अप्रैल माह में इन सब्जियों की बुवाई करके किसान भाई कमा सकते है अच्छा मुनाफा

अप्रैल माह में इन सब्जियों की बुवाई करके किसान भाई कमा सकते है अच्छा मुनाफा
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Kisaan Helpline

Crops Apr 03, 2023

Vegetable Farming: वर्तमान समय में देश के कई क्षेत्रों में रबी फसलों की कटाई का कार्य चल रहा है और कई क्षेत्रो में पूरा भी हो गया है। इस समय किसान गर्मी के मौसम में सब्जियों की खेती करके एक अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते है और अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है, तो किसान भाइयों मार्च से अप्रैल माह के मौसम में कई मुख्य सब्जी लगाने के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है। बाजार में अच्छे दाम मिल सके, इसलिए मार्च अप्रैल में कई सब्जियों की बुवाई की जाती है। बुवाई की जाने वाली मुख्य सब्जियों में लौकी, भिंडी, करेला, तोरई, बैंगन आदि है।

लौकी की खेती

  • लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इस हिसाब से इसकी खेती के लिए मार्च से अप्रैल महीने उपयुक्त माना जाता है।
  • इसकी बुवाई गर्मी एवं वर्षा के समय में की जाती है। यह पाले को सहन करने में बिल्कुल असमर्थ होती है। इसलिए लौकी की खेती में 30 डिग्री के आसपास का तापमान इसके लिए काफी अच्छा होता है।
  • बीजों के अंकुरित होने के लिए सामान्य तथा पौधों को वृद्धि करने के लिए 35 से 40 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
  • इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं, किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांश युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है। लौकी की खेती में भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। काशी गंगा : लौकी की इस किस्म को अधिक। पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। यह लगभग 400 से 450 क्विंटल के आसपास प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार देती है। इसमें हरे तथा सामान्य आकार के फल होते हैं, यह लम्बाई में एक से डेढ़ फीट तक लम्बे होते हैं। लौकी की यह किस्म बीज रोपाई के 50 से 55 दिन बाद फल देना आरम्भ कर देती है।

भिंडी की खेती

  • भिंडी की फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है।
  • भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है।
  • भूमि का पी. एच. मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है।
  • भिंडी की फसल में बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। इसके बाद जब पौधे अंकुरित हो जाते हैं तब इन पौधों को विकसित होने के लिए 30 से 35 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
  • भिंडी की पंजाब 7 किस्म भिंडी की यह किस्म पीतरोग रोधी होती है, इस किस्म के पौधे 50 से 55 दिन के अंतराल में तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। यह देखने में हरे तथा सामान्य आकर के होते हैं। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 8 से 20 टन की पैदावार करती है।

करेले की खेती

  • भारत में अधिकांश किसान करेले की फसल का उत्पादन 1 वर्ष में दो बार करते हैं।
  • सर्दियों के समय में बोये जाने वाले करेले की किस्मों को जनवरी फरवरी में बुवाई कर मई जून में इसका उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं। जबकि गर्मियों के समय में करेले की किस्मों की बुवाई जून और जुलाई में करने के पश्चात इसकी उपज दिसंबर तक मिल जाती है।
  • करेले की फसल के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है। यदि हम तापमान की बात करें, तो फसल की अच्छी ग्रोथ के लिए न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेट और अधिकतम तापमान 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच होना चाहिए।
  • करेले की बढ़वार के लिए न्यूनतम तापक्रम 20 डिग्री सेंटीग्रेड तथा अधिकतम 35-40 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।
  • खेत में बनाये हुए हर थाल में चारों तरफ 4-5 करेले के बीज 2-3 से.मी. गहराई पर बो देना चाहिए।
  • ग्रीष्म ऋतु की फसल हेतु बीज को बोवाई से पूर्व 12-18 घंटे तक पानी में रखते हैं। पॉलीथिन बैग में एक बीज प्रति बैग ही बोते हैं।
  • पंजाब करेला -1: इस किस्म को अधिक पैदावार के लिए उपयुक्त माना जाता है। करेले की इस किस्म से 1 एकड़ में किसान को लगभग 50 से 60 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है।

बैंगन की खेती

  • बैंगन (सोलनम मेलोंगेना) सोलानेसी परिवार की एक फसल है, जिसे भारत का मूल निवासी माना जाता है और एशियाई देशों में इसे सब्जी के रूप में उगाया जाता है।
  • बैंगन की अच्छी उपज के लिए गहरी दोमट भूमि, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ हों तथा उचित जल निकासी वाली भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी फसल के लिए भूमि का पीएच। मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।
  • इसके पौधों को अच्छी तरह से बढ़ने के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • एक हेक्टेयर खेत में बैंगन लगाने के लिए सामान्य किस्म के 250-300 ग्राम और संकर बीज 200-250 ग्राम पर्याप्त होते हैं।
  • Pusa Hybrid-6: इस किस्म को लगाने का समय गर्मी के दिनों के लिए उपयुक्त होता है. रोपण के 60-65 दिनों के बाद पहली कटाई की जा सकती है। फल का औसत वजन 200-250 ग्राम तक हो सकता है। इस किस्म की बुवाई करने पर 40-50 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

तोरई की खेती

  • किसान ग्रीष्मकालीन तोरई की बुवाई मार्च अप्रैल माह में कर सकते हैं, साथ ही इसकी वर्षाकालीन फसल को जून से जुलाई में बो सकते हैं।
  • तोरई की अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थों से युक्त उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है। सामान्य पी. एच. मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती हैं।
  • गर्मियों के मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते हैं। तोरई के पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से अंकुरित होते हैं। इसके पौधे अधिकतम 35 से 40 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते हैं।
  • किसान ध्यान दें कि तोरई की बुवाई के लिए लगभग 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। तोरई की बुवाई के लिए नाली विधि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
  • पूसा चिकनी (घिया तोरई) किस्म को अधिक उगाया जाता है, इसके पौधों में निकलने वाले फल चिकने, मुलायम तथा गहरे हरे रंग के होते हैं। यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है जो बोने के 45 दिनों में बाद पैदावार देने लगती है। इस किस्म की पैदावार इसकी अच्छी फसल की देखभाल पर निर्भर होती है। तोरई की इस किस्म से लगभग 200 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है।

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