आम को फलों का राजा एवं लीची को फलों की रानी कहा जाता है । लीची पर हम बिहारवासियों को गर्व होता है। इसे हम प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। दरभंगा बिहार को आम की राजधानी कहा जाता है। इन दोनों फलों से अधिकतम लाभ लेने के लिए आवश्यक है की फल के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया जाय।
आम एवं लीची में फल लग जाने के बाद यदि बाग का वैज्ञानिक ढंग से यदि प्रबंधन नही किया गया तो आशातीत लाभ नहीं प्राप्त होता है। जब आम के फल मटर के बराबर एवं लीची के फल लौंग के आकार के हो जाय तबसे बाग में हल्की-हल्की सिंचाई करके मिट्टी को हमेशा नम बनाये रखना चाहिए, इससे फल की बढवार अच्छी होती है। पेड़ के आस पास जलजमाव न होने दे।बाग को साफ सुथरा रखना चाहिए। इसके पहले सिंचाई करने से फल झड़ने की संभावना ज्यादा रहती हैं। प्लानोफिक्स@1मिली /4लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। जब आसमान में बादल रहेंगे तब पाउड़ेरी मिल्डेव (चूर्डिल आसिता) रोग होने की संभानाएं ज्यादा रहती है इसके बचाव के लिए आवश्यक है कि तरल सल्फर कवकनाशक दवा@ 1 मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। इमिडाक्लोरप्रीड (17.8 एस0एल0) @ 1मि0ली0 दवा प्रति दो लीटर पानी में और हैक्साकोनाजोल @ 1 मीली/ लीटर पानी या डाइनोकैप (46 ई0सी0) 1 मिली दवा प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़कने से मधुवा, चूर्णिल आसिता एवं एंथ्रेक्नोस रोग की उग्रता में कमी आती है। यहां यह बता देना आवश्यक है की जब अधिकतम तापक्रम 15डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाने के बाद चूर्णिल आसिता रोग होने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है।
यदि आप का आम का 10 वर्ष या लीची का पेड़ 15 वर्ष से ज्यादा का है तो उसमे 500-550 ग्राम डाइअमोनियम फॉस्फेट ,850 ग्राम यूरिया एवं 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश एवं 25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सडी गोबर की खाद पौधे के चारों तरफ मुख्य तने से 2 मीटर दूर 9 इंच चौड़ा एवं 9 इंच गहरा रिंग बना ले ।इससे निकली हुई मिट्टी को दो भाग में बाट ले ।आधी मिट्टी में उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों को मिला कर रिंग में डाल दे ऊपर से बची मिट्टी डाल दे,इसके बाद सिंचाई कर दे। यदि आम का पेड़ 10 वर्ष एवं लीची का पेड़ 15 वर्ष से छोटा है तो उपरोक्त मात्रा को आम के संदर्भ में 10 से एवं लीची के संदर्भ से 15से भाग दे तत्पश्चात पेड़ की उम्र से गुणा कर खाद एवं उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करें।
जहाँ पर आम एवं लीची के फटने की समस्या ज्यादा हो वहाँ के किसान @ 4ग्राम घुलनशील बोरेक्स/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या सूक्ष्मपोषक तत्व जिसमें घुलनशील बोरान की मात्रा ज्यादा हो @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से फल के झड़ने में कमी आती है एवं फल गुणवत्ता युक्त होते है। यह कार्य 15 अप्रैल के आस-पास अवश्य कर लें। आम एवं लीची दोनों में जिन मंजरो में फल नही लगे है, उनको काट कर बाग से बाहर ले जाकर जला दे , क्योकि अब उसमे फल नही लगेंगे एवं लगे रहने की अवस्था में ये रोग एवं कीड़ों को आकर्षित करेंगे। आम के बाग में इस समय मिली बग (दहिया कीट)कीट की समस्या ज्यादा विकट रूप से दिखाई दे रही है यदि आप ने पूर्व में इस कीट के प्रबंधन का उपाय नही किया है तो एवं दहिया कीट पेड पर चढ गया हो, तो ऐसी अवस्था में डाएमेथोएट 30 ई.सी. या क्विनाल्फोस 25 ई.सी.@ 2.0 मीली दवा / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। लीची में फल बेधक कीट से बचने के लिए थायो क्लोप्रीड (Thiacloprid)एवं लमडा सिहलोथ्रिन(Lamda cyhalothrin) की आधा आधा मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी या नोवल्युरान @ 1.5 मीली दवा/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। ज्यादा बेहतर होगा की इन कीटों से बचाव के लिए फेरोमन ट्रैप @15 से 20 ट्रैप/हेक्टेयर प्रयोग करें। फल का झडना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रारंभिक अवस्था में जितना फल पेड़ पर लगता है उसका मात्र 4-7 % फल ही पेड़ पर टिकता है, बाकी फल झड़ जाता है।अनावश्यक कृषि रसायनों का छिड़काव नहीं करना चाहिए अन्यथा फायदा होने की जगह नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है।
डॉ. एस.के. सिंह
प्रोफेसर (पौधा रोग)
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना
एवं सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय
पूसा-848125 , समस्तीपुर, बिहार