अरहर एक महत्वपूर्ण फसल है और प्रोटीन का स्त्रोत है। यह फसल ऊष्ण और उप ऊष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों की एक महत्वपूर्ण दाल है और अकेली या अनाजों के साथ लगाई जा सकती है। यह नाइट्रोजन को बांध के रखती है। भारत में यह फसल आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है।
धारवाड़ (रोपा) पध्दति:
रोपा पध्दति में अरहर के बीज की रोपाई मई महीने में 20 तारीख तक कर देनी चाहिए। बीज की रोपाई पॉलीथिन की थैली में करना चाहिए। इसके लिए 25 से.मी. लम्बी छिद्रयुक्त पॉलीथिन थैली लें। बीज बोवाई के एक महीने बाद जब बरसात चालू हो जाये तब अरहर के पौधों को पॉलीथिन से निकालकर खेतों में रोपाई कर देनी चाहिए। नर्सरी में पौधे तैयार होने के बाद बारिश शुरू होने पर जब खेत में पर्याप्त नमी आ जाये तो इन्हे रोप दें।
फसल की समय अवधि:
किसानो के लिए रोपा विधि से अरहर की खेती फायदे का सौदा साबित होगी। रोपा विधि से बोई गई अरहर नवम्बर मध्य में पककर तैयार हो जाती है। इससे अरहर के खेत में रबी की बौनी भी की जा सकती है। इस विधि से अरहर की फसल 180 दिन में तैयार हो जाती है।
फसल पर पाले का डर नहीं:
रोपा विधि से बोई गई अरहर नवम्बर मध्य में पककर तैयार हो जाती है। अरहर की फसल में पाला लगने का डर नहीं रहता है। किसानों को प्रति एकड़ 10 से 15 क्विंटल उप्तादन प्राप्त हो जाता है।