3 मालवीय विकल्प 6, मालवीय चमत्कार 13, टाइप-7 व टाइप-17 आदि देर से पकने वाली प्रमुख हैं।
प्रयोगों द्वारा यह साबित हो चुका है कि मेड़ों पर अरहर की बुआई करने पर न केवल पैदावार में बढ़ोतरी होती है, बल्कि इस तकनीक को अपनाने से जलभराव से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है व साथ ही कवकजनित रोगों का हमला भी कम होता है।
मृदा एवं बीजजनित कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग हैं, जो अंकुरण होते समय तथा अंकुरण होने के बाद बीजों को काफी क्षति पहुंचाते हैं। बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या के लिए बीजों को कवकनाशी से उपचारित करने की सलाह दी जाती है। इसके लिए प्रति कि.ग्रा. बीज को 2.5 ग्राम थीरम तथा ग्राम कार्बेण्डाजिम से उपचारित करने के बाद इनका राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की निर्धारित संख्या आनिवार्य है। कम पौधों की स्थिति में खरपतवारों का जमाव व विकास अधिक होगा तथा उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर/हैक्टर की आवश्यकता होती है। अरहर की अधिक से अधिक उपज के लिए फॉस्फोरसयुक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फॉस्फेट 250 कि.ग्रा./हैक्टर या 100 कि.ग्रा. डीएपी एवं 20 कि.ग्रा. सल्फर पंक्तियों में बुआई के समय पोरा या नाई की सहायता से देना चाहिए, जिससे उर्वरक का बीज के साथ सम्पर्क न हो। भरपूर उत्पादन के लिए संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। कुछ क्षेत्रों में जस्ता या जिंक की कमी की अवस्था में 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।