रायपुर। जिस गाय का दूध पीकर हम सेहत बनाते हैं, उसकी सेहत और आराम का ध्यान रखना भी जरूरी है। कुछ इसी भावना के साथ फुंडा गांव में 350 गीर गायों की देखरेख हो रही है।
गांव और आसपास के किसानों को यहां स्थित केंद्र में जैविक खेती के गुर भी सिखाए जा रहे हैं जिसमें गोमूत्र और गोबर का इस्तेमाल हो रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि गाय और जैविक खेती एक दूसरे के पूरक हैं। इस काम में लगे लोगों का दावा है कि अब तक दो लाख किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
कनाडा से मंगवाया बिस्तर
10,000 रुपए की दर से प्रति गाय का बिस्तर कनाडा से आयात किया गया है। 3 लेयर वाला यह बिस्तर एंटी फंगल व एंटी बैक्टिरियल है। बीमार पड़ने पर गायों को परिसर में ही अस्पताल व चिकित्सक की सुविधा भी उपलब्ध है।
खेती और गाय का रिश्ता है पुराना
इस केंद्र में देसी गायों के गोबर व मूत्र से जैविक खेती को प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है। जैविक कीटनाशक व जैविक उर्वरक का निर्माण कर देसी पद्धति से उन्नत व लाभ की खेती के गुर बताए जा रहे हैं। एग्रीकल्चर कॉलेज के सहयोग से अब तक 2 लाख स्थानीय किसानों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। उन्हें समझाया कि देसी गायें और जैविक खेती एक दूसरे के पूरक हैं।
इससे लंबे समय तक खेतों की मिट्टी अमृत पैदा करेगी। उन्हें ये भी बताया कि देसी गायें भारतीय अर्थतंत्र का हिस्सा हैं।
सफाई का खास खयाल
4 बाई 6 की जगह को लोहे के कठघरे से घेरकर उसमें कनाडा से मंगाया गया गद्देनुमा बिस्तर बिछाया गया है। हर दो दिन में इस बिछौने की सफाई की जाती है। गायों को खुराक में ताजा हरा चारा दिया जाता है, पानी के लिए टंकियां बनी हैं, उनमें साफ पानी की सप्लाई साइफन सिस्टम से होती है। यानी गाय के पानी पीने के बाद टंकी में दोबारा उतना ही पानी भर जाता है। हर गाय के लिए सीलिंग फैन है, ताकि मक्खी-मच्छर दूर रहें।
गायों की पूंछ के करीब नालियां हैं, जिनमें पानी बहता रहता है, इसी पानी के साथ गाय का गोबर जैविक खाद उत्पादन की प्रक्रिया के लिए प्रोसेसिंग यूनिट तक तत्काल पहुंच जाता है। एक आधुनिक कोठे में करीब 100 गायों के बीच 10 फीट चौड़ा गलियारा है, जहां से गुजरकर मिनी ट्रैक्टर आटोमैटिक सिस्टम से चारा पहुंचाता है। 24 घंटे चारा उपलब्ध रहे इसके लिए गाय की गर्दन की ऊंचाई पर साइंटिफिक तकनीक से तैयार कोटना (टंकियां) बने हैं। गायों के इस आधुनिक कोठे के करीब ही सुरक्षित घेरे में खुला मैदान भी है जहां वे सफाई के दौरान खुले में विचरण करती हैं।
इन्होंने की पहल
छत्तीसगढ़ के रहने वाले लोग बिना किसी सरकारी मदद या अनुदान के इस काम में सक्रिय हैं। सोच ये है कि गाय बचेगी तो जमीन बचेगी, जमीन बचेगी तो देश बचेगा। इनमें राजेंद्र तंबोली, शिव टांक, राजेश टांक, राजू रूपचंदानी और अमित सिंह ठाकुर प्रमुख हैं।