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सिद्धार्थनगर: तकनीक के जमाने में हम ऑनलाइन बहुत सारी चीजें सीखते हैं. पर आपने शायद ही सुना होगा कि भारत में किसान भी यूट्यूब से खेती सीख रहे हैं और उससे फायदा भी उठा रहे हैं. अफरोज मलिक ने बिना सीजन सब्ज़ी उगाने की ये जो तकनीक अपनाई है, उसकी झलक आपको उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले के डुमरियागंज के बिथरिया गांव में दिख जाएगी. लगभग 37 एकड़ खेतों में पॉलिथीन की परतों में लिपटी खीरा, करैला, लौकी, मिर्च, कद्दू जैसी कई सब्जियां उगाई जा रही हैं. खास बात यह है कि बेमौसम सब्ज़ियां उगा कर ये किसान मार्केट से अच्छी रकम लेने में कामयाब हो रहे हैं.
उन्होंने YouTube में और भी टेक्निक की तलाश शुरू की, चूंकि बिथरिया गांव तराई का हिस्सा है और यहां ओस बहुत गिरती है, इसलिए उनका मानना है कि ओस के गिरने से पत्ते जल जाते थे, उन पौधों को ऊपर से पॉलीथिन से ढंक दिया तो पौधों का टेंपरेचर बना रहेगा और उस पर गिरने वाली ओस सुबह होते ही गर्मी के तापमान से ओस पानी बनकर पौधे की जड़ में चली जाएगी.
इन पौधों को ढंकने से पेड़ हरा भरा रहता है और जैसे ही सीजन खत्म होता है उसको खोल दिया जाता है. इस खेती में एक खास तकनीक का इस्तेमाल भी किया जा रहा है, जिसके तहत पौधे लगने वाली क्यारियों के बीच में जगह भी छोड़ी जाती है. उक्त तकनीक के बारे में अफ़रोज़ कहते हैं कि अगर प्रत्येक वर्ष पूरी जमीन पर फसल बोयेंगे तो उसकी न्यूट्रीशन पूरी तरह से कमजोर हो जाएगी. जिस तरह दो बच्चों के बीच में 3 साल का गैप होना चाहिए, उसी तरह पौधों में भी 3 साल का फासला रखेंगे तो जमीन की न्यूट्रीशन वैल्यू ताकत बनी रहेगी और हमारी पैदावार में लगातार इजाफा होता रहेगा. उन्होंने बताया कि खेत में काम करने वाले किसान और खेतिहर मजदूरों की कभी कमी न पड़े, इसके लिए उन्होंने बरेली और आस पास के इलाक़े से लोगों को बुलाया है और खेत के आस-पास ही उनके लिए रहने का इंतज़ाम कर दिया है. ताकि खेतों की देखभाल अच्छी से होती रहे.
अफरोज का कहना है कि कैश क्रॉप से सबकी आमदनी काफी बढ़ गई है. अफ़रोज़ सरकार की किसान हित को लेकर पॉलिसी से नाराज़ हैं. उनका मानना है कि सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं, सभी फाइलों में ही हैं. उनका कहना है कि सरकार ने किसानों को पूरी तरह खेती से फायदा पहुंचने के लिए कभी शोध नहीं किया. उनका कहना है कि जिस तरह से देश में आर्मी के लिए शोध होते हैं, तेल के लिए शोध होता है, अन्य संसाधनों के लिए शोध होता है, कभी किसानी पर कोई शोध नहीं हुआ.
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