सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। भारत मे सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश करता है। मध्यप्रदेश में इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर है।
राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र एवं विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अलग क्षेत्रों के लिए वहाँ की कृषि जलवायु एवं मिट्टी के लिए अलग किस्मों का विकास किया गया है एवं किस्में समर्थित की गई हैं। उसी के अनुसार सोयाबीन किस्में बोई जानी चाहिए। इन किस्मों का थोड़ा बीज लाकर अपने यहाँ ही इसे बढ़ाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
सोयाबीन की किस्म JS 335 की विशेषताएं
यह किस्म अन्य किस्मों की अपेक्षा पकने में अधिक समय लेती हैं। 100 से 105 दिनों में आपकी फसल तैयार हो जाती है।
सोयाबीन की फसल का उत्पादन 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है, एक अच्छी पैदावार के लिए ये बहुत अच्छा साबित होता है।
अच्छे उत्पादन के लिए इस किस्म की सोयाबीन को अधिक पानी की आवश्यकता होती हैं, फूल और फल की अवस्था में सिंचाई की अतिआवश्यकता होती है।
इस सोयाबीन के दाने का आकार अन्य किस्मों के सोयाबीन छोटा होता है, अन्य विशेषताएं जैसे- बैंगनी रंग के फूल, दाने का रंग पीला, तेल की मात्रा 17-19 प्रतिशत के लगभग, प्रोटीन की मात्रा 40-41 प्रतिशत के लगभग होती हैं।
किसान इस किस्म के सोयाबीन की बुवाई उन खेतों में कर सकते है जहा पर बरसात के पानी की नमी अधिक समय तक खेतों में रहती है।
ध्यान रहे खेत में जलभराव की समस्या न हो, वरना इसका प्रभाव सोयाबीन की पैदावार पर पड़ेगा।
सोयाबीन की अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान भाई सोयाबीन की किस्म JS 335 का प्रयोग कर सकते हैं।