जैसे की आप जानते है भिंडी गर्मियों एवं वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली सब्जी की महत्वपूर्ण फसल है। इसकी खपत एवं बाजार मांग ज्यादा होने के कारण किसानों को अच्छा भाव मिलने से अच्छी आमदनी ली जा सकती है, परंतु कुछ हानिकारक कीट व रोग भिंडी की पैदावार व गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर देती हैं।
भिंडी की अच्छी उपज लेने के लिए फसल को समय रहते बीमारियों तथा हानिकारक कीटों से बचाना बेहद जरूरी है। साथ ही भिंडी फसल को कपास फसल के पास न बोएं।
हानिकारक कीट व उनकी रोकथाम
सफेद मक्खी : यह कीट पत्तों की निचली सतह से रस चूसकर पीला मोजेक रोग फैलाकर हानि पहुंचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 300 से 500 मिली मैलाथियान 50ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। तथा अन्य उपाय थाइमेथोक्साम 25 डब्ल्यू.जी. या एसीटामिप्रिड 20 एस.पी. 10 ग्राम/15 लीटर पानी के साथ मिलाकर समय समय छिड़काव करना चाहिए।
हरा तेला : हरे पीले रंग के ये छोटे कीट भी पत्तों की निचली सतह सतह से रस चूसते हैं। कीट प्रभावित पत्ते किनारों से मुड़कर कप जैसे तथा ज्यादा प्रकोप होने पर सूखकर गिर जाते हैं। रोकथाम के लिए मैलाथियान व थाइमेथाक्साम का प्रयोग करें।
तना व फल छेदक सुंडियां : कीट की सुंडियां बेलनाकार तथा हलके पीले व भूरे काले धब्बे वाली होती हैं तथा फसल में कोपल में छेक करके अंदर रहती हैं। साथ ही कलियों, फूलों व फलों को बहुत हानि पहुंचाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए 400-500 मिली मैलाथियान या कार्बोरिल 50 धू.पा. या क्लोरपायरीफास को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पंद्रह दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।
हानिकारक रोग व उनकी रोकथाम
जड़ गलन या पौध गलन : रोग में पौधे उगते समय भूमि की सतह से गल जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीज को बोने से पहले थीरम या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए तथा बीमार पौधों को खेत से बाहर निकालते रहना चाहिए।
पीला शिरा मोजेक : रोग में पत्तियों की शिराएं पीली पड़ जाती हैं। पत्तियां पीली, चितकबरी व प्यालेनुमा तथा फल छोटे व पीले तथा कम लगते हैं। भिंडी की यह सबसे खतरनाक बीमारी रस चूसने वाले कीट सफेद मक्खी से फैलता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगी रोधी किस्म पी-7, उन्नत तथा वर्षा उपहार लगाएं। रोग फैलाने वाली सफेद मक्खी को सिफारिश की गई कीटनाशक दवाओं का नियमित छिड़काव कर नष्ट करते रहें। रसचूसक कीटों की रोकथाम के लिए थाइमेथोक्साम 25 डब्ल्यू.जी. या एसीटामिप्रिड 20 एस.पी. 10 ग्राम/15 लीटर पानी के साथ मिलाकर समय समय छिड़काव करना चाहिए। तथा 300 से 500 मिली मैलाथियान 50ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।