गेहूं की खेती के लिए सही समय अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से नवंबर तक है, लेकिन कपास के खेतों में दिसंबर तक भी गेहूं की बुवाई की जा सकती है। गेहूं की अच्छी खेती के लिए दोमट और रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। अच्छी पैदावार के लिए सही बीज का चयन और समय पर बुवाई बहुत जरूरी है। बीजों की अच्छी किस्मों का चयन करने से न केवल पैदावार बढ़ती है, बल्कि फसल की रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
गेहूं की खेती के लिए उन्नत बीजों का चयन कैसे करें?
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराता है। इस वर्ष भी संस्थान ने ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा शुरू की है, जिसके माध्यम से तीन हजार क्विंटल बीज ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर उपलब्ध कराए जाएंगे। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार बीजों की ये किस्में रोग प्रतिरोधक हैं और बेहतर पैदावार देती हैं। किसान संस्थान के पोर्टल पर जाकर आसानी से पंजीकरण करा सकते हैं और अपनी जरूरत के अनुसार बीज प्राप्त कर सकते हैं।
उपलब्ध गेहूं बीज की किस्में और उनकी विशेषताएं
संस्थान ने गेहूं की नई किस्म WBR-316 जारी की है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसानों के लिए अधिक लाभकारी मानी जा रही है। इसके साथ ही WBR 187, 372, 327, 332, 303, 377 और 359 जैसी किस्मों के बीज भी उपलब्ध हैं, जो सभी रोग प्रतिरोधक हैं और अधिक पैदावार देते हैं। किसान इन बीजों को समय पर खरीदकर अपनी फसल की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।
गेहूं की बुवाई से पहले खेत की तैयारी
गेहूं की सफल खेती के लिए खेत की उचित जुताई और मिट्टी की तैयारी जरूरी है। खेत तैयार करने के लिए किसानों को हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसे आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि बीजों को सही गहराई और उचित दूरी पर बोया जा सके। इन उपकरणों के इस्तेमाल से बीजों का अंकुरण भी अच्छा होता है, जिससे फसल की वृद्धि तेज होती है।
गेहूं की खेती के लिए अन्य महत्वपूर्ण सलाह
खेत में नमी बनाए रखना जरूरी है, ताकि बीज ठीक से अंकुरित हो सकें।
फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर जैविक और रासायनिक उपचार करें।
उर्वरकों का संतुलित तरीके से प्रयोग करें ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और फसल को पर्याप्त पोषण मिले।